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संयुक्त परिवार की धरोहर को संजोए हैं देहरादून का मित्तल परिवार

परिवार कुछ लोग के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मजबूत डोर होती है सहयोग के अटूट बंधन होते हैं। एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हर वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 11:10 AM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 11:10 AM (IST)
संयुक्त परिवार की धरोहर को संजोए हैं देहरादून का मित्तल परिवार
लक्खीबाग निवासी प्रेमलता मित्तल के परिवार के 15 सदस्य आज भी संयुक्त परिवार की धरोहर को संजोए हैं।

जागरण संवाददाता, देहरादून: परिवार कुछ लोग के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मजबूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं। एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हर वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है, लेकिन आधुनिकता के दौर में समाज में रिश्ते बिखर रहे हैं। संयुक्त परिवारों के बिखरने से एकल परिवारों का चलन आम हो गया है। लेकिन  लक्खीबाग निवासी प्रेमलता मित्तल के परिवार के 15 सदस्य आज भी संयुक्त परिवार की धरोहर को संजोए हैं। घर की मुखिया 76 वर्षीय प्रेमलता के तीन पुत्र व बहू और उनके आठ पोते-पोतियां हैं। परिवार के सदस्य एक छत के नीचे एक मुखिया के सानिध्य में साथ रह रहे हैं। फिर खाना बनाना हो या बच्चों का खर्चा, सब आपस मे मिलकर होता है। खुशी भी मिलकर मनाते हैं तो दुख दर्द में एक दूसरे का भी ख्याल रखते हैं। यह संयुक्त परिवार उनके लिए नसीहत है, जो मामूली बातों पर हंसी खुशी और सामंजस्य को तार-तार कर देते हैं।

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यह हैैं परिवार के सदस्य

परिवार की मुखिया प्रेमलता मित्तल हैं। उनके तीन बेटे- बहू संजय व मेघा गर्ग, दीपक व रीना और राजीव व मोनिका हैं। इसमें संजय और राजीव के तीन-तीन जबकि दीपक के दो बच्चे हैं। जिनमें नमन, उत्सव, कार्तिक, आराध्या, यशस्वी, अंजना, यामिया और अर्पिता शामिल हैं। 

सुख-दुख में देते हैं साथ 

परिवार के सभी सदस्य सुख दुख में एक दूसरे का हाथ बांटते हैं। अच्छी बात यह है कि बच्चों में भी इस परिवार में किसी तरह का भेदभाव नहीं होता, बाजार से खाने व पहनने के लिए कुछ आएगा तो सभी के लिए बराबर। एक चूल्हे में परिवार के लिए खाना बनता है और सभी मिलकर खाते हैं। 

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प्यार व संस्कार से आगे बढ़ रहा परिवार 

प्रेमलता बताती हैं कि उनका बड़ा बेटा संजय का विवाह वर्ष 1994 में हुआ था, इसके बाद बेटे व बहु का प्यार मिला तो संयुक्त परिवार को आगे बढ़ाया और 27 वर्ष बाद भी आज सभी मिलकर प्यार के साथ रह रहे हैं। उनका शुरू से सपना था कि परिवार एक साथ मिलकर रहे और यही संस्कार उन्होंने अपने बच्चों को दिए। बच्चों को भी घर पर यही शिक्षा दी है कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता हैं, पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता हैं, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभङ्क्षचतक नहीं है। इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

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