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Vat Savitri Vrat 2022 : अखंड सुहाग के लिए सुहागिनों ने रखा व्रत, बन रहा खास संयोग, यह है सही पूजन विधि

Vat Savitri Vrat 2022 दो साल कोरोनाकाल के बाद इस बार सामूहिक रूप से महिलाओं को पूजा करने का मौका मिलेगा। कुछ महिलाओं ने रविवार को व्रत रखा है तो कुछ सोमवार को व्रत रखकर वट वृक्ष के पास जाकर विधिवत पूजा करेंगी।

By Nirmala BohraEdited By: Published: Sun, 29 May 2022 08:25 AM (IST)Updated: Sun, 29 May 2022 08:25 AM (IST)
Vat Savitri Vrat 2022 : अखंड सुहाग के लिए सुहागिनों ने रखा व्रत, बन रहा खास संयोग, यह है सही पूजन विधि
व्रत रखकर वट वृक्ष के पास जाकर विधिवत पूजा करेंगी सुहागिन

जागरण संवाददाता,देहरादून : Vat Savitri Vrat 2022 : पति की दीर्घायु सुख- समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए सुहागिनों ने रविवार को वट सावित्री व्रत रखा है। दो साल कोरोनाकाल के बाद इस बार सामूहिक रूप से महिलाओं को पूजा करने का मौका मिलेगा।

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अमावस्या तिथि रविवार दोपहर दो बजकर 55 मिनट से अगले दिन सोमवार शाम पांच बजे तक रहेगी। हालांकि कुछ महिलाओं ने रविवार को व्रत रखा है तो कुछ सोमवार को व्रत रखकर वट वृक्ष के पास जाकर विधिवत पूजा करेंगी।

वट अमावस्या बेहद उत्तम व प्रभावी व्रत

कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी महिलाएं इस विशेष दिन पर पौधे रोपकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती हैं। ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले व्रतों में वट अमावस्या को बेहद उत्तम व प्रभावी व्रतों में से एक माना गया है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना करती है।

आचार्य डा. सुशांत राज के अनुसार, शास्त्रों में वट को देव वृक्ष बताया गया है। इसके मूल भाग में भगवान ब्रह्मा, मध्य भाग में भगवान विष्णु और अग्र भाग में भगवान शिव का वास माना गया है। देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। इसीलिए यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है।

यह है मान्यता

हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि सावित्री के पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही यमराज ने जीवनदान दिया था। उस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थाी। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा। सनातन संस्कृति में यह भी माना जाता है कि वट में ब्रह्म, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास है।

बन रहा खास संयोग

आचार्य डा. सुशांत राज के मुताबिक, वट सावित्री व्रत के दिन के काफी अच्छा संयोग बन रहा है। शनि जयंती होने के अलावा इस दिन सुबह 7:12 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस विशेष समय में पूजा करने का महत्व अधिक बढ़ जाता है।

यह है पूजा की विधि

उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य बिजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार, वट सावित्री व्रत उत्तर भारत के कई राज्यों में 29 और 30 मई, जबकि 14 जून को दक्षिण भारत के क्षेत्रों में मनाया जएगा।

  • वट वृक्ष के मूल में जल अर्पित कर वृक्ष की परिक्रमा करते हुए इसके मुख्य तने में कच्चा सूत लपेट कर आरती करें।
  • दीपक जलाएं। फल, फूल, मिठाई और घर के बने पकवान चढ़ाएं।
  • भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • व्रती महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर समूह में सावित्री और सत्यवान की कथा का श्रवण करें।
  • वट वृक्ष की शाखओं को तोड़कर घर लाने के बजाए वहीं जाकर पूजा करें।
  • साथ ही इस दिन पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाना चाहिए।

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