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60 हजारी कुर्सी को लेकर ऐसी जिद, कुलपति ने चुकाई कीमत

वीआईपी संस्कृति को धता बताते हुए 60 हजारी कुर्सी पर बैठने की राजहठ पर अड़े उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीयूषकांत दीक्षित ने इस कुर्सी की कीमत चुकाई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 04:02 PM (IST)Updated: Fri, 28 Apr 2017 06:00 AM (IST)
60 हजारी कुर्सी को लेकर ऐसी जिद, कुलपति ने चुकाई कीमत
60 हजारी कुर्सी को लेकर ऐसी जिद, कुलपति ने चुकाई कीमत

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: वीआईपी संस्कृति को धता बताते हुए 60 हजारी कुर्सी पर बैठने की राजहठ पर अड़े उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीयूषकांत दीक्षित ने संस्कृत शिक्षा मंत्री के कसने के बाद भी राजहठ नहीं छोड़ा। हालांकि, उन्होंने इस कुर्सी की कीमत चुका कर विवाद को शांत करने की कोशिश जरूर की।

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हरिद्वार स्थित उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीयूषकांत दीक्षित बीते सप्ताह अचानक सुर्खियों में आ गए थे। दरअसल, उन्होंने 60 हजारी कुर्सी नहीं मिलने पर जमीन पर ही डेरा डाल लिया था। मामला तूल पकड़ा तो संस्कृत शिक्षा मंत्री तक भी पहुंचा। 

पहले विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में उन्होंने कुलपति से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा और इसके बाद उन्हें विधानसभा तलब किया। बताया जा रहा है कि बुधवार को संस्कृत शिक्षा मंत्री ने इस मामले में सख्त शब्दों में कुलपति प्रो. दीक्षित को पद की गरिमा का ध्यान रखने के लिए कहा। इसके बाद ही उन्होंने हरिद्वार लौटते ही कुर्सी की कीमत का चेक कुलसचिव को भेज दिया। 

विश्वविद्यालय के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने भी इसकी पुष्टि की। उन्होंने बताया कि बुधवार को चेक को बैंक में नहीं लगाया जा सका है। गुरुवार को चेक वित्त विभाग को भेज दिया जाएगा। उधर, विवि के वित्त नियंत्रक मो. तहसीन अली ने कहा कि उन्हें ऐसी जानकारी मिली है, लेकिन अभी चेक उनके पास नहीं पहुंचा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि कुर्सी की कीमत का भुगतान वित्त से किया जा चुका है। 

पद छोड़ने की जताई इच्छा

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीक्षित की कुर्सी को लेकर जिद कोई पहला प्रकरण नहीं है। सूत्रों की मानें तो इससे पहले लैपटॉप को लेकर भी इस तरह का विवाद हो चुका है। यह भी बताया जा रहा है कि वित्त नियंत्रक भी इस व्यवहार से त्रस्त हैं। सूत्रों की मानें तो वित्त नियंत्रक ने विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक पद को छोड़ने की इच्छा जताई है। इसके लिए उन्होंने शासन को पत्र भी भेजा है। हालांकि, उन्होंने इस बारे में टिप्पणी करने से इन्कार किया।

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