Uttarakhand News: रोड और रेल के बाद अब रोप वे निर्माण से आवागमन में होगी सुगमता
केदारनाथ व हेमकुंड साहिब रोप वे के तैयार होने पर केदारनाथ धाम और हेमकुंड साहिब की यात्रा क्रमश 30 मिनट व 45 मिनट हो जाएगा। हाल में प्रधानमंत्री ने माणा गांव से अपने संबोधन में कहा भी था ‘आस्था और आध्यात्मिकता के पुनर्निर्माण का एक और पक्ष है।

देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड, एक ऐसा विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला राज्य, जिसके 71 प्रतिशत से अधिक भूभाग में वन क्षेत्र है। साक्षरता दर जरूर 80 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क संपर्क के दृष्टिकोण से अभी भी अपेक्षाकृत काफी पिछड़ा हुआ है। अब अगर देश के प्रधानमंत्री स्वयं यहां सीमांत के एक गांव तक पहुंचकर कहते हैं कि सीमा पर बसा प्रत्येक गांव देश का अंतिम नहीं, पहला गांव है और सरकार इसी सोच को आधार बना विकास का खाका तैयार कर रही है, तो भविष्य के लिए उम्मीद तो बंधती ही है। कनेक्टिविटी यानी संपर्क को विकास की पहली सीढ़ी बता अगर प्रधानमंत्री कहते हैं कि रेल, रोड और रोप वे के माध्यम से उत्तराखंड प्रगति के नए सोपान तय करेगा, तो निश्चित रूप से आने वाले कुछ वर्षों में उत्तराखंड देश का एक आदर्श राज्य बन सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दीपावली से पहले केदारनाथ और बदरीनाथ पहुंचे। केदारनाथ में उन्होंने पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया। दोनों धाम में उन्होंने 3400 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी। इस बार उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों के विषम भूगोल वाले क्षेत्रों में आवागमन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण दो रोप वे परियोजनाओं का शिलान्यास किया। इनमें 1267 करोड़ की लागत से बनने वाली 9.7 किमी लंबी गौरीकुंड-केदारनाथ रोप वे और 1163 करोड़ की लागत से तैयार होने वाली 12.4 किमी लंबी गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब रोप वे परियोजनाएं शामिल हैं।

केदारनाथ और हेमकुंड साहिब हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इन रोप वे के निर्माण से श्रद्धालुओं के समय और धन, दोनों की भारी बचत होगी। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे उत्तराखंड का भूगोल कम विषमताओं वाला नहीं है। विशुद्ध रूप से पर्वतीय भूगोल वाले आठ जिलों में जनजीवन अधिक विकट है और पलायन भी इन्हीं क्षेत्रों में ज्यादा है। ऐसे में विकास और रोजगार के साधन मुहैया कराने की दिशा में पहली सीढ़ी कही जाने वाली सड़कों का वहां तक पहुंचना आवश्यक है। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में सुदूरवर्ती क्षेत्रों को भी सड़क संपर्क से जोड़ा गया है। इससे वहां के जीवन स्तर में सुधार आया है तो स्वरोजगार के अवसरों का सृजन भी हुआ है।
पहाड़ की जीवनरेखा कही जाने वाले सड़कों के विस्तार पर केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारें निरंतर फोकस कर रही हैं। चारधाम आल वेदर रोड और केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना की बात हो या फिर केंद्रीय सड़क निधि, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना अथवा राज्य सेक्टर व जिला सेक्टर की, सड़कों का जाल निरंतर बिछ रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना नई उम्मीद जगाने वाली है। इस परियोजना का कार्य तेजी से चल रहा है। इसके पूरा होने से ऋषिकेश से कर्णप्रयाग की दूरी दो घंटे में पूर्ण हो जाएगी, अभी इस दूरी को सड़क मार्ग से तय करने में लगभग पांच घंटे लगते हैं। इससे तीर्थाटन व पर्यटन को भी पंख लगेंगे।

कारण यह कि यह मार्ग चार धाम को जोड़ने वाला है। ऐसे में चारधाम आने वाले यात्रियों को सुविधा मिलेगी। माना जा रहा है कि यह परियोजना राज्य के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। साथ ही इससे पहाड़ों में रेल नेटवर्क के विस्तार की राह भी खुलेगी। सड़क व रेल के साथ ही इस पर्वतीय प्रदेश में अब रोप वे कनेक्टिविटी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। असल में देश के कई क्षेत्रों में रोप वे कनेक्टिविटी ने वहां की तस्वीर बदली है। इस कड़ी में केदारनाथ व हेमकुंड साहिब के अलावा पांच अन्य स्थानों पर रोप वे प्रस्तावित हैं। सरकार ने रोप वे के लिए सड़क राजमार्ग एवं परिवहन मंत्रालय के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया है।
केदारनाथ व हेमकुंड साहिब रोप वे के तैयार होने पर केदारनाथ धाम और हेमकुंड साहिब की यात्रा क्रमश: 30 मिनट व 45 मिनट हो जाएगा। इससे यात्रियों के लिए राह सुगम होगी। हाल में प्रधानमंत्री ने माणा गांव से अपने संबोधन में कहा भी था, ‘आस्था और आध्यात्मिकता के पुनर्निर्माण का एक और पक्ष है। वह है पहाड़ के निवासियों के ईज आफ लिविंग और रोजगार का। जब पहाड़ में रोड, रेल और रोप वे पहुंचते हैं तो अपने साथ रोजगार और विकास लेकर आते हैं। ये पहाड़ का जीवन भी शानदार, जानदार और आसान बना देते हैं।’ सरकार संपर्क के इन तीनों ही माध्यमों को सशक्त बनाने में जुटी है।
आखिर प्रश्न तीर्थाटन-पर्यटन के साथ ही स्थानीय निवासियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने और आर्थिकी संवारने का जो है। महत्वपूर्ण यह कि उत्तराखंड के सीमांत गांवों के लोग प्रथम सुरक्षा प्रहरी भी हैं। ऐसे में सीमांत क्षेत्र के गांवों से पलायन न हो, इसके लिए आवश्यक है कि वहां मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार, स्वरोजगार के अवसर सृजित किए जाएं। इसमें संपर्क सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अब इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने हाल के दौरे में चीन सीमा से लगे माणा गांव में सीमांत की दो सड़कों की आधारशिला रखते हुए कहा था कि उनके लिए सीमा पर बसा प्रत्येक गांव देश का अंतिम नहीं, बल्कि प्रथम गांव है। साफ है कि उनकी मंशा सीमांत क्षेत्रों को विकास की किरणों से रोशन करने की है। इसमें कनेक्टिविटी का मूल मंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, इसमें संदेह नहीं है।
[स्टेट ब्यूरो चीफ, उत्तराखंड]

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