Swatantrata Ke Sarthi: जन आंदोलन से मिला देव स्थलों में प्रवेश का अधिकार
Swatantrata Ke Sarthi प्रसिद्ध जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के देव स्थलों में भेदभाव व छुआछूत जैसी कुप्रथा का अंत करने को कई बार बड़े आंदोलन हुए।
चकराता (देहरादून), चंदराम राजगुरु। Swatantrata Ke Sarthi अपनी अनूठी लोक संस्कृति के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के देव स्थलों में भेदभाव व छुआछूत जैसी कुप्रथा का अंत करने को कई बार बड़े आंदोलन हुए। शोषित समाज व महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाने की मांग को जन आंदोलन में बदलने का काम सामाजिक कार्यकर्ता दौलत कुंवर, रंगकर्मी नंदलाल भारती आदि जागरूक लोगों ने किया। आखिरकार सामाजिक चेतना से क्षेत्र के प्रमुख मंदिरों में पीढ़यों से चली आ रही रूढ़ीवादी परंपरा खत्म हुई और देव स्थलों में नए युग का सूत्रपात हुआ।
इस आंदोलन में जननायक की भूमिका आराधना ग्रामीण विकास केंद्र समिति एवं उत्तराखंड संवैधानिक संरक्षण मंच के प्रदेश संयोजक दौलत कुंवर, उनकी पत्नी एवं समिति की अध्यक्ष सरस्वती कुंवर और प्रसिद्ध रंगकर्मी नंदलाल भारती ने निभाई। इसकी शुरुआत 15 साल पहले सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल से हुई। इसके बाद यह आंदोलन क्षेत्र के अन्य मंदिरों में भी काफी समय तक चला। गरीबी में पले-बढ़े सामाजिक कार्यकर्ता दौलत कुंवर ने क्षेत्र के कुछ अन्य लोगों के सहयोग से देव स्थलों में शोषित समाज व महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव व छुआछूत जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए कई बार सामाजिक प्रताड़ना झेली।
हनोल मंदिर के बाद जून 2015 को दौलत कुंवर ने गबेला स्थित महासू व कुकुर्सी देवता मंदिर में शोषित समाज को प्रवेश दिलाने के लिए तीन दिन तक मंदिर परिसर के पास भूख हड़ताल की। बाद में शासन-प्रशासन के हस्तक्षेप से शोषित समाज व महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी गई। मई 2016 में जौनसार के पुनाह-पोखरी स्थित शिरगुल महाराज मंदिर में देव दर्शन के बाद सामाजिक चेतना की अलख जगाने वाले दौलत कुंवर, पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय व कुछ अन्य लोगों पर भीड़ ने अचानक पथराव कर दिया। इस हमले में वह बाल-बाल बचे।
वर्ष 2006 से लेकर 2017 के बीच उन्होंने क्षेत्र के सभी मंदिरों में शोषित समाज व महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर लगी रोक हटाने के लिए कई बार चरणबद्ध आंदोलन किए। आखिरकार संघर्ष रंग लाया और शोषित समाज को खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला। दौलत कुंवर बताते हैं कि पहले क्षेत्र के देव स्थलों में अनुसूचित जाति वर्ग और महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। दंड के रूप में बकरा देने पर ही उन्हें मंदिर प्रवेश की अनुमति मिलती थी। जबकि, आर्थिक रूप से संपन्न व ओहदे वाले लोग इस शर्त से मुक्त थे। लेकिन, जन आंदोलन के बाद देव स्थलों के द्वार जाति-लिंग के बंधन से मुक्त होकर आमजन के लिए खुल गए।
(फोटो: दौलत कुंवर)
जौनसार-बावर परिवर्तन यात्रा निकाली
शोषित समाज व महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दौलत कुंवर ने वर्ष 2015 में जौनसार-बावर परिवर्तन यात्रा निकाली। इसके जरिये क्षेत्र के कई मंदिरों में व्यवस्था परिवर्तन हुआ। सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दौलत कुंवर को वर्ष 2016 से 2017 के बीच उत्तराखंड शौर्य सम्मान, राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी का वीर एकलव्य सेवा सम्मान व राष्ट्रीय सेवा सम्मान प्रदान किया गया। इसके अलावा उनकी पत्नी सरस्वती कुंवर को वर्ष 2016 में राष्ट्रीय मदर टेरेसा अवार्ड से नवाजा गया।