उत्तराखंड में लॉकडाउन के बाद खुलेंगे ग्रामोद्योग विकास के द्वार, पढ़िए
कोरोना महामारी ने उत्तराखंड के लिए नासूर बन चुके पलायन के ‘उपचार’ की संभावना बढ़ा दी है। कोरोना के कारण बदली परिस्थितियों से पलायन पर ब्रेक लग सकता है।
देहरादून, जेएनएन। कोरोना महामारी ने उत्तराखंड के लिए नासूर बन चुके पलायन के ‘उपचार’ की संभावना बढ़ा दी है। सरकार के साथ ही अधिकारियों और विभिन्न संगठनों का भी मानना है कि सुविधाओं व रोजगार की तलाश में तीन दशक पहले पहाड़ों से पलायन का जो सिलसिला शुरू हुआ था, कोरोना के कारण बदली परिस्थितियों से उसपर ब्रेक लग सकता है। कोरोना महामारी की दस्तक से पहले तक जो गांव वीरान पड़े थे। आज वह लोगों की आवाजाही से गुलजार हैं।
सरकार को इससे अपनी रिवर्स पलायन की योजना को भी बल मिलता दिखाई दे रहा है। ऐसे में सरकार ने प्रदेश लौटे लोगों को यहीं रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ने के लिए कवायद शुरू कर दी है। रिवर्स पलायन की समग्र योजना तैयार करने के साथ ही दो वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों को इसका अनुपालन कराने की जिम्मेदारी सौंप दी है। अगर सरकार की यह योजना परवान चढ़ी तो ग्रामोद्योग के विकास के द्वार खुलने की पूरी उम्मीद है।
34 हजार सूक्ष्म उद्योग नहीं हुए बड़े
कोरोनाकाल समाप्त होने के बाद बदली परिस्थितियों के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भार बढ़ सकता है। दरअसल, प्रदेश में एमएसएमई सेक्टर के 64167 उद्योग हैं। इनमें से 34112 नौ पर्वतीय जिलों में पंजीकृत हैं। लेकिन, ये उद्योग आज तक आसपास के गांवों को भी रोजगार देने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल को छोड़कर बाकी के नौ पर्वतीय जिलों के करीब दो लाख लोग राज्य से बाहर रह रहे थे।
सुधीर नौटियाल (निदेशक उद्योग, उत्तराखंड) का कहना है कि उद्योग निदेशालय शहरी व गामीण क्षेत्रों में उद्योगों के विकास की योजना पर काम करता है। पहाड़ी राज्य होने के चलते उत्तराखंड में एमएसएमई उद्योग पर विशेष फोकस किया जाता है ताकि पहाड़ी इलाकों से पलायन भी थमे और लोगों को रोजगार भी मिले।
भरत सिंह चौधरी (विधायक, रुद्रप्रयाग) का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पलायन आयोग से रिवर्स पलायन की समग्र रिपोर्ट तैयार करवाई। जिससे साफ है कि कोरोना संक्रमण के बाद बदली परिस्थितियों में पलायन कर चुके लोग घरों की ओर रुख करेंगे। जिससे रोजगार भी बढ़ेंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी।
पहाड़ ही देंगे युवाओं को रोजगार
शहर से गांव की ओर रुख करने वाले युवा फूलों की खेती, मधुमक्खी पालन, बागवानी, पशुपालन, ग्रामीण हाट, जड़ी-बूटियों का उत्पादन, रेशम पालन को रोजगार बनाकर पहाड़ के युवा घर पर ही रह सकेंगे।
चुनौती को अवसर में ढालने का मौका
पिछले तीन दशकों पर नजर दौड़ाएं तो शहरी क्षेत्रों में भारी जनदबाव और गांवों के निरंतर खाली होने के दृश्य अखरते थे। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है, लेकिन कोरोना संकट के बाद परिस्थितियां बदली हैं। लॉकडाउन से सभी गतिविधियां ठप हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा, लेकिन इस चुनौती को अवसर में ढालने का मौका भी है। बदली परिस्थितियों में गांव के पास उबरने का भी अवसर है और वहां खेती-किसानी के साथ ही फल प्रसंस्करण, पशुपालन, पुष्पोत्पादन जैसे कामधंधों के साथ ही कुछ नए सेक्टर भी उभरकर सामने आएंगे। जल संसाधन के मामले में धनी इस राज्य में बोतल बंद पानी का कारोबार नए आयाम दे सकता है तो हेल्थ केयर पर्यटन के आकार लेने की उम्मीद है। होम स्टे, एडवेंचर टूरिज्म भी अर्थव्यवस्था को संबल देने में मददगार साबित होंगे। साथ ही कुटीर उद्योग नए कलेवर में निखरने की संभावनाएं जगी हैं।
