अब हिमालय नीति बनाने की दिशा में उठेंगे कदम, पढ़िए पूरी खबर
हिमालय नीति बनाने की दिशा में अब कदम उठेंगे। जिससे हिमालय की पीड़ा को समझा जाएगा और उस पर मरहम लगेेेेगा।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। हिमालय की पीड़ा को समझने और उस पर मरहम लगाने के मकसद से नौ सितंबर को हिमालय दिवस मनाने की मुहिम 10 साल पहले उत्तराखंड से ही शुरू हुई। सरकार ने भी इसे अंगीकृत किया। लंबे अंतराल के बाद इस दिशा में सकारात्मक पहल भी दिखने लगी है।
इसी कड़ी में प्रदेश सरकार की पहल पर मसूरी में जुलाई में हुए हिमालयन कॉन्क्लेव में हिमालयी राज्यों ने अपनी पीड़ा उकेरने के साथ ही हिमालय के संरक्षण का संदेश दिया। इसमें पर्यावरण संरक्षण की बात हुई तो हिमालयी राज्यों के सामने उत्पन्न कठिनाइयों से पार पाने को कदम उठाने की भी। अच्छी बात ये रही कि कॉन्क्लेव के जरिये हिमालयी राज्यों ने केंद्र से आग्रह किया कि कोई भी नीति बनाते वक्त हिमालय और उसकी परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाए। यह बात हिमालय के विज्ञान को समझने की ओर रेखांकित करती है और यही इस बार हिमालय दिवस की थीम भी है।
हिमालय की लगातार बिगड़ती सेहत को देखते हुए वर्ष 2010 में उत्तराखंड में जनसंगठनों की पहल पर नौ सितंबर को हिमालय दिवस मनाने की शुरुआत हुई। आज यह दिवस न सिर्फ हिमालयी राज्यों, बल्कि अन्य राज्यों में भी मनाया जाने लगा है। इसके पीछे मकसद यही है कि इस दिन सभी लोग बैठें और हिमालय की सेहत सुधारने के बिंदु पर गहनता से मंथन करें। साथ ही इसके समाधान की दिशा में आगे बढ़ें। राज्य सरकार ने भी हिमालय दिवस को स्वीकारा और 2015 से सरकारी स्तर पर इसे लगातार मनाया जा रहा है।
इस बीच हिमालय दिवस के आलोक में सरकार के प्रयास तब सही दिशा में आगे बढ़ते दिखे, जब जुलाई में हिमालयी राज्यों का हिमालयन कॉन्क्लेव का आयोजन उत्तराखंड सरकार ने किया। इसमें हिमालय के संरक्षण, जलशक्ति, आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय सेवाएं जैसे बिंदुओं के साथ ही हिमालयी राज्यों के पिछड़ेपन, विकास कार्यों की अधिक लागत, आजीविका व रोजगार, विशेष राज्य का दर्जा समेत हिमालय से जुड़े तमाम बिंदुओं पर मंथन किया गया। इस आयोजन के जरिये हिमालयी सरोकारों के संरक्षण के साथ-साथ समन्वित विकास की सोच को लेकर ठोस पहल का इरादा जाहिर किया गया।
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बात समझने की है कि हिमालय की जरूरत सबको है। इसकी सेहत तभी ठीक रहेगी, जब यहां के निवासियों के हित सुरक्षित रहेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि नजरिये में बदलाव लाते हुए हिमालयी क्षेत्रों के लिए अलग से व्यापक नीति बनाई जाए। लंबे अर्से से यह मांग उठ भी रही है, मगर इस दिशा में ठोस पहल नहीं हो पाई थी। हालांकि, अब उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्य इस दिशा में सक्रिय हुए हैं। हिमालयन कॉन्क्लेव ने इस सक्रियता को धार देने का काम किया। सभी राज्य इस बारे में अपना पक्ष केंद्र के समक्ष रख चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार जल्द ही हिमालयी राज्यों के लिए नीति बनाने की दिशा में कदम उठाएगी।
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