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सीएम योगी के फैसलों को दूसरे राज्यों ने भी अपनाया, उत्तराखंड के बच्चों के लिए बने मसीहा

उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का कोई जवाब नहीं उनकी एक पहल से उत्तराखंड में भी सभी की जुबां पर बस उनका ही नाम है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2020 01:06 PM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2020 01:06 PM (IST)
सीएम योगी के फैसलों को दूसरे राज्यों ने भी अपनाया, उत्तराखंड के बच्चों के लिए बने मसीहा
सीएम योगी के फैसलों को दूसरे राज्यों ने भी अपनाया, उत्तराखंड के बच्चों के लिए बने मसीहा

देहरादून, जेएनएन। बात अगर त्वरित कार्रवाई की हो तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा शायद ही कोई हो। इनका अपने प्रदेश की जनता तो लोहा मानती ही है, दूसरे प्रदेशों में भी उनके फैसलों का जलवा माना जाता है। अब बात कोटा, राजस्थान में फंसे बच्चों की ही करें तो योगी आदित्यनाथ ने तुरंत निर्णय लेते हुए उत्तर प्रदेश परिवहन की बसें कोटा भेज दीं।

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उनके फैसले पर विवाद भी हुआ, लेकिन अभिभावकों और बच्चों की परेशानी के आगे उन्होंने किसी की नहीं सुनी। वहीं, इससे इतर उत्तराखंड सरकार कोटा में फंसे बच्चों को लेकर सिर्फ सोचती रही, जबकि कई दिनों से परिजन बच्चों को वापस लाने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे थे। खैर, काम योगी ही आए और उत्तर प्रदेश की बसों में ही उत्तराखंड के बच्चों को भी कोटा से वापस लाया गया। सभी की जुबां पर यही था कि 'योगी तो आखिर योगी' ही हैं।

गुप्‍त दान करने से परहेज

कोरोना के चलते लॉकडाउन में सबसे बड़ी समस्या गरीब परिवारों के साथ है, जो इस वक्त हर चीज के लिए मोहताज हो गए हैं। एक वक्त के खाने के लिए वे एक-एक घंटे चिलचिलाती धूप में लाइन में लगने को मजबूर हैं। इस समय शासन, प्रशासन और कुछेक समाजसेवी संगठन उनके लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं, लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे संगठन और राजनीतिक लोग भी हैं, जो सिर्फ अपने प्रचार और महिमामंडन के लिए ऐसा कर रहे। यूं तो शास्त्रों में गुप्त दान को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है, मगर ऐसे लोगों को दान करने से ज्यादा उसके प्रचार की चिंता है। प्रचार और छपासप्रेमी ऐसे लोग उन असहाय या मजबूर लोगों को भोजन के पैकेट देने से पहले फोटो लेना जरूरी मानते हैं। वहीं, इससे इतर जो लोग मन से मदद कर रहे हैं, उनके यहां तो फोटो लेने की भी मनाही है।

सोशल मीडिया पर गरीब प्रेम

गरीब परिवार और बेसहारा लोग इन दिनों मुंह छुपाकर भोजन के पैकेट पकड़े सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं। कतार में लगे इन लोगों को भोजन देने वालों का 'गरीब प्रेम' सुबह से लेकर रात तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सअप पर जमकर दिख रहा। किसी ने गरीब की फोटो के साथ लिखा हुआ कि उसने आज पांच सौ पैकेज भोजन बांटा तो कोई एक हजार, दो हजार भोजन के पैकेट बांटने का दावा कर रहा। ऐसा लग रहा कि मानो सोशल मीडिया पर कोई होड़ लगी हो और ज्यादा भोजन बांटने वाले को उतने ही ज्यादा लाइक, कमेंट या शेयर मिल रहे हैं। इस होड़ में ये लोग शायद इतना भूल चुके हैं कि खाना लेने वाला कोई छात्र, बेरोजगार और प्रवासी भी हो सकता है, जो रुपये खत्म होने पर मदद ले रहा हो। अगर उनके फोटो मीलों दूर बैठे उनके चिंतित परिजन देख लें तो उनका क्या हाल होगा।

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इस 'लूट' का अंत कब

लॉकडाउन में सबसे ज्यादा वारे-न्यारे परचून की दुकान वालों के हो रहे। कोरोना से पहले जो ग्राहक दुकान पर आकर भाव तोल करते थे, उनके जैसों के लिए तो इन दिनों दुकान के दरवाजे मानों बंद हों। अब तो सिर्फ उन्हीं ग्राहकों को तवज्जो मिल रही है जो कीमत न पूछ सीधे सामान मांग रहा। वो भी महंगे वाला। क्या रेट है व क्या लग रहा, कोई नहीं जानता। इन दिनों हालात ये हैं कि पैक्ड खाद्य सामग्री पर तो दो से दस रुपये तक की ओवर रेटिंग चल रही। बच्चों की पसंदीदा मैगी दस रुपये के बदले तेरह से पंद्रह रुपये में बिक रही तो अमूल मठ्ठा बारह रुपये के प्रिंट पर सीधे पंद्रह रुपये में बेचा जा रहा। जो नमकीन-बिस्कुट अमूमन प्रिंट रेट से चार-पांच रुपये कम में मिलते थे, आजकल वे भी प्रिंट रेट के ऊपर बिक रहे। आटा, चावल, चीनी, तेल का तो कोई मोलभाव ही नहीं।

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