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उत्तराखंड: 90 करोड़ ग्रांट के बाद भी कॉलेजों पर सरकार का नियंत्रण नहीं, अनुदान पर विचार शुरू

90.25 करोड़ का भारी-भरकम अनुदान पाने के बावजूद सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच खींचतान खत्म नहीं हो रही। 18 में से 17 डिग्री कॉलेजों के विश्वविद्यालय से जुड़ने के बजाय केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता जारी रखने के फैसले ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 02:23 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 02:23 PM (IST)
उत्तराखंड: 90 करोड़ ग्रांट के बाद भी कॉलेजों पर सरकार का नियंत्रण नहीं, अनुदान पर विचार शुरू
90 करोड़ ग्रांट के बाद भी कॉलेजों पर सरकार का नियंत्रण नहीं।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। 90.25 करोड़ का भारी-भरकम अनुदान पाने के बावजूद सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों और सरकार के बीच खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कुल 18 में से 17 डिग्री कॉलेजों के राज्य विश्वविद्यालय से जुड़ने के बजाय केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता जारी रखने के फैसले ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी है। कॉलेजों के फैसले को देखते हुए सरकार ने भी अशासकीय कॉलेजों को अनुदान जारी रखने पर विचार शुरू कर दिया है।

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दरअसल, सरकार की छटपटाहट की वजह सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों पर नियंत्रण नहीं हो पाना है। देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, ऊधमसिंहनगर और टिहरी जिलों में प्रदेश के कुल 18 सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों में से 17 हेमवतीनंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। ये सभी कॉलेज गढ़वाल मंडल में हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध होने की वजह से सरकार इन कॉलेजों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रख पा रही है। सरकार की ओर से कॉलेजों को राज्य विश्वविद्यालयों से जुड़ने के निर्देश दिए गए, इसके बावजूद कॉलेजों ने सरकार के इस प्रस्ताव पर अनिच्छा जता दी। इन कॉलेजों में नियुक्तियों में भी सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर रह गया है।

कॉलेजों में रिक्त हैं 350 पद

प्रदेश में सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की नियुक्तियों को लेकर विवाद और पारदर्शिता न होने की शिकायतों को लेकर सरकार चौकन्नी हुई है। नियुक्तियों को विवाद की छाया से मुक्त करने के लिए उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग के गठन समेत अन्य विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। वर्तमान में इन डेढ़ दर्जन कॉलेजों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के 350 पद रिक्त हैं।

नियुक्तियों पर उठते रहे हैं सवाल

सरकारी डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति यूजीसी के निर्देशों के मुताबिक राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाती है। शिक्षणेत्तर कर्मचारियों में पुस्तकालयाध्यक्ष या सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष को छोड़कर शेष पदों पर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से नियुक्तियों की व्यवस्था है। वहीं, सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की नियुक्तियां उनकी प्रबंध समितियां के माध्यम से होती है। हालांकि, इन नियुक्तियों के लिए पदों को विज्ञापित करने से लेकर नियुक्ति होने के बाद अनुमोदन उच्च शिक्षा महकमा ही करता है। बावजूद इसके अशासकीय डिग्री कॉलेजों की नियुक्ति प्रक्रिया में प्रबंध समितियों के हस्तक्षेप के मद्देनजर इन पर सवाल उठते रहे हैं।

चयन आयोग के गठन पर भी मंथन

चूंकि इन कॉलेजों में शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन का पूरा खर्च सरकार उठाती है। ऐसे में सरकार नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने पर जोर दे रही है। अशासकीय कॉलेजों में नियुक्तियों में प्रबंध समितियों के सीधे हस्तक्षेप को कम करने पर मंथन किया जा रहा है। उच्च शिक्षा चयन आयोग के माध्यम से नियुक्तियों को अंजाम दिया जा सकता है। फिलहाल, यह आयोग उत्तराखंड में गठित नहीं है। ऐसे में आयोग के गठन समेत अन्य विकल्पों को भी खंगाला जा रहा है।

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अनुदान जारी रखने पर विचार करेगी समिति

सरकार को इन कॉलेजों का दो नावों में सफर करना रास नहीं आ रहा है। सरकार अब सख्ती बरतने के मूड में है। हेमवतीनंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय से संबद्धता का मोह नहीं छोड़ने वाले कॉलेजों को भविष्य में अनुदान जारी रखने पर सरकार ने विचार शुरू कर दिया है। इसके लिए सरकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है। समिति में उच्च शिक्षा प्रमुख सचिव के साथ ही न्याय, वित्त और कार्मिक के सचिव भी बतौर सदस्य रहेंगे। यह समिति अपनी रिपोर्ट मंत्रिमंडल को प्रस्तुत करेगी। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत का कहना है कि सहायताप्राप्त अशासकीय कॉलेजों का रुख हैरान करने वाला है। यह रुख जारी रहा तो सरकार को आगे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ेगा। 

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