उत्तराखंड में बाघों का प्राकृतिक आवास खतरे में, यह है वजह
बाघों की प्रमुख सैरगाह कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लगातार फैलती र्कुी (लैंटाना कमारा) की झाड़ियां इनका वास स्थल लील रही हैं।
देहरादून, [केदार दत्त]: देश में बाघ संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड में बाघ का प्राकृतिक आवास खतरे में पड़ गया है। इसका कारण बनी है लैंटाना। कार्बेट के 50 तो राजाजी टाइगर रिजर्व के 60 फीसद हिस्से में लैंटाना का कब्जा हो चुका है।
बाघों की प्रमुख सैरगाह कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लगातार फैलती र्कुी (लैंटाना कमारा) की झाड़ियां इनका वास स्थल लील रही हैं। लैंटाना के फैलाव के कारण घास के मैदान संकुचित होने से बाघ के शिकार के अड्डों में कमी आई है। कार्बेट फाउंडेशन ने इस पर जताते हुए कहा है कि यदि लैंटाना उन्मूलन के कदम नहीं उठाए गए तो यहां बाघों का सरंक्षण कठिन हो जाएगा। राज्य सरकार के माथे पर भी की लकीरें उभर आई हैं।
अपने इर्द-गिर्द दूसरे पौधों को न पनपने देने और वर्षभर खिलने के गुण के कारण लैंटाना वनस्पति पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। कार्बेट टाइगर रिजर्व में और राजाजी रिजर्व के बड़े हिस्से पर लैंटाना का फैलाव बाघों को प्रभावित कर रहा है। लैंटाना के फैलाव से घास के मैदान (चौड़) संकुचित हो रहे हैं। लैंटाना के कारण घास के मैदानों में शाकाहारी जानवरों की आवाजाही कम होने से वहां बाघ के शिकार के अड्डों में भारी कमी देखने में आई है।
टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन फॉर कार्बेट टाइगर रिजर्व की हाल में हुई बैठक में भी इस पर जताई गई। कार्बेट फाउंडेशन की शासी निकाय ने तो यह तक साफ किया है कि स्थिति में जल्द सुधार न हुआ तो यहां बाघों को संरक्षित करना अत्यंत कठिन हो जाएगा। लिहाजा, इस मुसीबत के निराकरण के लिए विशेष प्रोजेक्ट के तहत लैंटाना उन्मूलन का कार्य युद्धस्तर पर किया जाना आवश्यक है।
कार्बेट में इसके लिए डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने के निर्देश भी फाउंडेशन ने दिए। हालांकि, कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व की 10 वर्षीय कार्ययोजना (वर्किंग प्लान) में लैंटाना उन्मूलन शामिल है, मगर इसके लिए बजट काफी कम मिलने की बातें सामने आती रही हैं। इस सबको देखते हुए सरकार ने अब न सिर्फ टाइगर रिजर्व बल्कि अन्य वन प्रभागों में लैंटाना उन्मूलन के लिए गंभीरता से कदम उठाने की ठानी है। इसके लिए कार्ययोजना तैयार करने पर गहनता से मंथन प्रारंभ हो गया है।
सीआर बाबू तकनीक है कारगर
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीआर बाबू ने लैंटाना उन्मूलन के लिए वर्ष 2006-07 में तकनीक कार्बेट में ही विकसित की थी। इसे सीआर बाबू तकनीक ही कहा जाता है। इसके तहत लैंटाना के पौधे को जमीन से छह-आठ इंच नीचे जड़ से काटकर उल्टा कर दिया जाता है। फिर यह जड़ से पैदा नहीं होता। फिर संबंधित क्षेत्र की लगातार मॉनीटरिंग होती है, ताकि वहां गिरे बीज से लैंटाना के अन्य पौधे न पनपने पाएं। हालांकि, वन विभाग ने इस तकनीक को अपनाया हुआ है, मगर इसका उपयोग कभी-कभार ही होता है।
डॉ. हरक सिंह रावत (वन एवं पर्यावरण मंत्री) का कहना है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के 60 फीसद हिस्से में लैंटाना का कब्जा प्रदेश में संरक्षित व आरक्षित क्षेत्रों में लैंटाना का फैलाव जनक है। इस समस्या से निबटने के लिए विभाग को निरंतर कदम उठाने के साथ ही लैंटाना उन्मूलन के लिए प्रभावी कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
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