केंद्र सरकार के 10 विभागों को दून में चाहिए 319 एकड़ जमीन
प्रधानमंत्री आवास योजना तक के लिए समुचित जमीन की व्यवस्था कर पाना मुश्किल हो रहा है वहां केंद्र सरकार के 10 संस्थान अपने भवन निर्माण आदि के लिए एक-एक दिन गिन रहे हैं।
देहरादून, सुमन सेमवाल। जिस दून में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) को लैंड बैंक की कमी का सामना करना पड़ रहा है और प्रधानमंत्री आवास योजना तक के लिए समुचित जमीन की व्यवस्था कर पाना मुश्किल हो रहा है, वहां केंद्र सरकार के 10 संस्थान भी अपने भवन निर्माण आदि के लिए एक-एक दिन गिन रहे हैं। इनके 319 एकड़ क्षेत्रफल से अधिक भूमि के प्रस्ताव जिलाधिकारी कार्यालय में करीब सालभर से डंप पड़े हैं।
केंद्रीय संस्थानों के प्रस्तावों में जमीन की सबसे पुरानी मांग विदेश मंत्रालय की है। कई सालों से किराये के अलग-अलग भवन (क्षेत्रीय कार्यालय व पासपोर्ट सेवा केंद्र) में संचालित हो रहे कार्यालय के लिए एक एकड़ भूमि की जरूरत है। पूर्व में विदेश मंत्रालय को मोहकमपुर के पास जमीन आवंटित की गई थी, मगर उसमें विवाद उत्पन्न होने के बाद पासपोर्ट कार्यालय ने अपने हाथ खींच लिए।
वहीं, सर्वाधिक 165 एकड़ तक की भूमि की जरूरत सीआरपीएफ (सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स) को ग्रुप सेंटर खोलने के लिए है। इसके बाद 68 एकड़ भूमि की की मांग सेना ने की है। सेना की 127 इन्फेंट्री की बटालियन के मैस, बैरक आदि की स्थापना के लिए जमीन चाहिए। 68 एकड़ भूमि की ही मांग गढ़ी कैंट क्षेत्र में सेना को है।
इनके लिए भी चाहिए जमीन
- दून में सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के लिए, 08 एकड़
- भारतीय खाद्य निगम को ऋषिकेश में गोदाम के लिए, 03 एकड़
- सीआरपीएफ मुख्यालय की स्थापना, 04 हैक्टेयर
- जनगणना कार्य निदेशालय के लिए, 01 एकड़
- इग्नू के क्षेत्रीय कार्यालय के लिए 01 एकड़
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, 900 वर्ग गज
सी रविशंकर (जिलाधिकारी देहरादून) का कहना है कि सरकार के पास अलग-अलग स्थानों पर जमीनें हैं। मगर, एक स्थान पर अधिक क्षेत्रफल में जमीन उपलब्ध न होने के चलते दिक्कत आ रही है। फिर भी संबंधित कार्यालयों के अधिकारियों को विभिन्न जमीनों के सर्वे कराए जा रहे हैं। प्रयास किए जाएंगे कि सभी को जल्द भूमि का आवंटन कर दिया जाए।
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गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनें आवंटित, सवाल बरकरार
वैसे तो सरकार ने गोल्डन फॉरेस्ट की करीब 500 हैक्टेयर भूमि का आवंटन विभिन्न विभागों को कर दिया है, मगर इन पर सरकारी स्वामित्व को लेकर सवाल अभी बरकार है। वह इसलिए कि कुछ समय पूर्व तत्कालीन राजस्व सचिव ने ही सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यह जमीनें सरकार में निहित नहीं हैं और इन पर जिलाधिकारी कोर्ट में सुनवाई चल रही है। यह बात भी सामने आई है कि जमीनों के आवंटन को लेकर हाल में ही हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब भी मांगा है।