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Uttarakhand Election 2022: टिकट बटवारे में चली तो आखिर हरदा की ही

Uttarakhand Election 2022 कांग्रेस ने भले ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया लेकिन टिकट बटवारे से साफ हो गया कि कम से कम पहली सूची में प्रत्याशियों के नाम तय करने में पूरी तरह रावत की ही चली।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 08:16 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 08:16 AM (IST)
Uttarakhand Election 2022: टिकट बटवारे में चली तो आखिर हरदा की ही
Uttarakhand Election 2022: टिकट बटवारे में चली तो आखिर हरदा की ही। जागरण

विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 उत्तराखंड की सत्ता में वापसी के मंसूबे पूरे करने के लिए हर हथकंडा अपना रही कांग्रेस ने भले ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया, लेकिन टिकट बटवारे से साफ हो गया कि कम से कम पहली सूची में प्रत्याशियों के नाम तय करने में पूरी तरह रावत की ही चली। महीनों लंबी कवायद के बाद कांग्रेस ने आखिरकार अपने 53 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी और इसमें लगभग दो-तिहाई नाम ऐसे हैं, जिन पर हरदा की छाप साफ दिखाई दे रही है। सभी सिटिंग विधायकों को टिकट मिलेगा, यह तो खैर पहले से ही मालूम था, लेकिन पिछली विधानसभा में संकट के समय साथ खड़े रहे नेताओं को जिस तरह सूची में जगह मिली, उससे साफ हो गया कि हरीश रावत ने उन्हें पूरा सम्मान दिया।

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गुटबाजी, मगर पलड़ा रावत का ही भारी

उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी है, इससे कोई इन्कार कर नहीं सकता। प्रत्याशी चयन को लेकर जिस तरह 10 दिन तक दिग्गज दिल्ली में जोड़-तोड़ करते रहे, लेकिन किसी फैसले पर नहीं पहुंच पाए, उससे यह साबित भी हो गया। अंतत: हाईकमान को हस्तक्षेप कर राष्ट्रीय महामंत्री संगठन केसी वेणुगोपाल व मुकुल वासनिक को जिम्मेदारी सौंपनी पड़ी, जिसके बाद ही पहली सूची बाहर आ पाई। उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी राज्य गठन के समय से ही चली आ रही है। पहले कांग्रेस में तिवारी व हरीश रावत बड़े क्षत्रप हुआ करते थे। बाद में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा और इंदिरा हृदयेश का राजनीतिक कद बढ़ा। वर्ष 2014 में सतपाल महाराज और फिर मार्च 2016 में आठ विधायकों के साथ विजय बहुगुणा के भाजपा में चले जाने से पार्टी में आंतरिक संतुलन का पलड़ा हरीश रावत के पक्ष में झुक गया।

मुख्यमंत्री बनना है तो विधायक अपने जरूरी

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश का गुट मजबूत होता चला गया। रावत कुछ समय के लिए कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए। महासचिव के रूप में पहले असम और फिर पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी उन्होंने संभाली, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह उत्तराखंड लौट आए। उन्होंने भरसक कोशिश की कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव में जाए, लेकिन उनकी मंशा पूरी नहीं हुई। इतना जरूर हुआ कि कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें प्रदेश चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर चुनाव की कमान उन्हें पूरी तरह सौंप दी। इस स्थिति में हरीश रावत के लिए जरूरी हो गया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह उसी स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं, जब चुने गए अधिकांश विधायक उन्हीं के खेमे के हों।

मौजूदा व पूर्व विधायक रहे प्रत्याशियों में दबदबा

इसके लिए हरीश रावत ने बाकायदा बिसात बिछाई और पहली सूची देखकर लग भी रहा है कि वह अपनी रणनीति में काफी हद तक सफल रहे हैं। कांग्रेस के जो नौ सिटिंग विधायक हैं, उनमें से छह रावत के ही करीबी हैं। कांग्रेस ने जिन 53 प्रत्याशियों को पहली सूची में जगह दी है, उनमें 23 पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री शामिल हैं। इनमें हरीश रावत के करीबियों का आंकड़ा 16 के आसपास है। यानी मौजूदा व पूर्व विधायक, कुल 33 प्रत्याशियों में से लगभग 22 हरीश रावत खेमे के कहे जा सकते हैं। ये रावत के विश्वस्त इसलिए भी माने जा सकते हैं कि इन्होंने पिछले कुछ वर्षों के दौरान तमाम सम-विषम परिस्थितियों में हरीश रावत का साथ दिया। कुछ अपवाद ऐसे कहे जा सकते हैं जिनका खुद भी अलग राजनीतिक अस्तित्व है, लेकिन बात जब किसी एक को चुनने की आएगी, तो इनका रुझान शायद रावत की ओर ही रहेगा।

नए चेहरों में भी रावत की अधिक हिस्सेदारी

पहली सूची में लगभग 10 नाम ऐसे हैं, जो चुनावी राजनीति के दृष्टिकोण से कांग्रेस के लिए नए कहे जा सकते हैं। इनमें से छह हरीश रावत खेमे से माने जा रहे हैं। इनके अलावा लगभग 10 प्रत्याशी ऐसे हैं, जो पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े, मगर पराजित हुए। इनमें से लगभग सात को रावत का करीबी बताया गया है। यानी, इन दो श्रेणी के 20 प्रत्याशियों में से लगभग 13 रावत की पसंद कहे जा सकते हैं। अगर कुल मिलाकर देखा जाए तो 53 प्रत्याशियों की पहली सूची में से लगभग 35 ऐसे हैं, जिनकी दावेदारी को टिकट में बदलने में हरीश रावत की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह आंकड़ा घोषित प्रत्याशियों के दो-तिहाई के आसपास बैठता है। इस आकलन से स्पष्ट है कि हरीश रावत कम से कम टिकट बटवारे के मोर्चे पर तो पार्टी के अंदर बाजी मारने में सफल रहे हैं।

सूची में संतुलन साधने की दिखी कोशिश

कांग्रेस ने अपने 53 प्रत्याशियों में सामाजिक व जातीय संतुलन साधने की पूरी कोशिश की। सूची में 11 अनुसूचित जाति व दो अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशी हैं तो मुस्लिम समुदाय के हिस्से भी दो टिकट आए हैं। 11 ब्राह्मण, 23 राजपूत के अलावा वैश्य व पंजाबी समुदाय के भी लगभग चार नेताओं को प्रत्याशी बनाया गया है। अलबत्ता महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में कांग्रेस ने कंजूसी बरती है। भाजपा ने जहां 59 प्रत्याशियों की पहली सूची में छह महिलाओं को अवसर दिया, वहीं कांग्रेस ने 53 में से केवल तीन महिलाओं को ही चुनाव मैदान में उतारा है। साफ है कि उत्तर प्रदेश, जहां कांग्रेस अब तक 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देती आ रही है, के मुकाबले उत्तराखंड में यह आंकड़ा अभी छह प्रतिशत से भी कम है।

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