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यहां रोजाना 70 हजार किलो कूड़े का नहीं हो है रहा उठान, जानिए

राजधानी देहरादून में सफार्इ व्यवस्था के हालात कुछ ठीक नहीं है। आलम ये है कि यहां रोजाना करीब 70 हजार किलो कूड़े का उठान ही नहीं हो पाता।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 04:41 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 04:41 PM (IST)
यहां रोजाना 70 हजार किलो कूड़े का नहीं हो है रहा उठान, जानिए
यहां रोजाना 70 हजार किलो कूड़े का नहीं हो है रहा उठान, जानिए

देहरादून, [जेएनएन]: हर चुनाव की तरह इस बार भी फिजा में तमाम मुद्दों का शोर है। हर कोई दून को बेहतर शहर बनाने के ख्वाब दिखा रहा है। काश कि चुनावी घोषणाओं का हिस्सा बनने वाले ये मुद्दे धरातल पर भी उतर पाते। यदि ऐसा होता तो राज्य गठन के 18 साल बाद भी कूड़ा सड़कों, नालियों और खाली पड़े प्लॉटों में डंप नहीं होता। जानकार बेहद हैरानी होती है कि तमाम इंतजाम के बाद भी रोजाना करीब 70 हजार किलो कूड़े का उठान ही नहीं हो पाता। जबकि हर निकाय चुनाव में कूड़ा प्रबंधन प्रमुख मुद्दे के रूप में प्रत्याशियों की जुबान पर तारी रहता है। 

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दून में रोजाना करीब 300 मीट्रिक टन यानी तीन लाख किलो कूड़ा निकलता है। जिसमें से करीब 230 टन ही कूड़ा उठ पाता है। यानी कि हर महीने शहर में करीब 21 लाख किलो कूड़ा शहर में डंप रहकर सुंदर दून के नारे का मुहं चिढ़ाता नजर आता है। यह स्थिति तब है, जब वर्ष 2007-08 से कूड़ा प्रबंधन की योजना पर काम किया जा रहा है। करीब 36 करोड़ रुपये की लागत से जब सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की योजना शुरू की गई थी, तभी यह कहा गया था कि इसी के तहत कूड़ा उठान की व्यवस्था को भी चाक चौबंद बनाया जाएगा।

जबकि वर्ष 2007-08 से करीब 10 साल बाद करीब तीन माह पहले इस दिशा में नगर निगम कूड़ा उठान को नए टेंडर जारी कर सका है। हालांकि, जब तक अनुबंध तैयार किया गया, तब तक आचार संहिता लग चुकी थी। आचार संहिता तो हट जाएगी, मगर उसके बाद भी अनुबंध वाली कंपनी यह काम पूरे मनोयोग से कर पाएगी, इस पर भी सवाल है। क्योंकि इससे पहले जब कुछ समय के लिए डीबीडब्ल्यूएम नाम की कंपनी को यह जिम्मा सौंपा गया था, तब भी कूड़ा उठान को लेकर शिकायतें बरकरार थीं। 

60 वार्डों में यह हाल, 100 वार्ड में क्या होगा 

दून में कूड़ा प्रबंधन की योजना अब तक भी महज 60 वार्डों तक सीमित है। जबकि निकाय चुनाव 100 वार्डों के हिसाब से हो रहे हैं। पहले के 60 वार्डों के हिसाब से ही बात करें तो शीशमबाड़ा स्थित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की क्षमता महज 250 टन प्रतिदिन कूड़ा निस्तारण की है, जबकि रोजाना 300 टन कूड़े का जनरेशन होता है। 

ऐसे में निकाय चुनाव के बाद जब पूरे 100 वार्डों की व्यवस्था देहरादून नगर निगम के सुपुर्द हो जाएगी, तब क्या होगा, इसका अभी कोई प्लान ही नहीं है।

क्योंकि तब कूड़ा जनरेशन का आंकड़ा 400 टन को भी पार कर जाएगा। जबकि शीशमबाड़ा प्लांट के बनने से पहले नगर निगम दावा कर रहा था कि दून के अतिरिक्त मसूरी, विकासनगर व सहसपुर ब्लॉक के कूड़े का भी निस्तारण किया जाएगा। इस खामी को लेकर भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी नगर निगम की व्यवस्था का सवाल खड़े किए गए हैं। 

कूड़े पर इन नियमों की अनदेखी 

-नगरीय ठोस अपशिष्ट नियम-2000 की अनुसूची-दो के अनुसार कूड़े का शहर में फैलाव प्रतिबंधित होगा। साथ ही कूड़े को जलाना भी प्रतिबंधित किया गया है। जबकि इसके अनुरूप नगर निगम की व्यवस्था पूरी तरह फ्लॉप नजर आती है। 

-नियमों के तहत कूड़े को जैविक-अजैविक के हिसाब से अलग-अलग एकत्रित किया जाना चाहिए। इस दिशा में हमारा शहर अभी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है। 

-अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट को सामान्य कूड़े में नहीं मिलाया जाना चाहिए। ऐसा करना बेहद खतरनाक होता है। बावजूद इसके गाहे-बगाहे बायोमेडिकल वेस्ट भी सामान्य कूड़े में पड़ा नजर आ जाता है। 

-नियम 2000 की अनुसूची 19.5.1 में प्रावधान किया गया है कि सफाई कर्मचारियों एवं पर्यवेक्षण स्टाफ के लिए विभिन्न स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। दून के लिए अभी यह बात भी दूर की कौड़ी नजर आती है। 

पर्यावरण पर असर की होती रही अनदेखी

कैग की पिछली रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि नगरीय ठोस अपशिष्ट नियम-2000 के अनुसार जहां भी कूड़ा एकत्रित किया जाता है, वहां के भूजल व वायु की स्थिति की जांच की जानी चाहिए। जबकि इस दिशा में न तो कभी नगर निगम और न ही उनके आग्रह पर पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कभी यह काम किया। स्वच्छ सर्वेक्षण में भी खुली दून की पोल 

स्वच्छ सर्वेक्षण में भी दून की सफाई व्यवस्था का हाल बयां होता है। 2017 के स्वच्छ सर्वेक्षण में दून को राष्ट्रीय स्तर पर 316वीं रैंक मिली थी। हालांकि, तब प्रतियोगिता में शामिल शहरों की संख्या 434 थी। जबकि 2018 के सर्वेक्षण में एक लाख से अधिक की आबादी में राष्ट्रीय स्तर पर 485 शहर शामिल थे। थोड़ा कड़े हुए इस मुकाबले में दून को 259वीं रैंक मिली है। जिस दून से पूरे प्रदेश की व्यवस्था का संचालन किया जाता है, वहां स्वच्छता के मामले में ऐसे हालात और भी चिंताजनक नजर आते हैं। सफाई के मामले में यहां चिराग तले अंधेरे जैसी स्थिति रही है। 

सर्वेक्षण के तहत चार हजार अंकों की परीक्षा में दून को 1846.51 अंक मिल पाए, जो कुल अंकों का 50 फीसद भी नहीं रहा। राष्ट्रीय औसत को छूना तो दूर, राजधानी का शहर राज्य औसत से भी काफी पीछे है।

देहरादून नगर निगम की सेवाओं की बात करें तो इस मोर्चे पर सबसे अंक प्राप्त हुए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आबादी के विस्फोट पर बैठे दून में संसाधन ऊंट के मुहं में जीरा जैसे नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि जनता की प्रतिक्रिया में भी दून को अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो पाए। 

जनता की जुबानी 

केवल विहार निवासी किरण वर्मा का कहना है कि देहरादून में कूड़ा ही एक ऐसी समस्या है जो यहां की सुंदरता को कम करता है। दून में साफ-सफाई की व्यवस्था चाक चौबंद होनी चाहिए। दूनवासियों को भी इसके प्रति सचेत रहना चाहिए और कूड़े को कूड़ेदान में ही फेंकना चाहिए। साथ ही जनप्रतिनिधियों की भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

डीएवी कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉ. डीके त्यागी कहते हैं कि शहर में कूड़ा उठाने की व्यवस्था और कारगर एवं अत्याधुनिक होनी चाहिए। बंगलुरू, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों की तुलना में देहरादून की आबादी ज्यादा नहीं है, लेकिन यहां कूड़ा प्रबंधन अभी भी निचले दर्जे का है। जनप्रतिनिधियों को स्वच्छ भारत अभियान को केवल नारों तक ही सीमित रखने के बजाए धरातल पर उतारना होगा। 

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुधांशु ध्यानी के मुताबिक स्वच्छता का स्वस्थ समाज में अहम योगदान होता है। नगर निगम को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने चाहिए। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर प्रभावी कार्ययोजना होनी चाहिए। साथ ही सड़कों में फैली गंदगी की सफाई को लेकर भी गंभीरता दिखानी होगी। अब तक नगर निगम के प्रतिनिधि इसमें फेल साबित हुए हैं। 

प्रत्याशियों के विचार 

भाजपा से महापौर प्रत्याशी सुनील उनियाल गामा कहते हैं कि  यह सच है कि दून में कूड़ा प्रबंधन की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यदि जनता मुझे विजयी बनाएगी तो वह 100 वार्डों के लिए पुख्ता प्लान बनाएंगे। ताकि डोर टू डोर कलेक्शन के माध्यम से अधिकांश कूड़े का उठान किया जा सके। साथ ही जनता को भी जागरूक किया जाएगा। 

कांग्रेस से महापौर प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल का कहना है कि  अब तक नगर निगम में जो भी जनप्रतिनिधि रहे हैं, उन्होंने कूड़ा प्रबंधन की दिशा में उचित प्रयास ही नहीं किए। सॉलिड वेस्ट प्लांट को शुरू करने में ही सात साल का लंबा समय लग गया है। इसके बाद भी अब तक कूड़ा उठान के इंतजाम पटरी पर नहीं आ पाए हैं। यदि मुझे मौका मिलेगा तो दून को स्वच्छ बनाने को बेहतर प्रयास किए जाएंगे।  

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