इस बार आठ दिन के होंगे नवरात्र, ऐसे करें घटस्थापन
चैत्र नवरात्र 18 मार्च से शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र आठ दिन होंगे। अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन यानी 25 मार्च को पड़ रही हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: चैत्र नवरात्र 18 मार्च से शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र आठ दिन होंगे। अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन यानी 25 मार्च को पड़ रही हैं। इसी दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र पूजा अनुष्ठान पूरा होगा। मंदिरों में नवरात्र महोत्सव और रामनवमी की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं।
आचार्य सुशांत राजपूत के अनुसार, प्रतिपदा 17 मार्च को शाम 7.41 बजे से शुरू हो जाएगी। लेकिन, घटस्थापन व अन्य पूजा अनुष्ठान सूर्योदय के बाद 18 मार्च को ही किए जाएंगे। नवरात्र में सुबह और शाम मां भगवती की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। नारद पुराण के अनुसार, हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। आचार्य संतोष खंडूड़ी ने बताया कि पिछले तीन साल से नवरात्र आठ दिन में ही संपन्न हो रहे हैं। नवरात्र में सिर्फ खाने का उपवास ही नहीं, बल्कि इंद्रियों पर भी पूर्ण नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए।
ऐसे करे घटस्थापन
मिट्टी से वेदी बनाकर हरियाली के प्रतीक जौ बोएं। इसके बाद सोने, मिट्टी या तांबे के कलश पर स्वास्तिक बनाएं। पूजा गृह में विधि-विधान के साथ कलश स्थापित करें। श्रीफल, गंगाजल, चंदन, सुपारी पान, पंचमेवा, पंचामृत आदि से शक्ति की आराधना करें।
घट स्थापन का मुहूर्त
- लाभ की चौघडिय़ा, सुबह 9.48 से 11.18 तक
- अमृत की चौघडिय़ा, सुबह 11.19 से दोपहर 12. 48 तक
इनका लगाएं भोग
मां शैलपुत्री-आरोग्य जीवन को गाय का शुद्ध घी का
मां ब्रह्मचारिणी-परिवार की सुरक्षा और खुशहाली के लिए मिष्ठान का
मां चंद्रघंटा-विघ्नों को दूर रखने के लिए दूध से बने उत्पाद का
मां कूष्मांडा-ज्ञान मे वृद्धि के लिए मीठी पूरी का
मां स्कंदमाता-बेहतर स्वास्थ्य के लिए फल का
मां कात्यायनी-सौंदर्य में वृद्धि के लिए शहद और दूध का
मां कालरात्रि-कष्टों से मुक्ति के लिए गुड़ और गन्ने के रस का।
मां महागौरी-घर मे सुख-शांति के लिए नारियल अर्पित करें
मां सिद्धिदात्रि-मृत्यु भय से छुटकारा पाने के लिए काले तिल चढ़ाएं।
(आचार्य संतोष खंडूड़ी के अनुसार)
इन मंत्रो का करें जाप
-या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
-सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वित:, मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न शंसय:
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