जीएसटी से उत्तराखंड को मिले 200 करोड़ रुपये, 8949 करोड़ गए बाहर
जीएसटी को लागू हुए दो साल का वक्त बीत गया और पीछे मुड़कर देखें तो राजस्व को लेकर हमारी चुनौतियां अभी बरकरार हैं। स्टेट जीएसटी मद में 50 फीसद राशि हमें मिल रही है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। जीएसटी (माल और सेवा कर) को लागू हुए दो साल का वक्त बीत गया और पीछे मुड़कर देखें तो राजस्व को लेकर हमारी चुनौतियां अभी बरकरार हैं। राज्य के भीतर जो कारोबार हो रहा है, उस पर समान रूप से स्टेट जीएसटी मद में 50 फीसद राशि हमें मिल रही है। चिंता की बात सिर्फ यह है कि आइजीएसटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी) में बड़े पैमाने में माल बाहर के राज्यों में जा रहा है और उसके मुकाबले राज्य में आने वाले माल की मात्रा अपेक्षाकृत बहुत कम है।
आइजीएसटी में 50 फीसद हिस्सा माल की खपत वाले राज्य को मिलता है और 50 फीसद केंद्र को। ऐसे में खपत के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में हमें सिर्फ 200 करोड़ रुपये ही मिले, जबकि 8949 करोड़ रुपये प्रदेश से बाहर चले गए।
यह स्थिति तब है, जब प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2018-19 में 15.07 हजार करोड़ रुपये का राजस्व हुआ, जबकि हमें एसजीएसटी व आइजीएसटी मद में चार हजार करोड़ रुपये के आसपास ही मिल पाए। दूसरी तरफ केंद्र से मिलने वाले राजस्व क्षतिपूर्ति के रूप में भी 2843 करोड़ रुपये ही मिल पाए। यानी हमें क्षति का सौ फीसद राजस्व नहीं मिल पाया।
ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश में माल की खपत को बढ़ाना। पर्यटन प्रदेश होने के नाते इस काम में अधिक मुश्किल नहीं आनी चाहिए, मगर जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम सर्विस सेक्टर को कितना सुदृढ़ बना पाते हैं। राज्य माल और सेवा कर विभाग के अधिकारी भी इस बात बल दे रहे हैं, मगर सरकारी स्तर पर एकीकृत प्रयास न हो पाने के चलते राजस्व बढ़ाने की मंजिल अभी भी दूर नजर आती है।
इस साल बढ़ा आइजीएसटी में राजस्व
इस वित्तीय वर्ष 2019-20 में अप्रैल से जून माह आइजीएसटी मद में उत्तराखंड को मिले राजस्व का आकलन किया जाए तो इन तीन महीनों में ही 250 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं। इसको लेकर राज्य माल और सेवा कर के अपर आयुक्त (विशेष ग्रेड) पीयूष कुमार कहते हैं कि रिटर्न फाइल करने को लेकर निरंतर अभियान चलाए जा रहे हैं और कर चोरी करने वालों पर भी निगरानी बढ़ाई जा रही है। इसके भविष्य में और बेहतर परिणाम नजर आएंगे। वहीं, क्षतिपूर्ति में भी राज्य को हर माह 698 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद बढ़ी है।
समय की मांग के अनुसार बने जीएसटी नीति: जगूड़ी
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सेंट्रल जीएसटी) के आयुक्तालय में जीएसटी की दूसरी वर्षगांठ धूमधाम के साथ मनाई गई। इस अवसर पर जीएसटी प्रणाली के सरलीकरण पर विचार-विमर्श करने के साथ ही इसे राजस्व हित में बताया गया।
सोमवार को सेंट्रल जीएसटी ऑडिट के आयुक्त कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने किया। उन्होंने कहा कि जीएसटी की नीति समय की मांग के अनुसार बनाई जानी चाहिए। इसके साथ ही जीएसटी से संबंधित सभी तरह की जानकारी अंतिम स्तर के करदाता तक पहुंचाई जानी भी जरूरी है। जीएसटी बेहतर प्रणाली है और इसे और प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए।
इस अवसर पर संयुक्त आयुक्त अमित गुप्ता ने जानकारी देते हुए कहा कि जीएसटी स्लैब को कम करके न सिर्फ कारोबारियों को फायदा मिला है, बल्कि इसका लाभ उपभोक्ताओं को भी मिला है। साथ ही इसके बाद कर संग्रह ने एक लाख करोड़ के आंकड़े को भी आसानी से पार कर लिया। अब निकट भविष्य में जीएसटी में महज दो स्लैब लागू करने की तैयारी चल रही है और कई तरह के बदलाव कर प्रणाली को बेहतर बनाया जा रहा है। इससे पहले कार्यक्रम में उत्तराखंड के दिवंगत वित्त मंत्री प्रकाश पंत को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन सहायक आयुक्त श्रीया गुप्ता ने किया। इस अवसर पर आयुक्त अनुज गोगिया, विरेंद्र कालरा, तुषार सिंघल, राजीव अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।
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