राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में हुई बारिश व बर्फबारी से वनों में आग पर अंकुश लगा है, लेकिन 15 फरवरी से अब तक की तस्वीर चौंकाने वाली है। इन सौ दिनों का परिदृश्य देखें तो प्रतिदिन औसतन 31.75 हेक्टेयर जंगल सुलग रहा है। अच्छी बात यह है कि सिविल व वन पंचायत क्षेत्रों में जंगल कम झुलसे हैं।
आरक्षित वन क्षेत्रों में वन ज्यादा धधक रहे
वहां आसपास की बसागत का अग्नि नियंत्रण में वन विभाग को सहयोग मिल रहा है। इसके उलट आरक्षित वन क्षेत्रों में वन ज्यादा धधक रहे हैं। ऐसे में अब विभाग को आरक्षित वनों के मामले में ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने पर जोर देना ही होगा।
आग से 3175.82 हेक्टेयर क्षेत्र में वन संपदा को पहुंची क्षति
राज्य में 15 फरवरी से अब तक आग से 3175.82 हेक्टेयर क्षेत्र में वन संपदा को क्षति पहुंची है। इसमें सिविल व वन पंचायत क्षेत्र में आग की 591 घटनाओं में 870.56 हेक्टेयर जंगल झुलसा, जबकि आरक्षित वन क्षेत्रों में 1418 घटनाओं में 2305.26 हेक्टेयर जंगल जला।
सिविल व वन पंचायतों के अधीन जंगलों का क्षेत्रफल काफी कम
यद्यपि, सिविल व वन पंचायतों के अधीन जंगलों का क्षेत्रफल काफी कम है, लेकिन इनके आसपास के गांवों के निवासियों की सक्रियता व सहयोग वन विभाग के लिए संजीवनी का काम कर रहा है। वहीं, आरक्षित वन क्षेत्रों का बड़ा दायरा होने के कारण इस दृष्टिकोण से वन विभाग जनसहयोग नहीं ले पा रहा है।
अग्नि दुर्घटनाओं पर नियंत्रण के लिए ग्रामीणों से सहयोग की अपील
निशांत वर्मा (नोडल अधिकारी वनाग्नि, उत्तराखंड वन विभाग) का कहना है कि सिविल व वन पंचायतों की भांति आरक्षित वन क्षेत्र में अग्नि दुर्घटनाओं पर नियंत्रण के लिए ग्रामीणों से सहयोग की अपील की जा रही है। कई जगह ग्रामीण आगे आए हैं। राज्य की 12 हजार से अधिक वन पंचायतों का सहयोग उनके नजदीकी आरक्षित वन क्षेत्रों में भी लिया जाएगा।
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