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उत्तराखंड की एफआरए से छूट को केंद्र में दस्तक

उत्तराखंड में वनाधिकार अधिनियम (एफआरए) ने भी मुश्किलें खड़ी की हुई हैं। इस पर गहनता से मंथन चल रहा है और सरकार जल्द ही केंद्र की चौखट पर दस्तक देगी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 30 Oct 2017 09:21 PM (IST)Updated: Tue, 31 Oct 2017 04:21 AM (IST)
उत्तराखंड की एफआरए से छूट को केंद्र में दस्तक
उत्तराखंड की एफआरए से छूट को केंद्र में दस्तक

देहरादून, [केदार दत्त]: कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में इस वजह से तो विकास कार्यों में अड़ंगा लग ही रहा, वनाधिकार अधिनियम (एफआरए) ने भी मुश्किलें खड़ी की हुई हैं। खासकर, वन भूमि हस्तांतरण के मामलों में। एफआरए में व्यवस्था है कि वन क्षेत्र से गुजरने वाली किसी भी परियोजना के लिए पहले उस इलाके के गांवों के निवासियों से अनापत्ति ली जाए। इसमें आ रही दिक्कतों को देखते हुए राज्य सरकार अब यहां की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वन भूमि हस्तांतरण में एफआरए से छूट चाहती है। इस पर गहनता से मंथन चल रहा है और सरकार जल्द ही केंद्र की चौखट पर दस्तक देगी।

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विकास कार्यों में आ रही अड़चनों को देखते हुए अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर से ही उत्तराखंड में वन कानूनों में शिथिलता की मांग उठती रही है। वजह यह कि विभिन्न योजनाओं-परियोजनाओं के लिए जमीन का रास्ता वन भूमि से होकर ही गुजरता है। ऐसे में वन भूमि हस्तांतरण की राह में रोड़े अटकते आए हैं। इस बीच 2006 में बने वन अधिकार अधिनियम के 2008 से लागू होने के बाद यह परेशानी और बढ़ गई। कारण यह कि तब से किसी भी योजना के लिए इस अधिनियम की भावना के अनुसार संबंधित क्षेत्र में पडऩे वाले गांवों के निवासियों की अनापत्ति तीन स्तरों ग्राम, ब्लाक और जिला स्तर पर अनिवार्य की गई है।

यह एनओसी लेने में ही राज्य सरकार को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। विभिन्न योजनाओं व परियोजनाओं में एनओसी न मिलने के कारण मामले लटक रहे हैं। हाल में केंद्र ने वन भूमि हस्तांतरण के जिन 317 मामलों को सीज किया, उनमें भी अधिकांश में एनओसी नहीं थी। इसके अलावा वर्ष 2014 से अब तक लंबित पड़े लगभग 300 मामलों का आलम भी इससे जुदा नहीं है।

इस सबको देखते हुए राज्य सरकार चाहती है कि वन भूमि हस्तांतरण में उसे एफआरए से छूट मिले। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत के अनुसार इस बारे में गहनता से मंथन चल रहा है। जल्द ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री से मुलाकात कर उनके समक्ष एफआरए के कारण राज्य में आ रही वन भूमि हस्तांतरण संबंधी कठिनाई रखी जाएगी। उन्हें प्रस्ताव भी सौंपा जाएगा। वजह ये कि इस अधिनियम में केवल केंद्र सरकार ही कुछ शिथिलता दे सकती है।

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