पर्यावरण के लिए खतरा भी बन रहे ई-रिक्शा, घटिया बैटरी के उपयोग से पड़ रहा दुष्प्रभाव
Uttarakhand News पर्यावरण के लिए ई-रिक्शा खतरा भी बन रहे हैं। ई रिक्शा संचालक घटिया बैटरी खरीद रहे हैं। इसके कारण हवा पानी एवं मिट्टी पर दुष्प्रभाव पड़ रहा। देहरादून में तीन दर्जन से ज्यादा जगह पर स्थानीय बैटरी बन रही है।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून। पर्यावरण को ध्यान में रखकर संचालित किए जा रहे ई-रिक्शा पर्यावरण संरक्षण के लिए खतरा भी बनते जा रहे। घटिया बैटरी के उपयोग के कारण हवा, पानी एवं मिट्टी पर दुष्प्रभाव पड़ रहा।
दरअसल, बैटरी को खराब होने पर उसे दोबारा उपयोग लायक बनाने या जलाने से हवा और मिट्टी के लिए बेहद खतरनाक लेड धातु का प्रदूषण फैल रहा है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रही संस्थाओं की रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया जा चुका है।
शहर में पेट्रोल-डीजल से फैलने वाला प्रदूषण कम करने के लिए साल-2017 में ई-रिक्शा का संचालन शुरू हुआ था। केंद्र सरकार की फ्री-पालिसी के तहत ई-रिक्शा के परमिट व पंजीकरण पर कोई प्रतिबंध न होने से इनकी संख्या धड़ाधड़ बढ़ती चली गई।
वर्तमान में दून शहर में तीन हजार से अधिक ई-रिक्शा पंजीकृत हैं। इनकी आड़ में दौड़ रहे गैर-पंजीकृत ई-रिक्शा भी कम नहीं। ई-रिक्शा को आमतौर पर पर्यावरण की सेहत का ध्यान रखने वाला सार्वजनिक परिवहन सुविधा माना जाता है। पेट्रोल एवं डीजल से संचालित वाहन जैसा धुआं इनसे नहीं निकलता। लेकिन, घटिया बैटरी प्रयोग करने के कारण ई-रिक्शा भी अब पर्यावरण के लिए खतरा बनते जा रहे।
एक संस्था के सर्वे के अनुसार, दून में चल रहे अधिकांश ई-रिक्शा में घटिया किस्म की बैटरी प्रयोग की जा रही। यह बैटरी छह से आठ महीने में खराब हो जाती है। इन रिक्शा में प्रयोग होने वाली स्थानीय बैटरी करीब 20 हजार से 30 रुपये तक आती है, जबकि ब्रांडेड कंपनियों की बैटरी की कीमत लगभग 50 हजार रुपये तक होती है।
कीमतों में अंतर के चलते बड़े पैमाने पर स्थानीय बैटरी का प्रयोग रिक्शा संचालक कर रहे। संचालकों ने बताया कि पुरानी बैटरी को लौटाकर 18 से 20 हजार रुपये तक में उन्हें नई बैटरी का पूरा सेट मिल जाता है। बैटरी के चार सेट ई-रिक्शा में लगते हैं।
तीन दर्जन से ज्यादा जगह पर बन रही स्थानीय बैटरी
सूत्रों की मानें तो ई-रिक्शा में प्रयोग की जा रही घटिया किस्म की बैटरी दून शहर में करीब तीन दर्जन जगह बनाई जा रही है। इसमें त्यागी रोड, ट्रांसपोर्टनगर, गांधी रोड, हरिद्वार बाइपास व अधोईवाला आदि क्षेत्र शामिल हैं।
इस तरह हवा में फैलता है प्रदूषण
स्थानीय स्तर पर अवैध रूप से बैटरी को ठीक करने या बैटरी बनाने वाले व्यापारी ही पुरानी बैटरी खरीद लेते हैं। फिर उसे गलाने के बाद उसमें से लेड की प्लेट अलग कर ली जाती है। प्लास्टिक कवर, लेड प्लेट के साथ ही वायर बाक्स व सल्फ्यूरिक एसिड आदि लगाकर नई बैटरी तैयार कर दी जाती है।
पुरानी बैटरी को गलाने की प्रक्रिया करने के दौरान खतरनाक लेड धातु के कण मिट्टी और हवा में घुल जाते हैं जो सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं। इससे बच्चों के साथ ही गर्भवती महिलाओं को काफी खतरा रहता है। महिलाओं में गर्भपात और बच्चों में याददाश्त की कमी की शिकायत का अंदेशा रहता है।
लिथियम बैटरी है बेहतर विकल्प
लेड बैटरी की तुलना में लिथियम बैटरी ई-रिक्शा के लिए बेहतर विकल्प बताई जा रही। दरअसल, लिथियम बैटरी को रिक्शा की छत पर रख सौर ऊर्जा से चार्ज किया जा सकता है। इसके अलावा इसकी आयु भी करीब चार साल तक की होती है और सौर ऊर्जा के कारण यह लगातार चार्ज भी होती रहती है।
लिथियम बैटरी हल्की होती है और यह चार्ज भी जल्दी होती है। साथ ही लेड एसिड बैटरी 50 प्रतिशत डिस्चार्ज होने के बाद काम करना बंद कर देती है, मगर लिथियम बैटरी 95 प्रतिशत डिस्चार्ज के बाद भी काम करती रहती है।