उत्तराखंड में पहली बार नर्सरी में उगा 'त्रायमाण', जानिए इसकी खासियत
जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड औषधीय वनस्पतियों का भंडार भी है, लेकिन अनियंत्रित दोहन के कारण इन पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है।
देहरादून, [केदार दत्त]: जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड औषधीय वनस्पतियों का भंडार भी है, लेकिन अनियंत्रित दोहन के कारण इन पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। ऐसी ही औषधीय महत्व की वनस्पति है त्रायमाण (वनस्पतिक नाम-जेंटियाना कुरू रॉयल)।
राज्य में केवल चकराता और नरेंद्रनगर वन प्रभाग की कुछेक पहाड़ियों पर चट्टानों के बीच उगने वाली इस वनस्पति को संकटापन्न श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके संरक्षण के लिए वन महकमे की अनुसंधान विंग आगे आई है। उसके प्रयासों का ही नतीजा है कि पहली बार त्रायमाण को देववन रिसर्च सेंटर की नर्सरी में उगाने में सफलता मिली।
चकराता वन प्रभाग की कनासर रेंज और नरेंद्रनगर प्रभाग की सकलाना रेंज की खड़ी चट्टानी पहाड़ियों पर उगता है आयुर्वेद में खास महत्व रखने वाला त्रायमाण। शाकीय प्रजाति का यह पौधा उदर रोगों के साथ ही खून साफ करने, मधुमेह समेत अन्य कई रोगों में रामबाण माना जाता है। यही खूबियां इसके संकट की वजह बन गई हैं। 1960 के दशक से शुरू हुए इसके अनियंत्रित दोहन के कारण आज यह अस्तित्व बचाने की जिद्दोजहद में है। यही कारण भी है कि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने त्रायमाण को संकटापन्न श्रेणी की वनस्पतियों में शामिल किया है।
इस सबको देखते हुए वन विभाग की अनुसंधान विंग ने त्रायमाण के संरक्षण को कदम उठाने की ठानी। अनुसंधान वृत्त के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि त्रायमाण के संरक्षण के लिए चकराता व नरेंद्रनगर वन प्रभाग की पहाड़ियों के उन स्थलों को चिह्नित किया गया, जिनकी चट्टानों के बीच यह प्राकृतिक रूप से उगता है। साथ ही त्रायमाण को नर्सरी में उगाने का निश्चय किया गया।
आइएफएस चतुर्वेदी के मुताबिक चकराता वन प्रभाग के अंतर्गत देववन रिसर्च सेंटर में बीज और जड़ कटिंग के जरिए त्रायमाण के पौधे नर्सरी में उगाने के प्रयास किए गए। वर्तमान में नर्सरी में त्रायमाण के 2000 पौधों पर फूल खिले हैं। इस वनस्पति के संरक्षण की दिशा में यह पहला कदम है। यही नहीं, त्रायमाण का पर्यवेक्षण डाटा भी तैयार किया जा रहा है।
प्राकृतिक धरोहर बचाना है मंशा वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त चतुर्वेदी कहते हैं कि त्रायमाण प्राकृतिक धरोहर है, जिसे संरक्षित रखने को इसके अनियंत्रित दोहन को रोकने की जरूरत है। विभाग की मंशा भी यही है। उन्होंने कहा कि यदि त्रायमाण के संरक्षण के मद्देनजर कोई जानकारी लेना चाहता है तो उसे यह दी जाएगी।
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