उत्तराखंड में ऑक्सीजन टैंकरों पर लगेंगे ट्रेकिंग डिवाइस, जानिए वजह
उत्तराखंड में बढ़ते कोरोना संक्रमण के साथ ही ऑक्सीजन की मांग भी तेजी से बढ़ने लगी हैं। प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन आक्सीजन की सप्लाई को अब टैंकरों की कमी महसूस की जा रही है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड में बढ़ते कोरोना संक्रमण के साथ ही ऑक्सीजन की मांग भी तेजी से बढ़ने लगी हैं। प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है, लेकिन आक्सीजन की सप्लाई को अब टैंकरों की कमी महसूस की जा रही है। इन टैंकरों से उत्तराखंड के साथ ही अन्य राज्यों के लिए सप्लाई होती है। टैंकरों की वास्तविक स्थिति पर नजर रखने के लिए विभाग इनमें ट्रेकिंग डिवाइस लगाने की तैयारी कर रहा है, मकसद यह कि इनकी सही लोकेशन की जानकारी होने से आक्सीजन वितरण प्रणाली को मजबूत किया जा सके और कालाबाजारी पर भी लगाम लगाई जा सके।
प्रदेश में इस समय यूं तो 13 आक्सीजन प्लांट लगे हैं, लेकिन मुख्य तौर पर आपूर्ति तीन बड़े प्लांट से होती है। इनमें सेलाकुई के प्लांट से 160 टन प्रतिदिन, झबरेड़ा के प्लांट से 100 टन प्रतिदिन और काशीपुर के प्लांट से 30 टन गैस प्रतिदिन आक्सीजन उपलब्ध होती है। यहां से आक्सीजन की सप्लाई टैंकर के माध्यम से उत्तराखंड के विभिन्न जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व चंडीगढ़ के अस्पतालों के लिए हो रही है। प्रदेश से इस समय 50 टैंकर संचालित हो रहे हैं।
इनमें से 11 टैंकर उत्तराखंड और शेष टैंकर अन्य राज्यों में आक्सीजन की सप्लाई कर रहे हैं। देखने में आ रहा है कि टैंकर रवाना होने के बाद विभिन्न कारणों से अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। जितनी गैस प्लांट से निकल रही है, उतनी अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है। इससे कालाबाजारी की आशंका बढ़ रही है। इसे देखते हुए परिवहन विभाग प्रदेश में गैस वितरण करने वाले टैंकरों पर ट्रेकिंग डिवाइस लगाने जा रहा है।
उप आयुक्त परिवहन एसके सिंह ने बताया कि ट्रेकिंग डिवाइस लगाने का उद्देश्य गैस वितरण की अवधि पर नजर रखना, आक्सीजन की कालाबाजारी पर रोक लगाना और यह देखना है कि कहीं इसकी सप्लाई औद्योगिक क्षेत्र में तो नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि सभी टैंकरों में चार मई तक ट्रेकिंग डिवाइस लगाने का लक्ष्य रखा गया है।
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