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Uttarakhand Political Crisis: जानिए, त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्‍तीफे के पीछे क्या रही वजह, यहां देखें 10 कारण

Uttarakhand Political Crisis मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई अहम फैसले लिए तो तमाम ऐसे कारण भी रहे जो गले की फांस बने। डबल इंजन से तालमेल बिठाने में कहीं चूक रही तो अपने सहयोगियों व विधायकों के साथ ही जनता की नब्ज पकड़ने के मामले में भी।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Tue, 09 Mar 2021 05:00 PM (IST)Updated: Tue, 09 Mar 2021 09:53 PM (IST)
Uttarakhand Political Crisis: जानिए, त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्‍तीफे के पीछे क्या रही वजह, यहां देखें 10 कारण
जानिए त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफ के पीछे क्या रही वजह।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Political Crisis  तीन साल 11 माह और 21 दिन के कार्यकाल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई अहम फैसले लिए तो तमाम ऐसे कारण भी रहे, जो गले की फांस बने। डबल इंजन से तालमेल बिठाने में कहीं चूक रही तो अपने सहयोगियों व विधायकों के साथ ही जनता की नब्ज पकड़ने के मामले में भी। मत्रिमंडल में रिक्त पदों को न भरे जाने से विधायकों की आस अधूरी रही, तो बेलगाम नौकरशाही के किस्से भी सुर्खियां बनते रहे। देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड, जिला विकास प्राधिकरणों का गठन, गैरसैण कमिश्नरी समेत ऐेसे तमाम फैसले रहे, जिन्हें लेकर जनमानस में विरोध के सुर उठे। भाजपा हाईकमान ने इन सब परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए इनसे पार पाने के लिए उत्तराखंड को झारखंड बनने से बचाने के मद्देनजर सख्त फैसला लिया।

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ये रहे प्रमुख कारण

  • 1 विभागों का असमान बंटवारा 

प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद विभागों का असमान बंटवारा निरंतर सुर्खियों में रहा। मुख्यमंत्री ने 40 से अधिक विभाग अपने पास रखे। यदि इनका बंटवारा हो गया होता तो इनसे संबंधित कार्यों की रफ्तार भी बढ़ती।

  • 2 मंत्रिमंडल विस्तार

त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल ने 18 मार्च 2017 को शपथ ली तो, तब दो मंत्री पद रिक्त रखे गए। बाद में संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत के निधन से रिक्त पदों की संख्या तीन हो गई। हालांकि, इन्हें भरने की चर्चा तो होती रही, मगर इन्हें भरा नहीं गया।

  • 3 सबका साथ-सबका विश्वास

सरकार ने सबका साथ-सबका विश्वास के मूल मंत्र पर चलने की बात तो कही, मगर इसे कार्यरूप में परिणत करने में कहीं न कहीं चूक जरूर रह गई। नतीजतन, कई अहम फैसलों की भनक मंत्रिमंडल के सहयोगियों तक को नहीं लग पाई।

  • 4 संघ से नहीं बैठा पाए तालमेल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिम्मेदारी निभाने के बावजूद संघ के बड़े पदाधिकारियों से मुख्यमंत्री तालमेल नहीं बैठा पाए। वह भी यह जानते हुए कि भाजपा की मातृ संस्था तो संघ ही है। संघ की ओर से देवस्थानम बोर्ड समेत अन्य मसलों पर आपत्ति जताने के बावजूद इस बारे में संघ पदाधिकारियों से विमर्श की कमी भी निरंतर खटकती रही।

  • 5 बेलगाम नौकरशाही

पिछले चार सालों के दौरान बेलगाम नौकरशाही भी सुर्खियों में रही। मंत्री, विधायकों से लेकर जनमानस तक नौकरशाही के रवैये से जूझता रहा। फिर भी नौकरशाही के पेच कसने में सुस्ती का आलम रहा।

  • 6 देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम

चारधाम की व्यवस्थाएं दुरुस्त करने और श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से सरकार उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम लेकर आई, मगर हक-हकूकधारियों ने शुरुआत से ही इसका विरोध किया। विरोध का क्रम अभी तक थमा नहीं है।

  • 7 कुंभ की अधूरी व्यवस्था

कोरोना के साये में हरिद्वार में होने जा रहे कुंभ के दिव्य-भव्य आयोजन के सरकार ने दावे तो किए, मगर तमाम कार्य अभी तक पूरे नहीं हो पाए हैं। कोरोना संक्रमण की रोकथाम की व्यवस्थाएं भी अभी तक पूरी तरह आकार नहीं ले पाई हैं।

  • 8 गैरसैंण कमिश्नरी

विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री ने गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा की। इसमें गढ़वाल व कुमाऊं के दो-दो जिलों को शामिल करने का इरादा जाहिर किया गया है, इसे लेकर कुमाऊं मंडल में तीखी प्रतिक्रिया हुई है।

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  • 9 जिला विकास प्राधिकरण

सभी जिलों में गठित जिला विकास प्राधिकरणों की जटिलताओं ने आमजन को मुश्किलों में डाला हुआ है। नक्शे पास होने में विलंब के साथ ही कई टैक्स भी उन्हें झेलने पड़ रहे हैं। पूर्व में सत्तापक्ष व विपक्ष के सदस्य भी प्राधिकरणों को लेकर मुखर रहे हैं।

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  • 10 स्लाटर हाउस

धार्मिक आस्था के केंद्र हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस को लेकर भी सरकार निशाने पर रही। हालांकि, स्लाटर हाउस को बंद करने का अधिकार नगर निकायों को दिया गया, मगर वे कदम नहीं उठा पाए। वह भी तब जबकि हरिद्वार जिले के विधायकों ने भी स्लाटर हाउस बंद करने की मांग उठाई। लंबे इंतजार के बाद अब जाकर हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस बंद करने के आदेश किए गए हैं।

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