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New Year 2020 Biggest Challenges for uttarakhand govt: सेहत के मोर्चे पर संजीवनी की खोज, इन कमियों को करना होगा दूर

मौजूदा दौर में सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक स्वास्थ्य सेवाएं अवश्य बढ़ी हैं लेकिन इनका मूल्यांकन करने पर तीन प्रमुख स्तरों पर कमियां नजर आती हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 01 Jan 2020 02:41 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jan 2020 02:41 PM (IST)
New Year 2020 Biggest Challenges for uttarakhand govt: सेहत के मोर्चे पर संजीवनी की खोज, इन कमियों को करना होगा दूर
New Year 2020 Biggest Challenges for uttarakhand govt: सेहत के मोर्चे पर संजीवनी की खोज, इन कमियों को करना होगा दूर

देहरादून, सुकांत ममगाईं। मौजूदा दौर में सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक स्वास्थ्य सेवाएं अवश्य बढ़ी हैं, लेकिन इनका मूल्यांकन करने पर तीन प्रमुख स्तरों पर कमियां नजर आती हैं। जिन्हें दूर करना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह चुनौतियां स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता, और कीमत के मोर्चों पर हैं। कारण यह है कि स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने से लेकर इसकी पहुंच तक, पारंपरिक तौर पर स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बिखरे स्वरूप में नजर आता है। व्यवस्था में सुधार के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाना समय की मांग है। जिसके लिए सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं, तो कुछ प्रयास अभी भी किए जाने हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में स्थितियां कुछ बेहतर होंगी। 

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इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टेंडडर्स लागू 

प्रदेश में अब इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टेंडर्स (आइपीएचएस) के मानकों के अनुसार सरकारी अस्पतालों को पांच श्रेणियों में वर्गीकृत कर दिया गया है। केंद्र सरकार द्वारा आइपीएचएस के मानकों के अनुसार ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट आवंटित किया जाता है। प्रदेश में अभी तक सरकारी अस्पताल इसके मानकों के अनुसार नहीं थे। इस कारण प्रदेश को काफी कम बजट मिल रहा था। 

314 डॉक्टरों की होगी भर्ती 

स्वास्थ्य के मोर्चे पर सबसे बड़ी चुनौती चिकित्सकों की कमी दूर करने की है। लाख जतन के बाद भी प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के करीब 700 पद खाली पड़े हैं। जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी से लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में राज्य सरकार ने इस ओर एक बार फिर पहल की है। उत्तराखंड चिकित्सा सेवा चयन गई बोर्ड ने 314 नए डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल पर कुछ हद तक ही सही डॉक्टरों की यह कमी दूर होगी। 

एक और मेडिकल कॉलेज होगा शुरू, तीन और की तैयारी 

डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सरकार कई मोर्चों पर एकसाथ काम कर रही है। दीर्घकालिक नीति के तहत सरकार की मंशा अधिकाधिक मेडिकल कॉलेज खोलने की है। यह इकाईयां मानव संसाधन के लिहाज से भविष्य में फीडर का काम करेंगी। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में इसी सत्र से पढ़ाई शुरू होने की उम्मीद है। 50 सीट की मान्यता कॉलेज को पिछले सत्र ही मिल गई थी, पर कॉलेज प्रबंधन ने इससे इंकार कर दिया। यहां एमबीबीएस की 150 सीट के लिए प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा रुद्रपुर, हरिद्वार और पिथौरागढ़ में भी मेडिकल कॉलेज को लेकर कवायद शुरू कर दी गई है। 

हल्द्वानी में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट 

चिकित्सा शिक्षा विभाग की बहुप्रतीक्षित परियोजना स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए अंतिम चरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। चार साल से प्रस्तावित परियोजना के लिए केंद्रीय टीम की हरी झंडी मिल चुकी है। बता दें, भारत सरकार की ओर से 120 करोड़ रुपये से स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाया जाना है। इस संस्थान के खुलने के बाद यहां पर हर तरह के कैंसर का इलाज संभव हो जाएगा। 

प्रदेशभर में 800 वेलनस सेंटर 

आयुष्मान भारत योजना के तहत प्रदेशभर में करीब 800 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर संचालित होने हैं। जिसमें करीब 250 अभी संचालित किए जा रहे हैं। इस सेंटर पर मरीजों को निश्शुल्क उपचार सुविधा मिल रही है। साथ ही 30 वर्ष की आयु के लोगों को निश्शुल्क जांच भी मिल रही है जिसमें ब्रेस्ट, सर्वाइकल और ओरल कैंसर के अलावा हाइपरटेंशन और डायबिटीज की जांच शामिल है। 

