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स्टिंग ऑपरेशन: सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक रहा उमेश कुमार शर्मा का चेहरा

स्टिंग ऑपरेशन की मुख्य धुरी के रूप में सामने आया उमेश कुमार शर्मा उत्तराखंड में पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 10:03 AM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 10:03 AM (IST)
स्टिंग ऑपरेशन: सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक रहा उमेश कुमार शर्मा का चेहरा
स्टिंग ऑपरेशन: सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक रहा उमेश कुमार शर्मा का चेहरा

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: स्टिंग ऑपरेशन की मुख्य धुरी के रूप में सामने आया उमेश कुमार शर्मा उत्तराखंड में पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक रहा है। राज्य गठन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी से लेकर हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल तक उमेश कुमार को हमेशा सत्तापक्ष के नजदीक देखा गया। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी इसके अपवाद रहे। उमेश सबसे अधिक 2016 में तब चर्चा में आया, जब उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग कर सियासत में भूचाल ला दिया था। यह भी सच है कि इस घटनाक्रम के बाद वह भाजपा के लिए बड़ा चेहरा बनकर सामने आया।

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उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड बनने पर भाजपा की अंतरिम सरकार के दौरान उमेश ने सरकार और शासन में अपनी जड़ें जमाई। यही वजह रही कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल तक वह हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक देखा गया। केवल पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और उनका कार्यकाल इसका अपवाद रहा। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में भी वह सत्ता शीर्ष के करीब रहा, लेकिन बाद में निशंक ने उमेश के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया, जिसे बाद में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वापस ले लिया गया।

विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनने पर उमेश ने अपनी सक्रियता अधिक बढ़ाई। वर्ष 2016 में उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग कर डाला, जिसने सूबे की सियासत में भूचाल ला दिया था। रावत अपनी सरकार बचाने में कामयाब जरूर हो गए, मगर इस घटनाक्रम के बाद उमेश भाजपा के लिए बड़ा चेहरा बन गया। अब वह भाजपा सरकार और उसके नौकरशाहों को ही स्टिंग के जरिये घेरे में लेने की जुगत में लगा था।

अजय भट्ट (प्रदेश अध्यक्ष भाजपा) का कहना है कि मैं प्रदेश प्रभारी के साथ कुमाऊं के दौरे पर हूं। मुझे इस प्रकरण की कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। यदि ऐसा कोई प्रकरण है तो कानून अपना काम कर रहा होगा।

तो सूबे को सियासी अस्थिरता में झोंकने की भी थी मंशा

मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों के स्टिंग के प्रयास को लेकर एक चैनल के सीईओ उमेश कुमार की गिरफ्तारी के बाद साफ हो गया कि षडय़ंत्र सूबे को एक बार फिर सियासी अस्थिरता में झोंकने का भी था। लगभग ढाई साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग से उत्तराखंड तब सियासी संकट से घिर गया था। उस वक्त भी इसी चैनल ने स्टिंग किया था। 

उत्तराखंड अपने गठन के वक्त से ही लगातार अस्थिरता का सामना करता आ रहा है। लगभग सवा साल चली पहली अंतरिम सरकार में दो-दो मुख्यमंत्री से इस अस्थिरता की शुरुआत हुई थी। वर्ष 2002 में स्व. नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार हालांकि पूरे पांच साल चली, मगर इस दौरान सियासी उथल-पुथल पूरे समय कायम रही। वर्ष 2007 में भाजपा सत्ता में आई लेकिन पांच साल के दौरान दो बार मुख्यमंत्री बदले गए। पहले भुवन चंद्र खंडूड़ी, फिर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और फिर खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 2012 में कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला लेकिन इसमें भी विजय बहुगुणा को बीच में ही रुखसत होना पड़ा।

बहुगुणा के बाद हरीश रावत मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2014 से लेकर अगले तीन साल उत्तराखंड भयंकर राजनैतिक झंझावात से गुजरा। कई दिग्गज कांग्रेस छोड़ गए। मार्च 2016 में कांग्रेस बिखर गई और पहली बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। इसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग ने प्रदेश ही नहीं, देश की भी राजनीति में हलचल मचा कर रखी। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि अपर मुख्य सचिव के अलावा मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के स्टिंग की भी योजना बनाई गई थी, हालांकि यह परवान नहीं चढ़ पाई। साफ है कि इसका मकसद सूबे को एक बार फिर सियासी अस्थिरता की ओर धकेलने का भी था।

