कंडवाल के परिवार के लिए फरिश्ते से कम नहीं सुषमा स्वराज
देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समूचे देश में अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए जानी जाती रहेगी।
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :
देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समूचे देश में अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए जानी जाती रहेगी। तीर्थ नगरी से उनका राजनीतिक संबंध ही नहीं बल्कि लोगों से संवेदना पूर्ण रिश्ता भी रहा है।
बापू ग्राम मीरा नगर स्थित पूर्व सैनिक मोहनलाल कंडवाल का परिवार प्रखर नेत्री सुषमा स्वराज के जाने से अत्यधिक दुखी है और हो भी क्यों ना। परिवार के आगे छह वर्ष पुराना मंजर सुषमा स्वराज के नाम से फिर से जीवंत हो उठता है। मोहनलाल कंडवाल के पुत्र आशीष कंडवाल दुबई में एक होटल में नौकरी करते थे। 28 वर्षीय आशीष नौ नवंबर 2013 को होटल का काम खत्म कर घर जाने के लिए सड़क के किनारे खडे़ थे तभी किसी वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी इस हादसे में आशीष की मौत हो गई। बेटे की मौत की सूचना से परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा। परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता दुबई से बेटे के पार्थिव शरीर को भारत लाना थी। भाजपा के तत्कालीन जिला अध्यक्ष ज्योति सजवाण ने इस परिवार को पूरी हिम्मत दी और आशीष के पार्थिव शरीर को घर तक लाने के लिए संपर्कों की तलाश में जुट गए। दिल्ली में भाजपा प्रवासी प्रकोष्ठ के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष सच्चिदानंद शर्मा को उन्होंने पूरी बात बताई और विदेश मंत्रालय के जरिए इस परिवार को मदद का आग्रह किया। सच्चिदानंद शर्मा ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पूरे मामले की जानकारी दी और उनसे भारतीय दूतावास के जरिए मदद की अपील की। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस मामले में तत्काल भारतीय दूतावास को आवश्यक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया। विदेश मंत्री के निर्देश पर भारतीय दूतावास ने दुबई दूतावास से संपर्क किया और आशीष कंडवाल के पार्थिव शरीर को उसके घर तक पहुंचाने के लिए कार्यवाही शुरू हुई। 13 दिन बाद सरकार के खर्च पर आशीष का पार्थिव शरीर दुबई से हवाई जहाज के माध्यम से दिल्ली पहुंचाया गया। इस तरह से आशीष का अंतिम संस्कार सुषमा स्वराज की मदद से गंगा तट पर संभव हो पाया। आशीष के माता पिता सुषमा स्वराज के निधन के समाचार से बेहद दुखी हैं। मोहनलाल बताते हैं कि दुबई में बेटे की मृत्यु की सूचना के बाद उसकी मिट्टी को अपने देश तक लाने के लिए हम काफी परेशान रहे। एक बार तो उम्मीद ही टूट गई थी। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हमारे बेटे की मिट्टी को घर तक पहुंचाने में बहुत बड़ा काम किया। हम उनके एहसान को आजीवन नहीं चुका सकते। सुषमा स्वराज के साथ तभी से हमारा भावनात्मक रिश्ता जुड़ गया था।