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राज्य गठन के बाद सक्रिय राजनीति को रणजीत वर्मा ने कहा अलविदा, जानिए उनके बारे में

उत्तराखंड आंदोलन के प्रखर रणनीतिकार और हर वर्ग के चहेते रणजीत सिंह वर्मा ने ऐसे समय में सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया था जब उनकी स्वीकार्यता चरम पर थी।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 12:32 PM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 12:32 PM (IST)
राज्य गठन के बाद सक्रिय राजनीति को रणजीत वर्मा ने कहा अलविदा, जानिए उनके बारे में
राज्य गठन के बाद सक्रिय राजनीति को रणजीत वर्मा ने कहा अलविदा, जानिए उनके बारे में

देहरादून, जेएनएन। आदर्श राजनीति के अक्स, उत्तराखंड आंदोलन के प्रखर रणनीतिकार और हर वर्ग के चहेते रणजीत सिंह वर्मा ने ऐसे समय में सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया था, जब उनकी स्वीकार्यता चरम पर थी। राज्य निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले रणजीत सिंह ने ऐसे समय पर यह निर्णय लिया, जब पृथक राज्य की स्थापना हो चुकी थी और राजनीति का नया युग उनकी राह देख रहा था। हालांकि, हमेशा आदर्श जीवन वाले वर्मा ने राजनीति को अलविदा कहते हुए बस इतना ही कहा कि राज्य गठन के साथ ही उनका राजनीतिक ध्येय भी पूरा हो गया है।

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उत्तर प्रदेश के दौरान मसूरी विधानसभा सीट से विधायक रहे राज्य आंदोलनकारी रंजीत सिंह वर्मा का सोमवार को निधन हो गया था। वह 84 वर्ष के थे। कुशल राजनीतिज्ञ और जन नेता के निधन से राज्य आंदोलनकारियों, राजनेताओं, किसानों और उनको जानने वाले हर वर्ग में शोक की लहर है।

रणजीत सिंह वर्मा 42 साल की उम्र में वर्ष 1977 में पहली बार मसूरी सीट पर जनता पार्टी के विधायक चुने गए। उस समय अविभाजित उत्तर प्रदेश में मसूरी विधानसभा क्षेत्र का दायरा कौलागढ़, डोईवाला, रायपुर व थानों से लेकर ऋषिकेश तक फैला था। इसके बाद वर्ष 1989 में वह इसी सीट से निर्दलीय विधायक रहे। 

इसके बाद जब राज्य निर्माण आंदोलन की धार वर्ष 1994 के आसपास प्रदेशभर में मंद पड़ने लगी। तब उन्होंने देहरादून में आंदोलन को नई धार दी। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष रहे रणजीत सिंह वर्मा के प्रखर नेतृत्व का जिक्र करते हुए राज्य आंदोलनकारी जयदीप सकलानी बताते हैं कि वर्मा ने पृथक राज्य के सपने को साकार करने के लिए जी जान लगा दी थी। 

उनके नेतृत्व में ताबड़तोड़ बंद, चक्का जाम, तालाबंदी, जुलूस-प्रदर्शन, ब्लैकआउट, रेल रोको जैसे आंदोलन चलाए गए। दो अक्टूबर 1994 में रामपुर तिराहा कांड में वह घायल हो गए थे और उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। उन्होंने अपना मत भी स्पष्ट कर दिया था कि जब तक पृथक राज्य की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक ही सक्रिय राजनीति में रहेंगे और इसके बाद इन सबसे दूर चले जाएंगे। तब किसी को भी इस बात का भान नहीं था कि जो कुछ भी उनके प्रिय नेता कह रहे हैं, वह अटल सत्य बन जाएगा। 

नौ नवंबर 2000 को जब पृथक राज्य का सपना पूरा हुआ तो हर छोटा-बड़ा नेता और आंदोलनकारी राजनीति में अपनी संभावनाएं टटोल रहा था। सिर्फ रणजीत सिंह वर्मा एक ऐसी शख्सियत थे, जो खामोश भाव से राजनीति को अलविदा कहने की ओर कदम बढ़ा चुके थे। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब सर्वमान्य नेता को वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया। 

सभी दल उन्हें अपने पक्ष में खड़ा करने को लेकर प्रयासरत थे। तब उन्होंने इतना ही कहा कि मेरा संकल्प राज्य निर्माण आंदोलन को उसकी मंजिल तक पहुंचाना था, न कि चुनाव लड़ना। राज्य बन गया है और इसी के साथ यह संकल्प भी पूरा हो गया। अब विधानसभा या लोकसभा चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं रही। 

