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Lockdown में गढ़ी जा रही परिवार की असल परिभाषा, आप भी जानिए इनदिनों घर-घर की कहानी

लॉकडाउन में दुनिया की रफ्तार थमने लगी तो पीछे छूटे अपने भी करीब आने लगे। यही वजह है कि इन दिनों दून में घरों से आ रही खिलखिलाने की आवाज कानों में रस घोल रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 12:56 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 12:56 PM (IST)
Lockdown में गढ़ी जा रही परिवार की असल परिभाषा, आप भी जानिए इनदिनों घर-घर की कहानी
Lockdown में गढ़ी जा रही परिवार की असल परिभाषा, आप भी जानिए इनदिनों घर-घर की कहानी

देहरादून, सुमन सेमवाल।  कहते हैं अपनों की कीमत सपनों से बढ़कर होती है। मगर, दूसरों से आगे बढ़ने की होड़ में आज सपनों की कीमत अपनों की अहमियत पर भारी पड़ने लगी है। जिंदगी में आगे बढ़ने की होड़ में अपने कब पीछे छूट गए, हमें इसका भी भान नहीं हो पाता। लेकिन, कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू किए गए लॉकडाउन में दुनिया की रफ्तार थमने लगी तो पीछे छूटे अपने भी करीब आने लगे।

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यही वजह है कि इन दिनों राजधानी देहरादून की कॉलोनियों में वाहनों का शोर सुकून नहीं छीन रहा, बल्कि घरों से आ रही खिलखिलाने की आवाज कानों में रस घोल रही है। जिन घरों में दिन शुरू होते ताले लटक जाते थे और सांझ ढलने पर ही कुछ हलचल दिखाई पड़ती थी, उनमें अब सुबह-शाम का फासला ही मिट गया है। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू से पहले ही देश-दुनिया में बसे 20 हजार से अधिक प्रवासी अपने घरों को लौट चुके थे और लॉकडाउन-तीन में छूट बढ़ी तो 26 हजार से अधिक लोग वापसी को पंजीकरण करा चुके हैं। तीन मई से लेकर अब तक लगभग आठ हजार लोग देश के विभिन्न शहरों से दून पहुंच भी चुके हैं।

किसी के परिवार में बच्चे लौट आए हैं तो किसी के भाई-बहन। शिक्षा, नौकरी और काम-धंधे के बहाने हजारों लोग सालभर में एक बार भी अपने घर नहीं आ पाते थे। लेकिन, आज उनकी हर सुबह परिवार के साथ शुरू हो रही है। पहले जब बाहर रह रहे परिवार के सदस्य घर वापस आते थे, तो मेहमान की तरह उनकी देखभाल की जाती थी। मगर, इन दिनों परिवारों का नजारा बदला हुआ है। परिवार के जो सदस्य बाहर से आ रहे हैं, वह घर के सभी कायरें में एक कदम आगे बढ़कर हाथ बंटाने लगे हैं। परिवार के बीच कई दिन बिताने के बाद उन्हें अहसास हो रहा है कि अपनों के बीच और अपने में ही रहने में कितना अंतर होता है। रिश्तों के के आगे दुनिया-जहान की चकाचौंध कुछ भी नहीं है।

कोई अपने किचन गार्डन में मां का हाथ बंटा रहा है, तो कोई रसोई में रोज नई रेसिपी सीख रहा है। दादा-दादी के अनुभवों की सीख भी मुफ्त में मिल रही है। घर लौटे प्रवासी यह भी जान पा रहे हैं कि कोई भी परिवार महज रिश्ता रखने से नहीं, बल्कि रिश्तों के बीच रहकर अपनापन बांटने से पूरा होता है। दून में इन दिनों हजारों परिवार इस शाब्दिक अर्थ से आगे बढ़कर इसके संपूर्ण अर्थ को जी रहे हैं। आत्मसात कर रहे हैं। कोरोना वायरस को तो एक दिन हारना ही है, मगर संकट की इस घड़ी में भी लोगों के रिश्ते जीत रहे हैं।

 

