Coronavirus की जांच में हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा से भी पीछे है उत्तराखंड
उत्तराखंड में हर रोज कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं। इन हालात में भविष्य के जोखिम को कम करने के लिए अब जांच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है।
देहरादून, जेएनएन। पिछले दस दिन से उत्तराखंड में हर रोज कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं। इन हालात में भविष्य के जोखिम को कम करने के लिए अब जांच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन, प्रदेश में इससे उलट जांच की रफ्तार अभी भी मंद पड़ी हुई है। पर्वतीय जिलों में तो नहीं के बराबर सैंपलिंग की जा रही है। पूरे प्रदेश में भी रोजाना 325 से 350 सैंपल ही जांचे जा रहे हैं। तुलना करें तो इस मामले में हम जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा सहित कई राज्यों से पीछे चल रहे हैं।
उत्तराखंड में कोरोना का पहला मामला 15 मार्च को सामने आया था। यानी राज्य में कोरोना की दस्तक हुए दो माह से अधिक का समय बीत चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जांच की स्थिति पहले की तुलना में बेहतर हुई है, लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा समय में चुनौतियां भी कई गुना बढ़ गई हैं। एक तरफ जहां लॉकडाउन में ढील के कारण प्रवासियों के आने का सिलसिला जारी है, वहीं बाजारों में भी भीड़ जुटने लगी है। शारीरिक दूरी के पालन को लेकर भी लोगों में अब पहले जैसी गंभीरता नहीं दिख रही। टेस्टिंग का दायरा नहीं बढ़ाने का नुकसान यह है कि बिना लक्षण वाले लोग कोरोना फैलाते रहेंगे। इससे संक्रमण के प्रसार पर लगाम लगाना मुश्किल होगा।
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि टेस्ट बढ़ने से मरीजों का आंकड़ा बेशक बढ़ेगा, मगर ऐसा करना बड़ी आबादी को प्रभावित होने से बचाने के लिए बेहद जरूरी है। कम टेस्ट होने का खतरा यह है कि पहचान न होने के कारण कई संक्रमित व्यक्ति अंजाने में बीमारी फैलाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि एक करोड़ की जनसंख्या वाले उत्तराखंड में अभी तक 13870 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। जबकि करीब 69 लाख की आबादी वाले पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में यह संख्या 17417 है। त्रिपुरा की जनसंख्या महज 37 लाख है, लेकिन वहां भी 13 हजार से अधिक सैंपल लिए जा चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर तो जांच के मामले में देश में अग्रणी साबित हुआ। 1.22 करोड़ की जनसंख्या वाले इस राज्य में अब तक तकरीबन 80 हजार टेस्ट किए गए हैं। वहां पूल टेस्टिंग के माध्यम से जांच का दायरा बढ़ाया गया। प्रदेश सरकार को भी इस पर विचार करना होगा।
पांच लैब में 1084 सैंपल पेंडिंग
प्रदेश से अब तक कुल 13870 सैंपल कोरोना जांच के लिए लैब भेजे गए हैं। इनमें 878 रिपीट सैंपल भी शामिल हैं। अभी तक 11812 मामलों में जांच रिपोर्ट निगेटिव और 96 की पॉजिटिव मिली है। 1084 सैंपलों की रिपोर्ट का अभी इंतजार है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि वर्तमान में जिन चार सरकारी लैब में कोरोना की जांच हो रही है उनकी क्षमता प्रतिदिन करीब पांच सौ जांच की है। जबकि इससे अधिक संख्या में सैंपल जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। सैंपल की अधिकता की वजह से ही रिपोर्ट पेंडिंग हैं।
कोरोना से निपटने को अभी प्रशिक्षितों से ही सहयोग
कोरोना से जंग को अभी शासन ने केवल प्रशिक्षित लोगों पर ही भरोसा है। फिलहाल शासन इसके लिए स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने के पक्ष में नहीं है। निकट भविष्य में जरूरत पड़ने पर इस दिशा में कदम उठाया जाएगा।
केंद्र सरकार ने सभी प्रदेशों को कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। इनमें एक निर्देश कोरोना से निपटने के लिए पुलिस के अलावा अन्य लोगों को प्रशिक्षित करना भी है। इनमें एनसीसी, एनएसएस, आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं के अलावा स्वयंसेवकों को भी शामिल किया गया है। प्रदेश में अभी कोरोना से लड़ने में स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा पुलिस, होमगार्ड और पीआरडी के अलावा एनसीसी, आंगनबाड़ी के साथ ही आशा कार्यकर्ताओं की मदद ली जा रही है। इन्हीं को फौरी तौर पर प्रशिक्षित किया गया है। गांवों में भी ये ही लोगों को क्वारंटाइन करने समेत अन्य कार्यों में शासन व प्रशासन का सहयोग कर रहे हैं।
पहले शासन की योजना स्वयंसेवकों को भी इसके लिए प्रशिक्षित करने की थी, मगर अभी इससे कदम पीछे खींच लिए गए हैं। माना यह जा रहा है कि जिन्हें प्रशिक्षित किया गया है वे कहीं न कहीं विभाग के नियंत्रण में होते हैं। ऐसे में ये दिशा-निर्देशों का बखूबी पालन करते हैं। स्वयं सेवकों के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। ऐसे में ये अनजाने में खुद संक्रमण का शिकार होने के साथ ही दूसरे के लिए भी खतरा बन सकते हैं। सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी का कहना है कि अभी प्रशिक्षित कार्मिकों का ही सहयोग लिया जा रहा है। निकट भविष्य में यदि स्वयं सेवकों की जरूरत पड़ेगी तभी इन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा।