पहाड़ की संस्कृति से लेकर पहाड़ की पीड़ा तक का सफर
राजधानी देहरादून स्थित परेड ग्राउंड में चल रहे गढ़ कौथिग मेले में पहाड़ की संस्कृति से लेकर पहाड़ की पीड़ा को दर्शाया गया।
देहरादून, [जेएनएन]: लोक के आलोक में सुरों की सरिता बही और तन-मन झूम उठा। ऐसा लगा, मानो पूरा उत्तराखंडी लोक यहां समा गया हो। हर कोई इस त्रिवेणी में गोते लगाने को बेताब था और लोग जमकर झूमे भी। मौका था अखिल गढ़वाल सभा की ओर से परेड मैदान में चल रहे कौथिग-2017 में लोक गीत संध्या का। यहां बैठे हर व्यक्ति ने देवभूमि की समृद्ध और सुंदर संस्कृति के दर्शन भी किए और पहाड़ की पीड़ा को महसूस भी किया।
पद्मश्री जागर गायिका बसंती बिष्ट ने नंदा देवी के जागर से शुरुआत की। फिर, गायिका संगीता ढौंढियाल ने 'मी घास कटलू', 'तेरी डाली सजगी मां नंदा', लोक गायक प्रीतम भरतवाण 'रूम झुम बाति संध्या झूली गे', 'बंगलादेश काला डांडा लडे लगीं', 'पंडो जग निंदा हवे जवा' आदि की प्रस्तुति दी और लोक झूम उठे। फिर, अनिल बिष्ट ने 'चैते की चैतवाली', 'ऐजा हे भानुमती', कल्पना चौहान ने 'बद्री केदार देणु व्हे जा', 'मेरू रैबार ले जे मेरी स्वामी मा', किशन महिपाल ने 'फयौंलड़िया', 'जख देवतों' की प्रस्तुति दी।
इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ ग्राफिक एरा विवि के चेयरमैन कमल घनसाला, बलूनी क्लासेस के चेयरमैन डॉ. नवीन बलूनी, विपिन बलूनी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट ने किया। इस दौरान गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना, महासचिव रमेंद्र कोटनाला, उपाध्यक्ष मदन मोहन डुकलाण, कोषाध्यक्ष वीरेंद्र असवाल, प्रसार सचिव गजेंद्र भंडारी, सुलोचना भट्ट, संतोष गैरोला, वीरेंद्र असवाल, चंद्र दत्त सुयाल, सूर्यप्रकाश भट्ट आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन संगठन सचिव अजय जोशी ने किया।
कमलव्यूह नृत्य की दी शानदार प्रस्तुति
सुबह 'महानाट्य कमलव्यूह' का शानदार मंचन हुआ। 60 कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधकर रखा। आचार्य कृष्णानंद नौटियाल के निर्देशन में केदार घाटी सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिषद गुप्तकाशी के कलाकारों ने मंचन शुरू किया। इसमें दिखाया गया कि महाभारत युद्ध के 13वें दिन चक्रव्यूह की रचना की गई थी। इसमें कौरवों ने छल-कपट से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया था और सिंधुराज जयद्रथ ने अभिमन्यु के पार्थिव शरीर पर लातों से प्रहार किया था। इसके बाद अर्जुन ने प्रण लिया था कि कल का सूरज अस्त होने तक जयद्रथ का वध कर दूंगा या फिर खुद को जलाकर राख कर दूंगा।
जयद्रथ को बचाने के लिए कमलव्यूह की रचना की जाती है, जिसके 14 द्वार होते हैं, अर्जुन छह द्वारों पर तो विजय प्राप्त कर लेता है, तब तक शाम हो जाती है। सूरज ढलता देख अर्जुन निराश होने लगता है और तब भगवान श्रीकृष्ण योगमाया से सूर्य को छिपा लेते हैं। कौरव सोचते हैं कि सूर्यास्त हो गया और अब अर्जुन खुद को जला डालेगा। यह देखने के लिए कौरव और जयद्रथ बाहर आ जाते हैं और तभी श्रीकृष्ण योगमाया को हटा देते हैं। इसके बाद अर्जुन जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी रामप्रसाद सुंदरियाल और वरिष्ठ कवि श्रीप्रसाद गैरोला मौजूद रहे। इस दौरान मुख्य कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र सिंह असवाल, सह संयोजक संदीप जुगरान मौजूद रहे।
शेर सिंह पांगती और मोहन नेगी को श्रद्धांजलि
कौथिग में रविवार को साहित्यकार डॉ. शेर सिंह पांगती और बी मोहन नेगी को श्रद्धांजलि दी गई। वक्ताओं ने कहा कि इनका निधन देश व कला जगत के लिए बड़ी क्षति है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।
45 यूनिट रक्तदान
हेल्थ नेटवर्किंग सेवा संस्थान और हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट के सहयोग से कौथिग के तहत स्वास्थ्य जांच और रक्तदान शिविर आयोजित किया गया। करीब 180 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई और करीब 45 यूनिट रक्तदान हुआ। डॉ. डीपी जोशी ने 28वीं बार रक्तदान किया।
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