National Girl Child Day: बुलंद हौसले से आसमान छू रहीं हैं उत्तराखंड की बेटियां, जानिए इनके बारे में
उत्तराखंड की बेटियों ने अलग-अलग क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका कहना है कि अगर हौसले बुलंद हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।
देहरादून, जेएनएन। बुलंद हो हौसला तो मुट्ठी में हर मुकाम है, मुश्किलें और मुसीबतें तो जिंदगी में आम हैं...। यह कहना है उत्तराखंड की उन बेटियों का जिन्होंने अपने सपनों की बुलंदियों को छूकर न केवल समाज में नई मिसाल पेश की बल्कि, हर बेटी को संदेश दिया है कि अगर वह अपने लक्ष्य को पाने की ठान ले तो मुसीबत की कोई भी जंजीर उन्हें रोक नहीं सकती। इन बेटियों में दून की शिकायना मुखिया, संस्कृति दत्त, नीरजा गोयल और वुमनिया बैंड की सबसे छोटी सदस्य ड्रम मास्टर श्रीविद्या का नाम शामिल है।
जिससे लगे डर उसी को बनाएं ताकत
टीवी शो 'वॉयस इंडिया सीजन-टू' और 'सुपर स्टार सिंगर सीजन-वन' के फिनाले तक पहुंचने वाली दून की 13 वर्षीय शिकायना मुखिया ने अपनी आवाज के जरिये सभी का दिल जीता। शिकायना कहती हैं कि उन्हें अब कुछ भी मुश्किल नहीं लगता। अगर दिल से मंजिल को पाने के लिए मेहनत की जाए, तो वह जरूर मिलती है। शिकायना का कहना है कि लड़कियां जिन चीजों से डरती हैं, उन्हें उसे ही ताकत बनाना चाहिए।
शिकायना कर्नल ब्राउन स्कूल में पढ़ती हैं, जहां पर सभी छात्र हैं और वह सिर्फ अकेली छात्रा हैं। शिकायना की मानें तो, लड़कों के स्कूल में अकेली छात्रा का होने के बाद भी वह स्कूल में सहज महसूस करती हैं। हर परिवार को अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहिए। बेटी के सपने को पूरा करने में हर परिवार को समर्थन करना चाहिए, क्योंकि आज देश की बेटियां हर मुश्किल से मुश्किल मुकाम को पाने का जज्बा रखती हैं।
पैसे देकर बच्चों के साथ किया अभ्यास
पैरा बैडमिंटन में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा से लोगों का दिल जीतने वाली ऋषिकेश की नीरजा गोयल बताती हैं कि वह बचपन से ही पोलियो ग्रस्त थीं। पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी किसी तरह से राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरूकिया। पैरालाइज होने के कारण बच्चे उनके साथ खेलते नहीं थे। जिस कारण उन्होंने कुछ पैसे और खाने की चीजें देकर उनके साथ बैडमिंटन का अभ्यास किया।
वुड और टाइल फ्लोर न होने के कारण उनके हाथों में खून तक आ जाता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इंटरनेशनल गेम्स में भाग लेकर कांस्य पदक जीता। उन्होंने बताया कि वह भविष्य में अपनी खुद की अकादमी खोलना चाहती हैं, जिससे दिव्यांग खिलाड़ी वहां अभ्यास कर सकें, जहां प्रयास करने के लिए उनके पास उचित स्थान और अलग कोच उपलब्ध हों।
मां की प्रेरणा ने बनाया ड्रम मास्टर
देश के कई राज्यों में देहरादून का वुमनिया बैंड धूम मचा रहा है। खास बात यह है कि यह पहला ऐसा बैंड है, जिसमें सभी लडकियां हैं। बैंड की नन्हीं ड्रम मास्टर श्रीविद्या को देखते ही दर्शक भी कई बार आश्चर्य में पड़ जाते हैं। 10 साल की श्रीविद्या के ड्रम की आवाज बैंड की प्रस्तुति में चार चांद लगा देता है। श्रीविद्या ने बताया कि वह बचपन से ही अपनी मां को गिटार बजाती देखती आ रही हैं। इसलिए वह भी आर्टिस्ट बनना चाहती थीं। उन्हें ड्रम बजाना अच्छा लगता था और इसे सीखकर वह वुमनियां बैंड में मां के ग्रुप के साथ शामिल भी हो गईं। बताया कि वह समाज के हर परिवार से अपील करना चाहती हैं कि अगर उनकी बेटियां रॉक स्टार बनना चाहती हैं तो उन्हें रोके नहीं, बल्कि प्रोत्साहन दें।
साल ड्रॉप करने का अब नहीं पछतावा
कम रैंक आने और साल खराब होने के बाद पसंदीदा कॉलेज में दाखिला पाना आसान नहीं था। यह कहना है संस्कृति दत्त का। वर्तमान में दिल्ली के मौलाना आजाद कॉलेज से एमबीबीएस कर रहीं संस्कृति ने बताया कि 2017 में 470वीं रैंक पाकर पहली बार नीट क्लीयर किया। तब उन्हें मौलाना आजाद कॉलेज में दाखिला नहीं मिला तो उन्होंने साल ड्रॉप किया और दोबारा नीट का टेस्ट दिया, जिसमें 632वीं रैंक हासिल कर पसंदीदा कॉलेज में एडमिशन लिया। संस्कृति बताती हैं कि साल खराब होने से उनपर प्रेशर तो बढ़ा, लेकिन परिवार के सहयोग से उन्होंने अगले ही वर्ष में मुकाम पाया। अगर ऐसे ही हर लड़की को परिवार का सहयोग मिलता रहे, तो कोई भी चुनौती हरा नहीं सकती।
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