इंद्रदेव की मेहरबानी से जंगलों की आग पर पा लिया काबू, पर फायर लाइनों के फुकान को नहीं दिख रही सक्रियता
इंद्रदेव की मेहरबानी से उत्तराखंड में जंगलों की आग पर भले ही काबू पा लिया गया मगर आने वाले दिनों में जंगल न धधकें इसे लेकर खास सक्रियता नहीं दिख रही। वह भी तब जब वर्षभर जंगलों को आग से बचाने के मद्देनजर अलर्ट रहने का एलान किया जा चुका।
केदार दत्त, देहरादून। इंद्रदेव की मेहरबानी से उत्तराखंड में जंगलों की आग पर भले ही काबू पा लिया गया हो, मगर आने वाले दिनों में जंगल न धधकें इसे लेकर खास सक्रियता नहीं दिख रही। वह भी तब जबकि, वर्षभर जंगलों को आग से बचाने के मद्देनजर अलर्ट रहने का एलान किया जा चुका है। इस कड़ी में फायर लाइनों का फुकान शुरू होना चाहिए था, मगर इस मामले में सिस्टम ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है। असल में दावानल पर नियंत्रण को जंगलों में फायर लाइनें बनाई जाती हैं, जो एक प्रकार से चौड़े रास्ते हैं। इन्हें पूरी तरह साफ रखने के लिए वहां जमा पत्तियों के ढेर, झाड़ियों का फुकान किया जाता है। इससे आग एक से दूसरे हिस्से में नहीं जा पाती। प्रदेशभर में फायर लाइनों की लंबाई 13917.1 किलोमीटर है। हालांकि, इन्हें साफ रखने में मैदानी क्षेत्रों में तो दिक्कत नहीं है, मगर पहाड़ में यह आसान काम नहीं है।
बाघ तो ला रहे, मगर चुनौती भी कम नहीं
राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर-धौलखंडक्षेत्र में बाघों का कुनबा बढ़ाने को कार्बेट टाइगर रिजर्व से बाघ शिफ्टिंग को वन विभाग की टीम मोर्चे पर डटी है। उसे सफलता कब मिलेगी, यह देशकाल परिस्थितियों पर निर्भर है। अलबत्ता, कार्बेट से बाघ लाने के बाद यहां चुनौतियां भी कम नहीं है। जिस भी बाघ को यहां लाया जा जाएगा, वह कार्बेट से राजाजी आने तक सात-आठ घंटे पिंजरे में रहेगा। फिर बाड़े में रहने के बाद उसे मोतीचूर-धौलखंड के क्षेत्र में छोड़ा जाना है। यह क्षेत्र चारों तरफ आबादी से लगा है। लिहाजा, उसकी सुरक्षा की चुनौती सबसे बड़ी होगी। ठीक है कि रेडियो कॉलर लगे होने से बाघ की लोकेशन मिलती रहेगी, लेकिन निगरानी के लिए चौबीस घंटे स्टाफ भी तो तैनात रखना होगा। स्टाफ के लिए इसी हिसाब से वाहन आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जानी आवश्यक हैं। देखने वाली बात होगी कि विभाग इसके लिए क्या रणनीति अपनाता है।
दो बाघिनों की रेडियो कॉलरिंग में छूट रहे पसीने
राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में वर्षों से दो बाघिनें एकाकी जीवन जी रही हैं। इसके मद्देनजर वहां कार्बेट से बाघ शिफ्ट किए जा रहे हैं। बावजूद इसके इन बाघिनों पर रेडियो कॉलर लगाने में वन विभाग को पसीने छूट रहे हैं। असल में इस क्षेत्र में 2016 में बाघ शिफ्टिंग की योजना बनी, जो अब आकार लेने की तरफ अग्रसर है। तब से इन बाघिनों की रेडियो कॉलरिंग की बात हो रही, मगर अभी तक इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। सूरतेहाल, इनकी निगरानी चुनौती बनी हुई है। हाल में मोतीचूर क्षेत्र से एक बाघिन का पता नहीं चल रहा था। इसे लेकर खूब हो-हल्ला भी मचा। दिल्ली तक बात गई। हालांकि, महकमे की ओर से इस बाघिन की कांसरो क्षेत्र में मौजूदगी का दावा किया गया है, लेकिन कैमरा ट्रैप में उसकी तस्वीर आना बाकी है। ऐसे में रेडियो कॉलर लगा होता तो उसकी तलाश आसान रहती।
हिम तेंदुओं के वासस्थल विकास पर होगा खास फोकस
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान कहे जाने वाले हिम तेंदुओं के वासस्थलों की स्थिति क्या है, इसे लेकर जल्द ही तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। सिक्योर हिमालय परियोजना के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं के आकलन के मद्देनजर प्रांरभिक सर्वे अब अंतिम चरण में है। इससे हिम तेंदुओं की मौजूदगी वाले स्थलों का पता तो चलेगा ही, ये बात भी सामने आएगी कि कहीं इनके वासस्थलों में कहीं कुछ दिक्कतें, अड़चनें तो नहीं आ रहीं। इसे बाद करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इनके वासस्थलों में सुधार को इसी हिसाब से कदम उठाए जाएंगे। साथ ही अत्यधिक बर्फ पड़ने के दौरान इनके निचले क्षेत्रों में आने पर सुरक्षा के लिहाज से भी प्रभावी रणनीति तैयार की जाएगी। साथ ही निगरानी तंत्र को अधिक सशक्त किया जाएगा। इस लिहाज से हिम तेंदुओं के आकलन को लेकर चल रहे सर्वे को अहम माना जा रहा है।
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