पर्वतीय जिलों में बनेंगे मदर वेटिंग सेंटर 

प्रदेश में गर्भवती महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग इनके लिए मदर वेटिंग रूम बनाने जा रहा है। इस योजना के तहत इन स्थानों पर गर्भवती महिलाओं को बच्चा पैदा होने की संभावित तिथि से पहले भर्ती किया जाएगा। यहां इनके इलाज के लिए सहायकों को भी रखा जाएगा। देहरादून में भी इसी तरह का वेटिंग रूम बनाने की योजना है। बता दें, प्रदेश में एक बड़ी चुनौती स्वास्थ्य सूचकांक में सुधार लाने की है। इसमें उत्तराखंड लगातार पिछड़ रहा है। खासकर मातृ और शिशु मृत्यु दर में। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस नए प्रयोग से मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी। 

चाइल्ड लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम होगा अपग्रेड 

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं के उपचार की आधुनिक सुविधा मिल सकेगी। शिशु मृत्यु दर के बढ़ते आंकड़ों में सुधार करने और चाइल्ड लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम अपग्रेड किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत छह न्यूबॉर्न स्टेब्लाइच्ड यूनिट (एनबीएसयू) को सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में उच्चीकृत किया जा रहा है। 

फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर पर फोकस 

स्वास्थ्य विभाग अब सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) के तिलिस्म को भी तोडऩे में जुटा है। इसके लिए फैमिली पार्टिसिपेटरी केयर यानि परिवार की सहभागिता के साथ देखभाल पर फोकस किया जा रहा है। इसका प्रमुख ध्येय स्वास्थ्य कर्मियों और परिजनों के बीच तालमेल है। जिसके तहत परिजनों को भी यह अनुमति रहेगी कि वह वार्ड में जाकर बच्चे की देखभाल में सहयोग करें। 

कंगारू यूनिट से मिलेगी नवजातों को जिंदगी 

प्री-मेच्योर और कम वजन के बच्चों को मौत के मुंह से बचाने के लिए अब कंगारू केयर की मदद ली जाएगी। प्रदेश में जहां भी सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) हैं, वहां इसके लिए अलग से वार्ड तैयार किया जाएगा। शुरुआत के तौर पर हरिद्वार और अल्मोड़ा में कंगारू केयर यूनिट स्थापित की गई हैं। 

कर्मचारी, पेंशनरों को भी सुरक्षा कवच 

सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को भी अटल आयुष्मान योजना के दायरे में लाने के लिए सरकार ने कवायद तेज कर दी है। बता दें, प्रदेश सरकार ने आयुष्मान भारत योजना का विस्तार करते हुए समस्त प्रदेशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के उद्देश्य से अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना की शुरुआत की है। सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए जो योजना प्रस्तावित की गई उसमें इलाज के खर्च को असीमित रखा गया। इसके लिए लाभ लेने वाले कार्मिक के पद के हिसाब से अंशदान लिए जाने का प्रावधान किया गया। कर्मचारी वर्ग, सरकारी अस्पताल से रेफरल की अनिवार्यता को समाप्त करने के साथ ही प्रदेश और दूसरे राज्यों के निजी अस्पतालों में सीधे इलाज की सुविधा देने की मांग कर रहे हैं, जिसका हल निकाला जा रहा है। 

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अटल आयुष्मान में अब बाहर भी इलाज 

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के तहत मरीज अब राज्य के बाहर भी मुफ्त इलाज की सुविधा पा सकेंगे। इस योजना के तहत नेशनल पोर्टेबिलिटी की सुविधा आरंभ होने जा रही है। बता दें, राज्य में न्यूरो सर्जरी, हार्ट सर्जरी, कैंसर और बर्न के इलाज की ज्यादा सुविधा नहीं है। एम्स, हिमालयन अस्पताल, श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल आदि में यह सुविधा है तो पर चिकित्सक सीमित हैं। ऐसे में इमरजेंसी की स्थिति में लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। इसे देखते हुए ही बाहर भी इलाज की सुविधा दिए जाने का फैसला लिया गया है। 

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