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सड़क पर चलना जरा संभल कर, क्‍योंकि आ गया ट्रैफिक आई उत्तराखंड एप

यातायात निदेशालय ने आमजन को ट्रैफिक आई उत्तराखंड एप नाम का ऐसा चश्मा देने जा रही है जिससे वह यातायात नियमों को धता बताने वालों की पुलिस से मुखबिरी कर सकते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 27 Feb 2020 02:03 PM (IST)Updated: Thu, 27 Feb 2020 02:03 PM (IST)
सड़क पर चलना जरा संभल कर, क्‍योंकि आ गया ट्रैफिक आई उत्तराखंड एप
सड़क पर चलना जरा संभल कर, क्‍योंकि आ गया ट्रैफिक आई उत्तराखंड एप

देहरादून, संतोष तिवारी। सड़क पर चलते समय अब सभी को यातायात नियमों का ख्याल रखना ही होगा। क्योंकि, यातायात निदेशालय ने आमजन को 'ट्रैफिक आई उत्तराखंड एप' नाम का ऐसा चश्मा देने जा रही है, जिससे वह सड़क पर यातायात नियमों को धता बताने वालों की सीधे पुलिस से मुखबिरी कर सकते हैं। इसे लेकर सावधान होने की जरूरत इस वजह से भी है कि एप की लांचिंग 29 फरवरी को होगी, लेकिन गूगल प्ले स्टोर से इस एप को सैकड़ों लोग देख चुके हैं। लिहाजा, अब पुलिस के सामने यातायात नियमों को तोड़ खुद को सूरमा समझने की सोच रखने वालों पर शिकंजा कसने को पुलिस ने आम जनता को जो हथियार दिया है, उसकी चर्चा खूब हो रही है। इसका सकारात्मक पहलू यह है कि पुलिस तो हर जगह मौजूद तो रह नहीं सकती। ऐसे में लोगों में ट्रैफिक नियमों के पालन के प्रति गंभीर करने को यह बेहतर प्रयास है।

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फिर सब पहले जैसा

20 दिन चले आंदोलन के बाद शहर में फिर सबकुछ पहले जैसा होने लगा है। ई-रिक्शा चालकों की यूनियन को भी लगने लगा है कि पुलिस ने अगर उन्हें तीन मुख्य मार्गों पर चलने की अनुमति दे दी है तो आगे भी उनकी गुहार सुन ही ली जाएगी। सो, उन्होंने धरनास्थल से बोरिया-बिस्तर समेटा और लौट गए। हालांकि, तय यह हुआ था कि जब तक उन्हें पूरे शहर में बेरोकटोक चलने की अनुमति नहीं मिल जाती, किसी न किसी बहाने परेड ग्राउंड में जमे रहेंगे। मगर पिछले सप्ताह अंदरखाने न जाने ऐसा क्या हुआ कि ई-रिक्शा चालकों को जागरूक करने के अभियान को अमल में नहीं लाया गया। संभव है कि सभी ई-रिक्शा चालक यातायात नियमों के पंडित हों और सभी के पास डीएल व सभी कागजात मौजूद हों। इसकी असल वजह क्या है। प्रशासन या पुलिस की कार्रवाई का डर या कुछ और...। यह तो यूनियन जाने या अधिकारी।

नहीं देना चाहते परीक्षा

फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा का भविष्य पुलिस की जांच पर टिक गया है। इस प्रकरण के बाद से सरकारी नौकरी पाने की आस पाले युवाओं को लगने लगा है कि उन्होंने परीक्षा ही क्यों दी? चौतरफा हो रहे प्रदर्शनों में यह मांग भी उठने लगी है कि आयोग परीक्षा में शुरू से ही पुलिस को भी शामिल कर ले। पुलिस पहले से सक्रिय रहेगी तो नकल माफिया के मन में डर पैदा होगा। युवाओं का यह सोचना कितना सही है, यह अलग बात है। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पूर्व की परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी से तंत्र ने सबक क्यों नहीं लिया। जाहिर है कि जिस युवा ने पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी, अब वह धक्के खाने को विवश होने पर व्यवस्था को तो कोसेगा ही। कुछ युवा तो यहां तक कहने लगे हैं कि अब उनका सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं से मोह-भंग होने लगा है।

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मोर नाचा किसने देखा

दिल्ली के जंतर-मंतर की झलक दिखाने वाले परेड ग्राउंड स्थित धरनास्थल को ननूरखेड़ा शिफ्ट किए जाने का असर अभी से नजर आने लगा है। पूर्व में जहां हर दिन पुलिस के पास धरना, रैली, जुलूस या प्रदर्शन की अनुमति के लिए तीन से चार आवेदन आते रहते थे। वहीं, अब ऐसे एक-दो आवेदन भी नहीं पहुंच रहे हैं। दरअसल, बात यह है कि राजधानी में आए दिन होने वाले धरना-प्रदर्शन, जुलूस और रैलियों के कारण पूरा शहर जाम हो जाता था। इसका समाधान प्रशासन ने धरनास्थल को शिफ्ट करने के रूप में ढूंढ निकाला है। मगर, सच तो यह है कि संगठनों के लिए ननूरखेड़ा में धरना-प्रदर्शन कुछ ऐसा होगा, जैसे जंगल में मोर नाचा किसने देखा। शहर के बीचोबीच 10-20 लोगों के धरने का जो असर पड़ता था। उससे पूरा शहर परेशान हो जाता था और पुलिस को भी व्यवस्था बनाए रखने में नाको चने चबाने पड़ जाते थे।

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