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देहरादून: कारगिल के हीरो मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा स्थापित, पुष्पांजलि की गई अर्पित

वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के हीरो दून के शहीद मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा सैन्य सम्मान के साथ स्थापित की गई। शहीद मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा को 90 नियमित व 80 एनडीए के सहपाठियों ने युद्धनायक के रूप में गार्ड आफ आनर के साथ पुष्पांजलि अर्पित की।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 07 Nov 2021 12:26 PM (IST)Updated: Sun, 07 Nov 2021 12:26 PM (IST)
देहरादून: कारगिल के हीरो मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा स्थापित, पुष्पांजलि की गई अर्पित
देहरादून: कारगिल के हीरो मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा स्थापित, पुष्पांजलि की गई अर्पित।

जागरण संवाददाता, देहरादून। वसंत विहार के पार्क-11 में शनिवार को वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के हीरो दून के शहीद मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा सैन्य सम्मान के साथ स्थापित की गई। इस दौरान शहीद मेजर विवेक गुप्ता की प्रतिमा को 90 नियमित व 80 एनडीए के सहपाठियों ने युद्धनायक के रूप में गार्ड आफ आनर के साथ पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में बतौर मुख्यअतिथि आफिसर कमाडिंग उत्तराखंड सब एरिया मेजर जनरल संजीव खत्री ने मेजर विवेक गुप्ता को श्रद्धांजलि दी।

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कारगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 को तोलोलिंग हिल्स में दुश्मन के ठिकानों पर शुरुआती हमले में मेजर विवेक गुप्ता को अपनी कंपनी का नेतृत्व करने का मौका मिला था। इस दौरान उन्होंने अदम्य साहस व पराक्रम का परिचय दिया। युद्ध के दौरान उन्हें दो गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने फिर भी दुश्मनों पर हमला जारी रखा। आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने दुश्मन के तीन सैनिक मारे, लेकिन वह इस बीच वीर गति को प्राप्त हो गए।

शहीद विवेक गुप्ता की वीरता के चलते ही भारत ने तोलोलिंग हिल्स पर विजय प्राप्त की। शहीद मेजर विवेक गुप्ता को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। सेना की पृष्ठभूमि वाले शहीद मेजर विवेक गुप्ता की स्कूली शिक्षा आर्मी पब्लिक स्कूल धौलाकुआं नई दिल्ली में 1987 में हुई। ऊर्जावान व्यक्तित्व, जोश और उत्साह से लवरेज विवेक गुप्ता जून 1988 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए।

13 जून 1992 को सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सैन्य अकादमी से पास आउट के बाद उन्हें दो राजपूताना राइफल्स में पोस्टिंग मिली। मेजर विवेक गुप्ता ने कमीशन लेने के ठीक पांच साल बाद यानी 13 जून 1999 को अपने जीवन को देश की रक्षा करते हुए बलिदान कर दिया। प्रतिमा स्थापित करने के मौके पर सेना के अधिकारी व स्वजन मौजूद रहे।

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