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सत्ता के गलियारे से: जंगल की आग और हरक के हाथ झांपा

Uttarakhand Forest Fire कोरोना के अलावा इन दिनों उत्तराखंड एक और आपदा से जूझ रहा है जंगल की आग। हजारों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुके हैं। इस बीच वन मंत्री हरक सिंह रावत खूब चर्चा बटोर रहे हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 11:05 AM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 11:05 AM (IST)
सत्ता के गलियारे से: जंगल की आग और हरक के हाथ झांपा
सत्ता के गलियारे से: जंगल की आग और हरक के हाथ झांपा।

विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Forest Fire कोरोना के अलावा इन दिनों उत्तराखंड एक और आपदा से जूझ रहा है, जंगल की आग। हजारों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुके हैं। इस बीच वन मंत्री हरक सिंह रावत खूब चर्चा बटोर रहे हैं। दरअसल, हरक का राजनीतिक इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि उन्हें सियासत में आग लगाने के लिए ज्यादा जाना जाता है।

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पांच साल पहले कांग्रेस इसका प्रकोप झेल चुकी है। तब हरीश रावत सरकार जाते-जाते बची थी, लेकिन कांग्रेस के टुकड़े जरूर हो गए। पिछली त्रिवेंद्र सरकार के दौरान भी इनके तल्ख तेवरों की तपिश सभी ने देखी, महसूस की। वहीं, हरक आजकल खुद हाथों में झांपा, पत्तों से बना झाड़ू लिए आग बुझाने सरकारी गाड़ी से कूद जंगल में घुसते दिख जाते हैं। अब मंत्री हैं तो इनके आगे-पीछे फोटो खींचक रहते ही हैं, जिनके सौजन्य से सबको जानकारी मिलती है कि हरक अपने महकमे की संपत्ति को लेकर कितने सतर्क-सजग हैं।

ये नेताजी हैं, हर दल में दिखते हैं

कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है और नेताजी के माथे पर बल पडऩे लगे हैं। इन्हें चिंता खाए जा रही है कि चुनावी साल में अगर शादी के सीजन में इलाके की एक भी शादी मिस हो गई तो पता नहीं चुनाव में क्या होगा। दरअसल, नेताजी के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली नौबत है। अगर विवाह समारोह में जाते हैं तो इर्द-गिर्द जमावड़ा लगना तय, सुरक्षित दूरी रहेगी नहीं और मास्क पहना तो चेहरा छिप जाएगा, जाने का क्या फायदा। मास्क उतारा तो चर्चा में आते देर नहीं लगेगी। ये भीड़तंत्र का हिस्सा जो हैं, इन्हें इससे कोई वास्ता नहीं कि जान है तो जहान है। जनाब तो वीआइपी कैटेगरी में शुमार हैं, इन्हें वे सब सहूलियत मिलती हैं, जिनकी गैरमौजूदगी में आमआदमी की जान पर बन आती है। नाम में क्या रखा है, ये हर राजनीतिक दल में पाए जाते हैं।

बोले भगत, 10 रुपये जरूर साथ लेते लाना

नाम ही नहीं, उनका व्यक्तित्व भी भगत जैसा है। रामलीला में दशरथ की भूमिका वर्षों से निभाते आ रहे हैं। अब तीरथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं बंशीधर भगत। खाद्य मंत्रालय इन्हीं के जिम्मे है, मगर मुलाकात करने घर जाना हो तो जेब में 10 रुपये जरूर रखने पड़ते हैं। हाल में मुलाकात हुई, उसी वक्त चुनाव क्षेत्र से किसी का फोन आ गया। शायद दूसरी तरफ से मिलने की इच्छा जाहिर की गई। भगत बोले, 'परसों मिलूंगा, मगर जेब में 10 रुपये लेकर आना।'

माजरा समझ नहीं आया, भगत भी इसे भांप गए। खुद ही बताया, 'घर पर होता हूं तो रोजाना चुनाव क्षेत्र के ढाई-तीन सौ लोग मुलाकात को आते हैं। सब को चाय पिलाऊं तो महीनेभर में क्विंटल से ज्यादा चीनी लगेगी। इसलिए सबसे कहता हूं जेब में 10 रुपये जरूर लाना, खर्च कर खुद चाय पी लेंगे।' अब भला इस मासूमियत पर कोई क्या सवाल करे।

दोस्त, दोस्त न रहा, यार, यार न रहा

बालीवुड की हिट मूवी संगम के चर्चित गाने की पैरोडी आजकल कांग्रेसी दिग्गज एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अकेले में गुनगुना रहे हैं। जब सत्ता में थे, रणजीत सिंह रावत उनके हमराज हुआ करते थे, लेकिन कहते हैं न कि सियासत चीज ही ऐसी है कि पता नहीं कब दोस्त, दुश्मन और दुश्मन, दोस्त बन जाए। ऐसा ही कुछ इन दोनों के रिश्ते में हुआ।

पहले युवक कांग्रेस के मुखिया पद को लेकर विवाद कारण बना, अब सल्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में फिर वही कहानी दोहराई गई। हरीश कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं तो इस दफा भी टिकट के मामले में उन्हीं की मर्जी चली। ऐसे में ज्वालामुखी कब तक खुद को फटने से रोकता। ऐसा ही हुआ, लेकिन इससे जो लावा निकला, उसने कांग्रेस को ऐन मतदान से पहले झुलसा दिया। इससे पार्टी प्रत्याशी को कितना नुकसान हुआ, यह दो मई को मतगणना के दिन ही सामने आएगा।

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