सत्ता के गलियारे से: एक दिन, दो राजधानी, दो धरने
कांग्रेस सत्ता में वापसी की कोशिशों में जी-जान से जुटी है। मुख्यमंत्री पद के कांग्रेस के स्वघोषित चेहरे हरीश रावत भला कैसे मौका चूकते। विधानसभा के अंतिम सत्र के समापन पर रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में धरना-उपवास का कार्यक्रम रखा था।
विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Assembly Elections 2022 राजनीतिक महत्वाकांक्षा अगर हो तो नेता उम्र को दरकिनार कर अपना लोहा मनवाने के लिए सब कुछ करने का तत्पर रहते हैं। कांग्रेस सत्ता में वापसी की कोशिशों में जी-जान से जुटी है। मुख्यमंत्री पद के कांग्रेस के स्वघोषित चेहरे हरीश रावत भला कैसे मौका चूकते। विधानसभा के अंतिम सत्र के समापन पर रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में धरना-उपवास का कार्यक्रम रखा था। सुबह-सवेरे प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के साथ हवाई मार्ग से गैरसैंण पहुंच धरना दिया। ऐन इसी वक्त देहरादून में विधानसभा सत्र में राजनीतिक सरगर्मी उफान पर थी, तो रावत कैसे इससे अछूते रहते। तुरंत देहरादून लौट गए विधानसभा के दरवाजे पर प्रदेश सरकार के खिलाफ धरना देने को। पुलिस ने गाड़ी को रोका तो हरदा स्कूटी पर सवार होकर निकल लिए और मंजिल पर पहुंचकर ही दम लिया। शायद ऐसे अकेले पूर्व मुख्यमंत्री, जिसने दो-दो राजधानी में एक ही दिन सरकार के खिलाफ ताल ठोकी हो।
कुछ अलग सी रही चौथी विधानसभा
राज्य की चौथी विधानसभा का अंतिम सत्र समाप्त हो गया, लेकिन यह विधानसभा कई मामलों में पहली तीन विधानसभाओं से कुछ अलग रही। राज्य गठन के बाद पहली बार किसी विधानसभा में कार्यकाल समाप्त होते-होते सदस्य संख्या 70 से घटकर 65 रह गई। कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र संजीव कांग्रेस में लौट गए तो उन्होंने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके ठीक उलट कांग्रेस विधायक राजकुमार भाजपा में आए, उन्होंने भी सीट छोड़ दी। हल्द्वानी और गंगोत्री विधानसभा सीट विधायकों के निधन के कारण खाली हैं। इन पांचों सीटों पर उप चुनाव न होने के कारण ये रिक्त चल रही हैं। इसके अलावा उप चुनावों के लिए भी यह विधानसभा चर्चा में रहेगी। थराली से भाजपा विधायक मगनलाल शाह, कैबिनेट मंत्री व पिथौरागढ़ से विधायक प्रकाश पंत तथा सल्ट से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के कारण इन तीनों सीटों पर उप चुनाव हुए।
बसपा चली अब राजनीतिक विकल्प बनने
उत्तराखंड में यूं तो बसपा को तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत का रुतबा हासिल है, मगर पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उसे अर्श से फर्श पर ला पटका था। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद बसपा ने पहले विधानसभा चुनाव में 70 सीटों में से सात और दूसरे में आठ सीटों पर जीत दर्ज की। तीसरे विधानसभा चुनाव से बसपा की जमीन खिसकनी शुरू हो गई। तब उसके केवल तीन ही नेता विधायक चुने गए। वैसे संख्याबल कम होने के बावजूद उसे कांग्रेस को बहुमत न मिलने पर सत्ता में हिस्सेदारी जरूर मिल गई, लेकिन यह शायद बसपा को रास नहीं आया। परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में उसका सूपड़ा साफ। अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने फिर सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा जताया है। प्रयास भाजपा व कांग्रेस का विकल्प बनने का, लेकिन फिलहाल यह दूर की कौड़ी ही लगता है।
भीड़ जुटाओ, टिकट का मौका पाओ
विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रैली कर भाजपा के पक्ष में माहौल बना गए। जवाब में अब कांग्रेस राहुल गांधी की जनसभा करवा रही है। ऐसे मौकों पर जुटी भीड़ से राजनीतिक दल अपनी संभावनाएं टटोलते हैं। लिहाजा कांग्रेस ने इसका जिम्मा उन नेताओं को सौंप दिया है, जो टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि उत्तराखंड में हर चुनाव में सत्ता में बदलाव की परंपरा इस बार भी कायम रहेगी, तो चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं की संख्या भी खासी दिख रही है। कांग्रेस ने दूर की सोची और टिकट के दावेदारों को लक्ष्य दे दिया राहुल की जनसभा में निश्चित संख्या में लोग लाकर अपनी ताकत दिखाने का। संदेश साफ, जिसने अधिक भीड़ जुटाई, टिकट पर उसका दावा ज्यादा मजबूत। देखते हैं कि भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का कांग्रेस का यह फार्मूला कितना असरदार साबित होता है।
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