अफसरी के लटके झटके, कुछ यही हाल है शिक्षा विभाग के अधिकारियों
अफसरी चीज ही ऐसी है कि सुलटाने से ज्यादा मजा पटकने में मिलता है। यही हाल शिक्षा विभाग के अधिकारियों का है। प्राथमिक से माध्यमिक तक शिक्षक सबसे ज्यादा परेशान पदोन्नति को लेकर रहते हैं। मजाल क्या है कि साहब पसीज जाएं। अब यही हाल इन छोटे साहबों का है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। अफसरी चीज ही ऐसी है कि सुलटाने से ज्यादा मजा पटकने में मिलता है। कुछ यही हाल शिक्षा विभाग के अधिकारियों का है। प्राथमिक से माध्यमिक तक शिक्षक सबसे ज्यादा परेशान पदोन्नति को लेकर रहते हैं। मजाल क्या है कि साहब पसीज जाएं। अब यही हाल इन छोटे साहबों का है। पदोन्नति को लेकर खुद परेशान हैं। 2018-19 की प्रविष्टियों को चरित्र पंजिकाओं में दर्ज कराने के लिए उन्हें महीनों शासन से विभाग में नियुक्त होते रहे आला अधिकारियों के चक्कर काटने पड़े। अब अन्य विभागों और प्रदेशों में जिम्मेदारी संभाल रहे ये आला अधिकारी चरित्र पंजिकाओं में अधीनस्थ अधिकारियों के बारे में प्रविष्टि दर्ज करना भूल गए। एड़ियां घिसने के बाद प्रविष्टियां पूरी करने में कामयाबी मिली तो पता चला कि 30 सितंबर गुजर चुका है। पदोन्नति नहीं मिल पाई। इस तिथि के बाद अगले शैक्षिक सत्र यानी 2019-20 के लिए नए सिरे से प्रविष्टियां जुटानी पड़ रही हैं।
बिन आइएएस सब सून
नीति निर्माण में साहब यानी आइएएस को नजरअंदाज नहीं कर सकते। तमाम दांव-पेच से गुत्थम-गुत्था होते हुए सरकार के मनमाफिक योजनाओं के लिए जमीन तैयार करने के उनके हुनर के कायल मंत्री साहेबान भी रहते हैं। सूबे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने को ड्राफ्ट बनाने के लिए आनन-फानन में बनाई गई टास्क फोर्स में शिक्षा सचिव राजन मीनाक्षीसुंदरम का नाम छूट गया। शिक्षा विभाग के होशियार अधिकारियों की सूची तैयार की और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास अनुमोदन को भेज दी गई। विभाग पर भरोसा कर मुख्यमंत्री ने भी सूचीबद्ध टास्क फोर्स के गठन पर मुहर लगा दी। बाद में विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय और उच्च शिक्षा राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत ने सूची पर गौर किया तो विभागीय सचिव नदारद। मंत्रीद्वय का माथा ठनका। बगैर आइएएस यानी सचिव प्रदेश में नीति का बेड़ा पार कैसे लगेगा। यकीन मानिए टास्क फोर्स में नई एंट्री हो गई है।
तैनाती को तरसना पड़ा
उत्तराखंड बोर्ड की 12वीं की कक्षा में पढ़ रहे दूरदराज पर्वतीय क्षेत्रों के विद्याॢथयों को जीवविज्ञान विषय अब शायद ही कठिन लगे। लंबे इंतजार के बाद राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित जीवविज्ञान विषय के 57 प्रवक्ताओं को नियुक्ति दे दी गई। 2018 में भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद चयनित प्रवक्ताओं के मामले में माइक्रो बायोलॉजी विषय को लेकर विवाद हो गया था। दरअसल उच्च शिक्षा के स्तर पर विभिन्न विषयों के उप विषयों में स्नातक व स्नातकोत्तर डिग्रियां दी जा रही हैं, लेकिन माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों की नियुक्तियों के लिए बनीं पुरानी नियमावलियों में जरूरत के मुताबिक तेजी से संशोधन नहीं हो पाए। ये विवाद इसी का नतीजा रहा। बाद में मामला सुलझने पर बीते मार्च माह में आयोग ने चयनित प्रवक्ताओं की सूची विभाग को दी। कोरोना महामारी का कहर टूटने से कामकाज तकरीबन ठप रहा। सात माह से ये शिक्षक तैनाती को तरस रहे थे।
जाएं तो जाएं कहां
सरकारी तंत्र का तदर्थवाद में यकीन हद से ज्यादा है। हाईकोर्ट के आदेश भी इस यकीन के शिकार हैं। 1990 में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ नियुक्त हुए शिक्षकों ने हाईकोर्ट में फरियाद की कि उन्हें नियुक्ति तिथि से नियमित माना जाए, तदर्थ नहीं। नियमित नियुक्ति पाए शिक्षकों ने भी इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग को आदेश दिया कि इस मामले को निस्तारित किया जाए। विभाग ने मामला शासन को रैफर कर दिया। इस बीच अधूरी वरिष्ठता सूची को लेकर पनपे विवाद ने दोनों पक्षों को अपीलीय ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाने को मजबूर कर दिया। ट्रिब्यूनल ने भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने को कहा है। तकरीबन दो वर्ष होने को हैं, निदेशालय से लेकर शासन तक इस प्रकरण में तदर्थवाद हावी है। शिक्षक परेशान हैं। वरिष्ठता निर्धारण नहीं होने से पदोन्नति लटकी है। बीच-बीच में शिक्षक संघ मामले में उछल-कूद करता रहता है।
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