पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने को भारतीय ज्योतिष का सहारा
पर्यावरण संरक्षण के बहाने छात्रों को भारतीय ज्योतिष शास्त्र व आयुर्वेद का भी ज्ञान दिया जा रहा है। इसके लिए विद्यालय में नवग्रह, नक्षत्र, पंचवटी व धनवंतरी औषधी की वाटिका लगाई है।
विकासनगर, देहरादून [जेएनएन]: देहरादून जिले के राजकीय इंटर कॉलेज हरबर्टपुर में शिक्षा के साथ ही छात्र-छात्राओं को पर्यावरण संरक्षण के बहाने भारतीय ज्योतिष शास्त्र व आयुर्वेद का भी ज्ञान दिया जा रहा है। इसके लिए विद्यालय के जीव विज्ञान प्रवक्ता अशोक कुमार सिंह ने विद्यालय में नवग्रह, नक्षत्र, पंचवटी व धनवंतरी औषधी की वाटिका लगाई है।
अशोक कुमार ने बताया कि अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त की 27 वीं कंडिका में वर्णित पंक्ति के अनुसार पृथ्वी अनेक प्रकार की वनस्पतियों से भरी पड़ी है। सभी वनस्पतियां लाखों प्रकार की औषधियों के गुणों से युक्त हैं। बताया कि पर्यावरण सरंक्षण की दृष्टि से तो इनका महत्व है ही, साथ ही ये औषधियां हमारे दैनिक जीवन की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती हैं। पृथ्वी पर पाई जाने वाली वनस्पतियां जैविक गुणों से युक्त हैं, जिनकी पूजा-अर्चना के पीछे का उद्देश्य भी इनका सरंक्षण ही है। उन्होंने बताया कि ज्योतिष में नौ ग्रहों एवं 27 नक्षत्रों का उल्लेख है।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर इन नवग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। जिस प्रकार ग्रहों एवं नक्षत्रों के देवता के मंत्र, यंत्र, रत्न एवं रंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार इनसे संबंधित वनस्पतियां भी हैं। जिनका पूजा अर्चना व हवन में प्रयोग इनके प्रभाव को प्रभावित करता है।
सभी वनस्पतियां औषधीय गुणों से भरी पड़ी हैं। लिहाजा इनका संरक्षण ही इनकी पूजा है। -नक्षत्र, पौध, औषधीय गुण अश्विनी, कुचला, विष का शमन भरणी, आंवला, वात, पित्त, कफ्फ में लाभकारी कृतिका, गूलर, रोपण से पेट के रोगियों को लाभ मिलता है रोहिणी, जामुन, आंत रोग, मधुमेह, पेट के लिए लाभकारी मृगशिरा, खैर, कुष्ठ रोग, श्वेत प्रदर, भगंदर आदि में लाभकारी आद्रा, शीशम, बीज व जड़ अत्यंत लाभकारी पुनर्वसु, बांस, पत्ती व कोपलों का प्रयोग औषधि के तौर पर किया जाता है पुष्य, पीपल, मान्यता के अनुसार भगवान वास करते है अश्लेषा, नागकेशर, रोपण व सिंचन से सर्पों की तुष्टि व मार्ग प्रशस्त होता है मघा, बरगद, इसका दूध शक्तिवर्धक औषधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है पूर्वा फाल्गुनी, ढाक, बीज व छाल औषधि के तौर पर प्रयुक्त चित्रा, बिल्वपत्र, कई औषधियों में प्रयुक्त स्वाति, अर्जुन, हृदय रोग में छाल लाभकारी, रक्तपित्त, ल्यूकोरिया आदि रोगों में प्रयोग विशाखा, कंटकारी, कफ, ज्वर, श्वसन में लाभकारी अनुराधा, मौलश्री, जड़ का प्रयोग जीर्ण व अतिसार में लाभकारी ज्येष्ठा, चीड़, सौंदर्य प्रसाधन व दाद खाज खुजली की दवा में इस्तमाल मूल, साल, जीवाणुनाशक पूर्वाषाढा, अशोक, स्त्रियों के लिए लाभकारी उत्तराषाढ़ा, कटहल, सब्जी व औषधि में प्रयोग श्रवण, मदार, ज्वर, कफ, अतिसार में उपयोगी शतभिसा, कदंब, औषधियों में प्रयुक्त उत्तराभाद्रपद, नीम, दंत रोग, चर्म रोग, मधुमेह में लाभकारी रेवती, महुवा, इसके तेल का प्रयोग जलने व पैरों की बुवाइयों में होता है।
यह भी पढ़ें: इस नदी को बचाने के लिए आगे आर्इ सेना, ऐसे होगा काम
यह भी पढ़ें: इस नदी को 25 सालों की कोशिश के बाद जीआइएस से मिलेगा पुनर्जन्म
यह भी पढ़ें: सबसे तेज पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, ग्लोबल वार्मिंग के संकेत