उन्होंने कहा था कि दो बार का विधायक रह चुका हूं और तब की राजनीति में कुछ सिद्धांत होते थे। अब हमारे मिजाज की राजनीति रह भी नहीं गई है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने संकल्प ले लिया था कि राज्य बनने के बाद सक्रिय राजनीति से दूर चला जाऊंगा। 

हेमवती नंदन बहुगुणा के करीबी रहे वर्मा

रणजीत सिंह वर्मा राजनीति के एक और आदर्श स्तंभ हेमवती नंदन बहुगुणा के बेहद करीबी व्यक्ति रहे हैं। एक तरह से वह बहुगुणा के आदर्शों पर चलते थे और उनसे राय-मशविरा करते रहते थे। हेमवती नंदन बहुगुणा से करीब के चलते ही वह पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के भी करीबी रहे।

राजनीति से दूरी, समाज सेवा में अंत समय तक सक्रियता

रणजीत सिंह वर्मा के विशाल व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक तरफ राजनीतिक सफर के स्वर्णिमकाल को एक झटके में अलविदा कह दिया था और दूसरी तरफ समाज सेवा में उसी शिद्दत के सात्र जुटे रहे। करीब 40 वर्ष वह डोईवाला इंटर कॉलेज व आर्य कन्या इंटर कॉलेज के प्रबंधक रहे। करीब 35 वर्ष तक उन्होंने गन्ना विकास परिषद की कमान भी संभाले रखी और अंत समय तक वह रेडक्रॉस सोसाइटी के अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा भी सामाजिक स्तर पर वह विभिन्न स्तर हमेशा सक्रिय रहे।

आहत होकर कहा था, आंदोलनकारियों ने खोल दी मुठ्ठी

रणजीत सिंह वर्मा हमेशा कहा करते थे कि राज्य आंदोलनकारियों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। उनका मानना था कि जिस अवधारणा को लेकर उन्होंने पृथक राज्य की खातिर संघर्ष किया था, उसकी पूर्ति के लिए बाहर रहकर भी काम किया जा सकता है। 

वर्मा कहते थे कि आंदोलनकारियों को अपनी मुठ्ठी बंद रखनी चाहिए। इसके बाद भी जब तमाम आंदोलनकारी चुनावी रण में कूदे तो वह अपनी दूरदृष्टि से उनका अंजाम भी भांप चुके थे। तब उन्होंने कहा था कि यह मुठ्ठी अब खुल चुकी है और उनकी महत्वकांक्षा उजागर हो चुकी है। क्योंकि चंद समय के भीतर चुनाव में उनकी स्थिति भी साफ हो चुकी थी। 

तब उनकी टिप्पणी थी कि आंदोलन करना एक बात है और चुनाव जीतना अलग। रणजीत सिंह वर्मा इस बात से खासा आहत नजर आते थे कि शहीदों के सपने और मां-बहनों के त्याग वाला उत्तराखंड नहीं बन पाया है। जिस तरह के तमाम आंदोलनकारी अवसरवादिता में मग्न थे, यह रणजीत सिंह को जरा भी रास नहीं आता था। 

मुजफ्फरनगर गोलीकांड में घायल हो गए थे रणजीत

राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड में पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा भी गंभीर रूप से घायल हुए थे। तत्कालीन डीएम और एसएसपी से भिड़ने पर उन पर पुलिस ने पिस्टल तान दी थी। इसके बाद लाठीचार्ज में कई आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। 

बाद में उनको घायल साथियों के साथ स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां वह अलग राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर अड़ गए थे। इससे तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के भी हाथ पांव फूल गए थे।

उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर दो अक्टूबर 1994 को आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे। जहां रामपुर (मुजफ्फरनगर) तिराहे के पास आंदोलनकारियों को पुलिस ने रोक दिया। इस पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा अपनी कार से उतरे और बेरिकेडिंग के पास पहुंच गए। 

इस दौरान उनके साथ आंदोलनकारी स्व. वेद उनियाल, आंदोलनकारी शंकरचंद रमोला, ओमी उनियाल, रविंद्र जुगरान भी शामिल थे। पुलिस से धक्का-मुक्की शुरू हुई तो पूर्व विधायक पर पुलिस ने बंदूक तान दी। आंदोलनकारी ओम उनियाल के अनुसार पुलिस के बल प्रयोग करने के बाद भी वह भिड़ते रहे। पुलिस ने लाठीचार्ज कर उनको घायल कर दिया। इसके बाद गंभीर घायल अवस्था में पूर्व विधायक वर्मा, शंकरचंद और स्व.वेद उनियाल को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