स्टिंग को लेकर शासन में मचा हड़कंप

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के स्टिंग का प्रयास और मुख्यमंत्री के करीबियों के संभावित स्टिंग का प्रकरण सामने आने के बाद शासन में हड़कंप मचा हुआ है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री के वे नजदीकी कौन हैं, जिनका रिकार्डिंग का ऑपरेशन (स्टिंग) होने का जिक्र प्रथम सूचना रिपोर्ट में किया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री आवास तक तीन खुफिया कैमरे ले जाने के प्रयास की बात से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी मंथन तेज हो गया है। इस संबंध में अधिकारियों की गुपचुप बैठकें भी हुई लेकिन संपर्क करने पर अधिकारी चुप्पी साधे रहे। 

 उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग करने वाले उमेश शर्मा के खिलाफ एक और स्टिंग का प्रयास करने की एफआइआर दर्ज होने के बाद से ही शासन में सरगर्मी तेज रही। अवकाश होने के बावजूद अधिकारियों के फोन इस प्रकरण को लेकर घनघनाते रहे। दोपहर बाद सचिवालय में अधिकारियों व कर्मचारियों का आवागमन बना रहा, हालांकि, इसे मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह के केदारनाथ दौरे से जोड़कर देखा गया। दरअसल, एक चैनल से ताल्लुक रखने वाले उमेश कुमार की गिरफ्तारी की खबर अधिकांश अधिकारियों को थी, बावजूद इसके बोलने से हर कोई कतराता रहा। इस प्रकरण की जानकारी लेने के लिए सचिवालय के अधिकारियों व कार्मिकों के फोन जरूर मीडिया कर्मियों तक पहुंचे। इसमें सबसे अधिक उत्सुकता उस रिकार्डिंग ऑपरेशन को लेकर थी जिसका जिक्र एफआइआर में दर्ज है। दरअसल, एफआइआर में यह कहा गया है कि शिकायतकर्ता 16 अप्रैल को देहरादून आया था और 18 अप्रैल तक उनकी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जो मुख्यमंत्री से संबंध रखते थे। रिकार्डिंग ऑपरेशन पूरा करने के बाद उसने इसी दिन एक विवाह समारोह में रिकार्डिंग की मेमोरी चिप उमेश कुमार को दी थी। इससे यह जाहिर हो रहा है कि 16 से 18 अप्रैल के बीच कुछ लोगों का स्टिंग किया गया। इसके अलावा जिस प्रकार से एक विवादित अधिकारी का नाम अपर मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री से मिलवाने के लिए एफआइआर में आया, उसे लेकर भी चर्चाएं तेज हैं। 

इस संबंध में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश और प्रमुख सचिव गृह आनंद वद्र्धन से संपर्क करने का प्रयास किया गया। मुख्य सचिव ने बैठक का हवाला देते हुए बात नहीं की, जबकि अन्य दो अधिकारियों ने फोन कॉल रिसीव नहीं की। 

ईडी और आयकर विभाग भी कसेंगे शिकंजा

स्टिंग की साजिश रचने में गिरफ्तार चैनल के सीईओ पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) व आयकर विभाग भी कार्रवाई कर सकता है। ऐसे संकेत पुलिस से मिले हैं।

उमेश के ठिकाने से 16 हजार से अधिक यूएस डॉलर व 11 हजार से अधिक की थाई करेंसी भाट बरामद हुई है। जिसकी कीमत भारतीय मुद्रा में करीब 12 लाख रुपये है। जबकि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत कोई भी भारतीय नागरिक दो हजार यूएस डॉलर से अधिक की राशि अपने पास नहीं रखा सकता और इसके लिए भी कारण होना चाहिए। ऐसे में सबसे पहली कार्रवाई फेमा की तय हो चुकी है। इसके अलावा एक्सटॉर्शन के मामले में एफआइआर हो जाने के बाद ईडी के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में भी कार्रवाई करने की राह खुल गई है। ईडी सूत्रों की मानें तो यदि एक्सटॉर्शन की राशि की स्थिति स्पष्ट हो जाती है तो सीधे तौर पर कार्रवाई होगी और आरोपितों की संपत्ति भी अटैच की जा सकती है। इसके अलावा अटेंप्ट टू एक्सटॉर्शन पाए जाने पर पुराने आरोपितों पर पहले दर्ज की गई एफआइआर को मिलाकर कार्रवाई की जाएगी। उधर, उमेश कुमार के ठिकाने से 39 लाख रुपये से अधिक की राशि मिलने पर आयकर विभाग भी अलग से कार्रवाई करेगा। साथ ही आयकर विभाग अब तक दाखिल की गई रिटर्न व अर्जित की गई संपत्ति के आधार पर भी कार्रवाई कर सकता है। इस बात की पुष्टि करते हुए अपर पुलिस महानिदेशक (लॉ एंड ऑर्डर) अशोक कुमार ने बताया विभिन्न जांच एजेंसियों को कार्रवाई के लिए जिस भी रिकॉर्ड की जरूरत होगी, उसे मुहैया कराया जाएगा।

