पशुओं की जान बचाने का अनोखा संकल्प, दिखा रहा लोगों को नई राह
हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण में नजूल लिपिक के तौर पर काम कर रहे दीपक सेमवाल ने ऐसा संकल्प लिया जिससे जानवरों की जान बचा रही।
हरिद्वार, अनूप कुमार। 'मैं अकेला ही चला था, लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया', इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं हरिद्वार के दीपक सेमवाल। जिन्होंने करीब एक वर्ष पहले कूड़े के ढेर में खाना तलाश रही एक गाय को ब्लेड से घायल होते देखा। तभी उन्होंने ऐसा संकल्प लिया, जिससे जानवरों की जान बचा रही। उन्होंने इसका नाम 'वन कॉल फॉर सेव लाइफ' दिया है। आइए जानते हैं उनके इसी संकल्प के बारे में।
हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण में नजूल लिपिक के तौर पर काम कर रहे दीपक सेमवाल ने जब पशुओं के इस तरह घायल होने की वजह तलाशी तो पता चला कि इसका मुख्य स्रोत नाई की दुकान और ब्यूटी पार्लर हैं। यहां पर रोजाना इस्तेमाल होने के बाद ब्लेड को कूड़े में ही फेंक दिया जाता है। यही कूड़ा एकत्र होकर अन्य कूड़े के साथ कूड़ाघर पहुंचता है। सड़कों पर घूम रहे पशु जब कूड़े में भोजन की तलाश कर रहे होते हैं तो यही ब्लेड न सिर्फ उन्हें घायल कर देते हैं, बल्कि उनकी जान तक लेते हैं। इस पर दीपक ने पहले तो आसपास की नाई की दुकान और ब्यूटी पार्लर संचालकों से संपर्क कर उन्हें ऐसा करने से रोका। उन्हें अपनी ओर एक डिब्बा दिया और अनुरोध किया कि वह प्रयोग हुई ब्लेड को इस डिब्बे में डालें। इस वादे के साथ कि वह खुद उसे दुकान से ले जाएंगे।
दीपक बताते हैं कि पहले-पहल तो उन्हें लोगों और दुकानदारों की भली-बुरी बातें सुनने को मिलीं, प्रयोग हुई ब्लेड को कहां फेंके, क्या करें आदि सवालों की जूझना पड़ा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे उनकी बातों को लोग समझने लगे, पर समस्या का हल अब भी नहीं निकला कि इस तरह एकत्र ब्लेड का क्या किया जाए।
इसकी राह दिखायी इस काम में उनके संपर्क में आए कबाड़ का कारोबार करने वाले लोगों ने। उन्होंने बताया कि इस्तेमाली स्टेनलेस स्टील के ब्लेड को गलाकर दोबारा किसी भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यह जानकारी मिलने पर दीपक ने हरिद्वार और जिले से बाहर के ऐसे लोगों को ढूंढ़ा जो इस काम को करते थे। अब पूरी चेन तैयार हो गई थी। इस काम में दीपक को करीब दो महीने लगे। इस बीच वह नाई की दुकान और ब्यूटी पार्लर से ब्लेड एकत्र करने और उसे कूड़े में न फेंकने के लिए जागरूक भी करते रहे। उन्होंने इसके लिए सोशल मीडिया और फेसबुक का भी सहारा लिया।
इस दौरान एचआरडीए उपाध्यक्ष और मेलाधिकारी दीपक रावत और अपर मेला अधिकारी डा. ललित नारायण मिश्र का उन्हें विशेष सहयोग और प्रोत्साहन मिलता रहा। इससे उनकी हिम्मत बढ़ी। उनके सहयोग को लोग भी काफी संख्या में जुड़े। दीपक ने सभी को इसके प्रेरित किया। आज उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 17 से अधिक जिलों में दीपक से प्रेरणा पाकर लोग इस काम को कर रहे हैं। किसी ने फेसबुक से जाना तो कोई वाट्सएप के जरिये संपर्क में आया।
चेन बनने के बाद दीपक का काम काफी आसान हो गया। अब वह नाई की दुकान और ब्यूटी पार्लर वालों को डिब्बा देने के साथ डिब्बा भरने पर उसे अपनी दुकान के सामने से गुजर रहे किसी भी कबाड़ एकत्र करने वाले को देने के लिए कहते हैं। इसके बदले दुकानदार को उसकी कीमत भी मिलती है।