दून से कई दिनों तक नहीं चली रेल

उत्तराखंड आंदोलन के दौरान उन्होंने रेल रोको आंदोलन चलाया था। रेल के रवाना होने के समय वे इंजन पर चढ़े गए। इसके बाद रेलवे को दून से चलने वाली ट्रेनों का शेड्यूल बदलते हुए हरिद्वार से चलाना पड़ा। कई दिनों तक हरिद्वार से ही ट्रेनों की आवाजाही हुई। 

प्रधानमंत्री को नहीं उतरने दिया जौलीग्रांट में

जौलीग्रांट में अस्पताल के उद्घाटन के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव आ रहे थे। इसकी सूचना मिलते ही रणजीत सिंह वर्मा अपने आंदोलनकारी साथियों के साथ पहुंच गए। जहां उन्होंने प्रधानमंत्री का विमान नीचे नहीं उतरने दिया। सुरक्षा बल के घेरने पर ही पीएम का जहाज उतर सका था। इस आंदोलन से दून से दिल्ली तक हड़कंप मच गया था। 

अधिकारियों में था रणजीत का खौफ 

राज्य आंदोलन के दौरान दून में स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों को बंद कराने से लेकर सड़क पर धरना-प्रदर्शन रणजीत के दिशा-निर्देश पर होते थे। कलक्ट्रेट में आने वाले अधिकारी किसी भी रणनीति पर निर्णय लेने से पहले रणजीत सिंह वर्मा से राय लेते थे। आंदोलन से जुड़ी सरकारी मीटिंग बिना उनके नहीं होती थी।

विधायक और आंदोलनकारी की पेंशन नहीं ली

पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा न केवल लोकप्रिय नेता थे, बल्कि उनके उसूल और इरादे भी मजबूत थे। यही कारण रहा कि दो बार विधायक और वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी होने के बावजूद वे पेंशन नहीं लेते थे। इसके उलट वह अपनी जेब से पैसा खर्च कर गरीबों की मदद करते थे। 

राज्य आंदोलनकारी चिह्निकरण समिति के सदस्य रहे ओमी उनियाल बताते हैं कि पूर्व विधायक वर्मा अपने उसूलों के पक्के थे। दो बार विधायक बनने पर उनको पेंशन मिली, लेकिन उन्होंने साफ इन्कार कर दिया था। कहा कि जनता की सेवा करने के लिए कोई पैसा लेना टैक्स जैसा है। 

यही नहीं, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी होने के नाते तत्कालीन जिलाधिकारी ने उनकी पेंशन लगाई। पेंशन लेने का अनुरोध किया तो वह जिलाधिकारी पर भड़क गए। कहा कि जब आवेदन नहीं किया तो मेरी पेंशन कैसे लगा दी। पूर्व विधायक का कहना था कि राजनीति में आने का मकसद सीधा जनता की सेवा है। इसके बदले पेंशन लेना ठीक नहीं है। वह राज्य विधायकों से लेकर सांसदों की पेंशन में हर बार बढ़ोत्तरी की भी खिलाफत करते थे। कहते थे कि इससे राज्य को ही नुकसान होगा। 

जेल जाने से घर तक रखते थे ख्याल 

राज्य आंदोलन के दौरान जेल भरो आंदोलन में शामिल आंदोलनकारियों की पूरी जिम्मेदारी पूर्व विधायक वर्मा उठाते थे। जेल जाने के दौरान खाना, कपड़ा आदि की व्यवस्था करते थे। यही नहीं, जेल में बंद आंदोलनकारियों के परिजनों तक हर छोटी-बड़ी जानकारी देने की जिम्मेदारी भी संभालते थे। परिजनों का हौसला बढ़ाने के लिए भी वह उनके घर जाते थे। 

पिता से सीखी जनसेवा 

पूर्व विधायक वर्मा के पिता स्व.गुलाब सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। देश भक्ति के साथ समाज हित को लेकर उनके पिता उनसे चर्चा करते थे। यही कारण रहा कि वह पिता के पदचिह्नों पर आगे बढ़े। उनके बड़े बेटे अजय वर्मा बताया कि उनके पिता हमेशा अनुशासन, समाज सेवा और गरीबों की मदद के लिए प्रेरित करते थे। इसके अलावा समाज को संदेश देने वाली घटनाओं का जिक्र भी अक्सर परिवार वालों के साथ करते थे। 