फुलप्रूफ एक्शन को दबे पांव चली पुलिस

स्टिंग की साजिश का मामला हाईप्रोफाइल होने के चलते उत्तराखंड पुलिस दबे पांव चली। उसने बड़ी कार्रवाई होने तक किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। यही नहीं, कार्रवाई में किसी तरह का व्यावधान अथवा तकनीकी पेच न फंसे, इसके लिए भी उनकी पुख्ता कानूनी तैयारी की हुई थी। 

साजिश का भंडाफोड़ होने की खबर रविवार को पूरे दिन सुर्खियों में रही। इससे भी ज्यादा चर्चा का विषय बनी पुलिस की कार्रवाई, जिसका खुलासा चैनल मालिक की गिरफ्तारी के बाद हुआ। गौरतलब है, निजी चैनल के कर्मचारी आयुष गौड़ ने दस अगस्त को ही राजपुर थाने को तहरीर दे दी थी। हालांकि, इसके पहले वह शासन से लेकर पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों से भी मिल चुका था। तहरीर मिलने के अगले दिन यानी 11 अगस्त को मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया।

मगर आम मुकदमों की तरह इस मामले की पुलिस ने कोई बुलेटिन जारी नहीं किया, अलबत्ता, जांच के लिए चुनिंदा अफसरों और पुलिसकर्मियों को टास्क सौंपा गया। सभी को हिदायत दी गई कि इस मामले में गोपनीयता सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। हुआ भी ऐसा, दो महीने तक पुलिस प्रकरण की जांच करती रही। शासन के जिस अफसर का स्टिंग किया गया था, उसके भी बयान लिए गए। पुख्ता सबूत मिलने के बाद पुलिस ने दो रोज पहले चैनल मालिक उमेश कुमार के घर की तलाशी के लिए सर्च वारंट की अर्जी डाल दी।

सर्च वारंट मिलते ही एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने सीओ मसूरी बीएस चौहान के नेतृत्व में टीम गठित कर शनिवार रात को गाजियाबाद के लिए रवाना कर दिया। दून पुलिस पहले गाजियाबाद के इंदिरापुरम कोतवाली पहुंची, जहां से अतिरिक्त पुलिस बल लेकर उमेश कुमार के घर पर छापा मारा गया। उमेश उस वक्त अपने में घर में ही था। उसे सर्च वारंट दिखाकर घर की तलाशी ली गई और मुकदमे की जानकारी देते हुए उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया।

सुरक्षाकर्मियों के विरोध का लिया संज्ञान

उमेश कुमार की सुरक्षा में सीआरपीएफ की गारद तैनात की गई है। दून पुलिस जब उमेश के आवास पहुंची तो सीआरपीएफ के जवानों ने पुलिस का रास्ता रोक लिया। सीओ मसूरी ने जब मुकदमे और सर्च वारंट से जुड़े कागजात दिखाए तो भी जवान अपनी जिद पर अड़े रहे। इस दौरान पुलिस की उनसे नोकझोंक भी हुई। उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद सीआरपीएफ के जवान पीछे हटे। एसएसपी ने कहा आवश्यकता पड़ी तो इस संबंध में आगे लिखत-पढ़त की जाएगी।

एफएसएल भेजे जाएंगे बरामद उपकरण

एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने बताया कि उमेश कुमार के गाजियाबाद स्थित घर से बरामद हार्ड डिस्क, मोबाइल व अन्य उपकरणों को डाटा रिकवरी के लिए केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाएगा। वहां की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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