कैंट बोर्ड ने बचाई लाज, निकायों ने लुटाई
देशभर की रैंकिंग से पहले शहरी विकास मंत्रालय ने विभिन्न कैटेगरी में 52 शहरों को अवार्ड दिए तो हमारे किसी भी नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत का नाम दूर-दूर तक नजर नहीं आया।
देहरादून, [जेएनएन]: स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में 4041 शहरों की रैंकिंग जारी होने से पहले उत्तराखंड को सफाई के मोर्चे पर बड़ा झटका लगा है। देशभर की रैंकिंग से पहले शहरी विकास मंत्रालय ने विभिन्न कैटेगरी में 52 शहरों को अवार्ड दिए तो हमारे किसी भी नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत का नाम दूर-दूर तक नजर नहीं आया। वह तो गनीमत रही कि उत्तराखंड का नाम लेने को यहां के तीन कैंट बोर्ड (अल्मोड़ा, रानीखेत व नैनीताल) के नाम अवार्ड सूची में शामिल हैं। हालांकि इनकी स्वच्छता में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
बुधवार को शहरी विकास मंत्रालय ने स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 में उत्तराखंड से 87 नगर निकायों व नौ कैंट बोर्ड ने हिस्सा लिया था। अब वह समय आ गया है कि स्वच्छता के मोर्चे पर हमारे शहर कहां खड़े हैं, क्योंकि अब 4041 शहरों की रैंकिंग जारी की जानी है। हालांकि, इससे पहले मंत्रालय ने राष्ट्रीय अवार्ड, उत्कृष्ट प्रदर्शन वाले शहर, जोनवार अवार्ड, सबसे स्वच्छ राजधानी वाला शहर व कैंट बोर्ड श्रेणी समेत कुल नौ श्रेणी में अवार्ड दिए। इनमें से किसी भी श्रेणी में उत्तराखंड के किसी नगर निकाय को जगह नहीं मिल पाई और यह इस बात का संकेत भी है कि राष्ट्रीय रैंकिंग में हमारे शहर किस तरह का प्रदर्शन करेंगे। यह स्थिति तब है जब मुख्यमंत्री प्रतियोगिता शुरू होने से पहले ही यह घोषणा कर चुके थे कि बेहतर प्रदर्शन करने वाले शहर को नकद पुरस्कार भी दिया जाएगा।
पिछली रैंक 316, अबकी बार भी सवाल
पिछले स्वच्छ सर्वेक्षण में देहरादून नगर निगम को 316वीं रैंक प्राप्त हुई थी। इसके बाद नगर निगम समेत सरकार भी शहर को बेहतर बनाने में जुट गई थी। स्वच्छ सर्वेक्षण से ऐन वक्त पहले भी हमारे अधिकारी बेहतर प्रदर्शन का दंभ भरते दिखे। हालांकि, अभी राष्ट्रीय स्तर पर रैंकिंग जारी नहीं की गई है, मगर अवार्ड स्तर पर हमारे निकायों के औंधे मुंह गिरने की आशंका और बढ़ गई है।
साथ अस्तित्व में आए राज्यों को अवार्ड
उत्तराखंड के साथ ही अस्तित्व में आए झारखंड व छत्तीसगढ़ के शहरों को भी अवार्ड मिले हैं। झारखंड के सात व छत्तीसगढ़ के दो शहर अवार्ड से नवाजे गए हैं। ऐसे में राज्य गठन की 18 साल की अवधि में भी किसी एक शहर को स्वच्छता के मोर्चे पर अव्वल लाने में हम नाकाम रहे हैं। सवाल यह भी कि इन दोनों राज्य को भी खुद को बेहतर बनाने में हमारे जितना ही समय मिला।
किसके भरोसे भर रहे पर्यटन प्रदेश का दंभ
हम उत्तराखंड के पर्यटन प्रदेश होने का दंभ भरते रहते हैं। जबकि हकीकत यह है कि स्वच्छता के मोर्चे पर हम हर बार फिसड्डी साबित होते रहे हैं। पर्यटन के लिए सबसे पहली शर्त होती है स्वच्छ परिवेश और हमारा परिवेश कैसा है, आंकड़े इसकी गवाही स्वयं दे रहे हैं।
यह भी पढ़ें: फेसबुक पर दिखावा करने वाले सब गायब, शहर में गंदगी का अंबार
यह भी पढ़ें: सफाई कर्मचारी अडिग, जनता ने संभाला सफाई का मोर्चा
यह भी पढ़ें: सफार्इ कर्मचारियों से वार्ता विफल, अब सरकार करेगी ये व्यवस्था