किसानों की आवाज थे रणजीत

रणजीत सिंह वर्मा राज्य आंदोलन में तो अग्रणी रहे ही, उन्होंने किसानों के हितों की सुरक्षा को भी हमेशा आवाज बुलंद की। 25 वर्षों तक गन्ना परिषद के चेयरमैन पद पर रहते हुए उन्होंने किसानों की हर समस्या पर सड़क से सदन तक आवाज उठाई। यही कारण रहा कि सरकारों को किसानों के हित में कई फैसले लेने पड़े।

मूल रूप से डोईवाला विकासखंड के अपर जौलीग्रांट निवासी रणजीत सिंह वर्मा के पिता स्वर्गीय गुलाब सिंह स्वतंत्रता सेनानी रहे। स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा तीन भाइयों आदित्य व जीवंत ङ्क्षसह में तीसरे नंबर के थे। 

उत्तर प्रदेश में विधायक रहते हुए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश स्व. नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में किसानों के हितों को देखते हुए डोईवाला चीनी मिल का 1998 में कायाकल्प भी कराया था। वर्मा ने 1942 में गन्ना समिति के चुनाव का बहिष्कार कर कई बदलाव करवाए थे। 

यही नहीं गन्ना किसानों के हितों के लिए भी वे सदैव संघर्षरत रहे। किसानों के गन्ना भुगतान से लेकर गन्ने की उन्नत प्रजाति के लिए प्रेरित करने में भी अहम भूमिका थी। अभी भी वह जौलीग्रांट स्थित अपनी सैकड़ों बीघा जमीन पर खेती-बाड़ी देखने आते थे। डोईवाला चीनी मिल में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला के निर्माण में भी उनकी अग्रणी भूमिका रही। 

इतना ही नहीं तत्कालीन गन्ना सचिव विनोद शर्मा गन्ने व चीनी मिल से संबंधित मामलों में उनसे सलाह भी लेते थे। डोईवाला चीनी मिल के अधिशासी निदेशक मनमोहन ङ्क्षसह रावत ने बताया कि गन्ने की उन्नतशील प्रजाति को किसानों तक पहुंचाने में भी रणजीत सिंह का योगदान रहा।

इन पदों पर निभाई जिम्मेदारी

-1966 से लेकर 2018 तक पब्लिक इंटर कॉलेज डोईवाला के प्रबंधक। 

-गन्ना समिति डोईवाला के 2008 तक चेयरमैन रहे। 

-रेडक्रॉस सोसायटी के कई सालों तक अध्यक्ष। 

-स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संरक्षण पद पर रहे। 

-संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय अध्यक्ष रहे। 

-बाल वनिता आश्रम के सदस्य की जिम्मेदारी निभाई।

जनांदोलनों के पुरोधा वर्मा के निधन पर जताया शोक

उत्तराखंड आंदोलन के पुरोधा रहे पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा के निधन पर आंदोलनकारियों समेत विभिन्न संगठनों ने शोक जताया। कहा कि देश और राज्य में उनके किए गए कार्य हमेशा समाज के चिंतकों, राजनेताओं के बीच नजीर रहेंगे। 

राज्य आंदोलनकारी मंच ने पूर्व विधायक और राज्य आंदोलन के पुरोधा रहे रणजीत वर्मा के निधन की सूचना मिलने पर बड़ी संख्या में आंदोलनकारी उनके राजेंद्रनगर स्थित आवास पहुंचे। जहां उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। इस मौके पर वेद प्रकाश शर्मा, सुशीला ध्यानी, डीएस गुसाईं, जगमोहन नेगी, ओमी उनियाल, बलवीर नेगी, विक्रम कंडारी, रामलाल खंडूड़ी, रविंद्र जुगरान, जयदीप सकलानी, प्रदीप कुकरेती, जीतपाल, विनोद असवाल, आदि ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया। इधर, पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक वर्मा, वेदिका वेद आदि ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया। 

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मुख्यमंत्री ने घर पहुंचकर दी श्रद्धांजलि 

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूर्व विधायक रणजीत ंिसह वर्मा के राजेंद्रनगर स्थित आवास पर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि पृथक राज्य के लिए रणजीत सिंह वर्मा के संघर्षों को हमेशा याद रखा जाएगा। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल, विधायक हरबंस कपूर, गणेश जोशी समेत अन्य ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

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