उत्तराखंड में ब्लॉक स्तर पर खुलेंगे विद्या भारती के विद्यालय
शिक्षा की गुणवत्ता सुधार को प्रयासरत विद्या भारती उत्तराखंड में ब्लॉक स्तर पर विद्यालय खोलेगा। साथ ही सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने को भी प्रयास किए जा रहे हैं।
देहरादून, जेएनएन। शिक्षा की गुणवत्ता सुधार को प्रयासरत विद्या भारती उत्तराखंड में ब्लॉक स्तर पर विद्यालय खोलेगा। साथ ही सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने को भी प्रयास किए जा रहे हैं। सस्ती और अच्छी शिक्षा प्रदान करना ही विद्या भारती का उद्देश्य है। ये बातें विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री शिव कुमार ने दून में एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहीं।
शनिवार को धर्मपुर के सुमन नगर स्थित श्री गोवर्धन सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री शिव कुमार ने विद्या भारती के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1952 में गोरखपुर में सरस्वती शिशु मंदिर से शुरुआत कर आज देशभर में 13 हजार विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन विद्यालयों में करीब 35 लाख छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। बताया कि विद्या भारती की स्थापना स्कूलों में छात्रों को आधुनिक शिक्षा के साथ जीवन मूल्यों का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से हुई है। इसी के तहत सस्ती और उत्तम शिक्षा प्रदान की जा रही है।
करीब डेढ़ लाख आचार्य इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। उत्तराखंड में विद्या भारती के 633 विद्यालय हैं। इनकी संख्या को और बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों को गोद लेकर वहां की व्यवस्थाओं में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही मेधावी छात्रों और सरकारी शिक्षकों को भी सम्मानित कर प्रोत्साहित किया जा रहा है। पत्रकार वार्ता के दौरान विद्या भारती के प्रांतीय संगठन मंत्री भुवन कुमार और प्रांतीय मंत्री डॉ. रजनीकांत शुक्ल भी उपस्थित थे।
आचार्यों और पदाधिकारियों से की चर्चा
विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री केंद्रीय अधिकारी प्रवास कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड आए हुए हैं। शनिवार को उन्होंने गढ़वाल मंडल के विद्यालयों के आचार्य व पदाधिकारियों से योजनाओं और व्यवस्थाओं को लेकर चर्चा की। अब दो फरवरी को वे हल्द्वानी में कुमाऊं मंडल के पदाधिकारियों और आचार्यों के साथ संवाद करेंगे।
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अंग्रेजी भाषा सिखाते हैं, संस्कृति नहीं
शिव कुमार ने एक सवाल के जवाब में कहा कि विद्या भारती के स्कूलों में अंग्रेजी भाषा बखूबी सिखाई जाती है, लेकिन अंग्रेजी संस्कृति का समर्थन नहीं किया जाता। छात्रों के भीतर हमेशा भारतीयता का गुण विकसित करने का ही प्रयास रहता है। उन्होंने कहा कि पैसा शिक्षा की गुणवत्ता तय नहीं कर सकता। सस्ते स्कूलों में भी बेहतर शिक्षा ली जा सकती है।