नानी-दादी के और करीब आए बच्चे

वैसे तो दादा-दादी और पोते-पोतियों का संबंध बेहद गहरा होता है, लेकिन लॉकडाउन ने एक साथ रह रहे परिवारों में बच्चों और बुजुर्गो के रिश्ते और प्रगाढ़ बना दिए हैं। सामान्य दिनों में बच्चे नौकरी या पढ़ाई के लिए अन्य शहर या राज्यों में अलग रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन में उन्हें अपने माता-पिता व दादा-दादी के साथ रहने का मौका मिला है। अब बच्चे नाना-नानी या दादा-दादी के साथ अधिक समय बिता रहे हैं। इन दिनों पोता अपने दादा को कैरम में मात दे रहा है, तो नानी ने नाती को लूडो में पटखनी दे दी है। अधिकांश संयुक्त परिवारों का इन दिनों यही आलम है। किस्से-कहानियों का दौर भी बदस्तूर जारी है। लॉकडाउन में बच्चों और बुजुर्गो का ऐसे ही समय बीत रहा है। इससे संबंधों में तो मिठास घुल ही रही है, बल्कि लॉकडाउन का समय भी मनोरंजन के साथ बीत रहा है।

परिवार संग पढ़ाई और नौकरी का आनंद

डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स एप्लिकेशन लैबोरेटरी (डील) के रिटायर्ड निदेशक डॉ. आरएस पुंडीर ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस बेटे को एमबीए की पढ़ाई के लिए मुंबई भेजा था, वह घर में बैठ कर ही परीक्षा देगा और जो बेटी नौकरी के लिए बेंगलुरू गई थी, वह उनके पास रहकर घर से ही काम करेगी। कोरोना के संकटकाल में ऐसा हुआ है, चिंता भी जरूरी है, मगर परिवार के मुखिया होने के नाते डॉ. पुंडीर अपने बच्चों को पास देखकर खुश भी बहुत हैं। रिटायरमेंट के बाद डॉ. आरएस पुंडीर डीओडीओ की दून स्थित लैब आइआरडीई में डिस्टिंगुइस्ड फेलो के रूप में काम कर रहे हैं। 

उनकी पत्नी ऊषा पुंडीर केवी ओएफडी में शिक्षक हैं। दोनों यहां अकेले रहते हैं, मगर लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही उनका बेटा शत्रुंजय व बेटी पार्थवी दून उनके पास लौट आए थे। उनके बेटा-बेटी अब घर के तमाम कायरें में उनका हाथ भी बंटा रहे हैं और जब पुंडीर दंपती कार्यालय शुरू होने के बाद अपने-अपने कार्यस्थल पर चले जाते हैं, तब उनके ही हाथ में घर की कमान होती है। घर में रहकर ही उनके बेटे ने एमबीए की ऑनलाइन परीक्षा दे दी है और बेटी वर्क फ्रॉम होम के रूप में उनके पास रहकर अपना काम कर रही हैं।

पोती के साथ नहीं चलता समय का पता

टर्नर रोड निवासी दो वर्षीय मातृयोश्का दिनभर दादा के कंधे पर चढ़कर धमाचौकड़ी मचाती रहती है। दादा 72 वर्षीय चंद्र कुमार चक्रवर्ती का भी लॉकडाउन में समय पोती के साथ मजे से बीतता है। हालांकि, इसके अलावा भी वे योगा, मित्रों से फोन पर बात आदि कर भी समय व्यतीत करते हैं, लेकिन पोती के साथ भी खूब उछल-कूद हो जाती है। अग्निशमन अधिकारी के पद से रिटायर्ड चंद्र कुमार बच्चों के साथ ही लॉकडाउन में अच्छा समय बिता रहे हैं। घर में उनकी पत्नी समिता, बेटा सिद्धार्थ, बहू देविका और बेटी चंद्रानी तो अपने-अपने कार्यो में व्यस्त रहते हैं, लेकिन पोती और दादा खूब मस्ती करते हैं। दृष्टिबाधित होने के बावजूद चंद्र कुमार पोती को कभी इस बात का अहसास नहीं होने देते।

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राहुल और रसिका कैरम में उस्ताद

छह नंबर पुलिया स्थित इंद्रप्रस्थ कॉलोनी निवासी सरस्वती देवी अपने नातियों के साथ दिनभर कैरम खेल रही हैं। लॉकडाउन के दौरान 86 वर्षीय सरस्वती देवी का अधिकांश समय अपने नाती राहुल और नातिन रसिका के साथ बीत रहा है। राहुल और रसिका भी कभी नानी को कैरम में हरा रहे हैं तो कभी लूडो में। इसके अलावा शाम को नानी से कहानी सुने बिना भी वे नहीं मानते। सरस्वती देवी के पुत्र गगन कक्कड़ ने बताया कि उनकी माता नातियों के साथ खुद भी बच्ची बन जाती हैं। इनडोर गेम्स के अलावा वे एकसाथ टीवी भी देखते हैं।

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