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गमगीन माहौल में निकला दसवीं मुहर्रम का जुलूस Dehradun News

दसवीं मुहर्रम पर मंगलवार को आशूर का जुलूस निकला। अजादारों ने ताजिया निकाला और मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। अल्लाह के बंदों ने हाथों में तिरंगा भी लहराया।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 10:41 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 10:41 AM (IST)
गमगीन माहौल में निकला दसवीं मुहर्रम का जुलूस Dehradun News
गमगीन माहौल में निकला दसवीं मुहर्रम का जुलूस Dehradun News

देहरादून, जेएनएन। दसवीं मुहर्रम पर मंगलवार को आशूर का जुलूस निकला। अजादारों ने ताजिया निकाला और मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। या हुसैन की सदाओं के बीच अल्लाह के बंदों ने हाथों में तिरंगा भी लहराया। 

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ईसी रोड स्थित इमामबाड़ा में मजलिस में शामिल होने के लिए सुबह से ही बड़ी संख्या में अजादारों ने शिरकत की। मौलाना मोहम्मद असगर बिजनौरी के बयान के अंजुमन में मोईनुल मोमिनीन के प्रबंधन में जुलूस शुरू हुआ। मजलिस समाप्त होते ही लोग इमाम हुसैन की शहादत के गम में डूब गए। भूखे प्यासे रहकर अजादारों ने आंसुओं का पुरसा पेश किया। 

दोपहर में मजलिस के बाद ताजिया लेकर अजादार चल पड़े। जुलूस में ताजिया अलम और जुलजनाह (घोड़ा) भी निकाला गया। जुलूस में शामिल अजादार कमा (धातु की बनी छोटी तलवार) को सिर पर चलाने लगे। बड़े अजादार पीठ पर छुरी चलाकर और बच्चे सीना पीटकर मातम मना रहे थे। मातम करते हुए जुलूस सर्वे चौक, परेड ग्राउंड, लैंसडौन चौक, दर्शनलाल चौक, तहसील चौक से होते इनामुल्ला बिल्डिंग पहुंचा। 

यहां मौलाना ने करबला की घटना पर तकरीर की। जुलूस गांधी रोड पर समाप्त हुआ। यहां काले अलम ने तहसील चौक पर स्वागत किया। अजादारों ने हुसैन के घोड़े पर अपनी मन्नतें कीं और इमाम हुसैन की कब्र के रूप में बने ताजिये पर तबर्रुक चढ़ाया। अंत में तबर्रुक बांटकर भूखे प्यासे मोमिनीन अजादारों का फाका समाप्त कराया। बच्चों ने भी नोहा पढ़ा व मातम किया। 

इस दौरान सज्जाद हैदर, कल्बे हैदर जैदी, अफसर हुसैन, हसन जैदी, एएच नकवी, डॉ. शमशुल रिजवी, हाजी शमीम हुसैन, सिकंदर नकवी, जमाल रजा, शहंशाह आलम, गफ्फार हुसैन, मंजूर खान, सरदार आलम आदि मौजूद थे। 

सुरक्षा के रहे पुख्ता इंतजाम

जुलूस के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहे। जुलूस के साथ एसपी सिटी श्वेता चौबे के साथ राजपुर थाने की फोर्स भी साथ चल रही थी। जुलूस की वजह से कई रूटों को डायवर्ट किया गया था।

इंसानियत का दुश्मन था जालिम बादशाह

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था। यजीद खुद को खलीफा मानता था। वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया। यह जंग इराक के प्रमुख शहर कर्बला में लड़ी गई थी। 

यजीद अपने सैन्य बल के दम पर हजरत इमाम हुसैन और उनके काफिले पर जुल्म ढा रहा था। उस काफिले में उनके परिवार सहित कुल 72 लोग शामिल थे। जिसमें महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी थे। यजीद ने बच्चों सहित सबके लिए पानी पर पहरा बैठा दिया था। 

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भूख-प्यास के बीच जारी युद्ध में हजरत इमाम हुसैन ने प्राणों की बलि देना बेहतर समझा, लेकिन यजीद के आगे समर्पण करने से मना कर दिया। महीने की 10वीं तारीख को पूरा काफिला शहीद हो गया। चलन में जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था, वह मुहर्रम का ही महीना था।

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