उत्तराखंड के गांवों से पलायन की मुख्य वजह मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के अवसरों का अभाव रहा है। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद भी इसकी निरंतर अनदेखी होती रही। यदि ऐसा नहीं होता तो आज 1702 गांव निर्जन नहीं होते और सैकड़ों गांवों में आबादी अंगुलियों में गिनने लायक नहीं रहती। जाहिर है कि इस सबका असर खेती-किसानी के साथ ही अन्य कामधंधों पर भी पड़ा। पलायन का असर देखिये कि राज्य बनने के बाद एक लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बंजर में तब्दील हो गई। परती कृषि भूमि का दायरा भी बढ़ा है। सूरतेहाल, ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है।
कोरोना संकट के बाद परिस्थितियां बदली हैं। लॉकडाउन होने पर 10 पर्वतीय जिलों में करीब 60 हजार लोगों की वापसी हुई है और लॉकडाउन खुलने पर इनकी संख्या में और इजाफा हो सकता है। जानकारों के मुताबिक बदली परिस्थितियों में इस चुनौती को अवसर के रूप में लेने की जरूरत है। इस दिशा में मंथन भी शुरू हो गया है और आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था में गांवों की हिस्सेदारी बढ़ना तय है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अब खेती, औद्यानिकी को लाभकारी बनाना होगा, जिसकी अनदेखी होती आई है। अब इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे। राज्य के जैविक कृषि उत्पादों को बेहतर बाजार मिलने की उम्मीद है। बंजर पड़े खेत फिर से सामूहिक खेती के जरिये आबाद होंगे। खेती के साथ पशुपालन, फल प्रसंस्करण, पुष्पोत्पादन, मौन पालन जैसे कारोबार फिर से उभरेंगे। इसके साथ ही परंपरागत कुटीर उद्योग धंधे भी पनपेंगे। यानी स्थानीय संसाधनों का वैज्ञानिक ढंग से होने वाला उपयोग अर्थव्यवस्था में भागीदारी निभाएगा। इसके साथ ही कुछ नए कारोबार उबरकर सामने आएंगे, जिसमें प्रवासियों की अहम भूमिका रहेगी। सबसे अहम ये कि गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विस्तार में भी तेजी आएगी। वहीं, प्रदेश सरकार भी इस सबके मद्देनजर सक्रिय हुई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य की अर्थव्यवस्था को कैसे पटरी पर लाया जाए और गांवों को कैसे हर दृष्टिकोण से सशक्त बनाया जाए, इसके मंत्रिमंडलीय समिति गठित की है। साथ ही वह प्रवासियों से भी निरंतर संपर्क में हैं और उनसे ब्लाक व जिला स्तर पर सुझाव भी लिए जा रहे हैं।
डॉ. एसएस नेगी (उपाध्यक्ष पलायन आयोग) का कहना है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए विशेष अभियान चलाने का सुझाव आयोग सरकार को दे चुका है। अब कृषि- बागवानी, सामूहिक खेती पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा। साथ ही प्रवासियों को उनके कौशल के अनुरूप कार्य देने को कदम उठाने होंगे।
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पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी (संस्थापक हेस्को) का कहना है कि बदली परिस्थितियों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नए आयाम मिलेंगे, बशर्ते इसके लिए बेहतर सोच के साथ आगे बढ़ा जाए। खेती-बाड़ी को पहले स्थान पर रखने के साथ ही अन्य कारोबार के अलावा पानी, हवा, हेल्थ केयर टूरिज्म जैसे नए क्षेत्रों पर भी ध्यान देना होगा।
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