हिमालय के प्रति एक समान रोडमैप के बारे में भी जतानी चाहिए चिंता
पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि हिमालय के तमाम राज्यों के कुछ समान मुद्दे हैं। हमें हिमालय के प्रति एक समान रोडमैप के बारे में भी चिंता जतानी चाहिए।
देहरादून, जेएनएन। पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी (संस्थापक हेस्को) का कहना है कि हिमालय के तमाम राज्यों के कुछ समान मुद्दे हैं। हमें हिमालय के प्रति एक समान रोडमैप के बारे में भी चिंता जतानी चाहिए और ये किसी भी सूरत में हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
कई किलोमीटर में फैले 9 राज्यों वाले हिमालय में कई गांव है। इनमें से 60 प्रतिशत गांव समान समस्याओं से जूझ रहे हैं, जो लोगों के जनजीवन से जुड़ी हुई है। अपार नदियों के बाद भी यहां के लोग जल संकट से पीड़ित है। पूरे हिमालय के धारों पर विलुप्ति का एक बड़ा खतरा आ चुका है और गांव में पानी एक बड़ा मुददा बन चुका है। यह भी विडंबना है कि जिस हिमालय को बड़े जलविद्युत बांधों की जगह माना जाता है, वहां ही लोग पानी को प्यासे हैं तो हिमालय के सवाल जस के तस बने रहेंगे। हिमालय की खेती बाड़ी जलवायु परिवर्तन के अलावा एक बड़े आक्रमण से पीड़ित है।
जंगली जानवरों का प्रकोप, ये उत्तराखंड हो, हिमाचल प्रदेश या अन्य पूर्वोत्तर राज्य, एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। पर इन पर सामूहिक चिंता नहीं जताई जाती। नई मारों के बीच में सदियों से चले आ रहे शिक्षा स्वास्थ के मुद्दे वहीं के वहीं है। पलायन चाहे दबाव में हो रहा हो या चलन में, इसकी गति के धीमी पड़ने के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। क्योंकि इस ओर कोई गंभीर कदम नहीं उठे हैं। ऐसे में हिमालय की चिंता ज्यादा बड़ा विषय है। हिमालय का लाभ हम हमेशा से लेते चले आए हैं, एक और लाभ की तलाश ग्रीन बोनस के रूप में जरूरी है पर साथ में हिमालय को बचाने की गंभीरता इससे ज्यादा जरूरी है। हिमालय की समझ को अगर बेहतर करना है तो इसके साथ यहां के जनजीवन को जोड़कर देखा जाना चाहिए, अन्यथा हमारे सारे कार्य आधे-अधूरे ही रहेंगें।
हिमालयी चुनौतियों पर हो मंथन
पद्मश्री अवधेश कौशल (संस्थापक रुलक संस्था) का कहना है कि देश के पहाड़ी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का मसूरी में हो रहा हिमालयन कॉन्क्लेव एक स्वागतयोग्य कदम है। आशा है कि हिमालयी राज्यों के पर्यावरण और जलवायु पर चर्चा करते वक्त प्रतिभागी यह नहीं भूलेंगे कि हिमालय केवल भारत का ही नहीं बल्कि उसके नेपाल, भूटान, तिब्बत आदि जैसे कई हितधारक भी है। इसके अलावा ग्रीन कवर के लिए बैगिंग की बजाय हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चाहिए कि वे ईको सेंसिटिव जोन जैसे वर्गों और प्रतिबंधों की समीक्षा के लिए आवाज उठाएं। जहां विकास बंद हो गया है और आम लोग पीड़ित हैं। यहां तक कि पानी-बिजली परियोजनाओं को पूरा करने के बाद रोक दिया गया है। यही नहीं, सभी हिमालयी राज्यों में मानव-वन्यजीव संघर्ष भी कम नहीं है।
वन्यजीव मनुष्य के अलावा खेती किसानी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह भी चर्चा का बिंदु होना चाहिए। एक और बहुत ही संवेदनशील मसला नदियों की सफाई का है। यह कार्य नियमित रूप से नहीं किया जाता। नतीजतन नदियों के बढ़ते तल के कारण बाढ़ की स्थिति बन रही। साथ ही भूजल स्तर भी नीचे जा रहा है। नदियों के तल में जमा अतिरिक्त आरबीएम हटाने के लिए रिवर बेड क्वेरिंग की जानी चाहिए। यह भी देखना होगा कि अन्य देश सड़क, पानी और बिजली परियोजनाओं का विकास कर रहे हैं, लेकिन अपने यहां ऐसा नजर नहीं आ रहा। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था और विकास में बाधा आ रही है। उम्मीद है हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्री इन बिंदुओं पर गहनता से मंथन करेंगे।
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