उत्तराखंड में कुलपति की आयु सीमा 70 वर्ष तक बढ़ाई
प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अध्यादेश पर मंत्रिमंडल की मुहर लग गई। अध्यादेश में कुलपतियों की आयु सीमा 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष की गई है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अध्यादेश पर बुधवार को मंत्रिमंडल की मुहर लग गई। अध्यादेश में कुलपतियों की आयु सीमा 65 वर्ष से बढ़ाकर 70 वर्ष की गई है। इसमें एक विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए अलग-अलग विश्वविद्यालयों से से संबद्धता की राह कठिन बना दी गई है। संबंधित कॉलेज को भवन, भूमि व अन्य आधारभूत सुविधाओं के लिए पृथक व्यवस्था करनी होगी।
राज्य विश्वविद्यालयों के लिए प्रस्तावित अंब्रेला एक्ट को लेकर बीती 12 फरवरी को मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की गई थी। काबीना मंत्री डॉ हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित उपसमिति की ओर से प्रस्तावित एक्ट के मसौदे में संशोधन की सिफारिश की गई। मंत्रिमंडल ने इन संशोधनों को मंजूरी देते हुए राज्य विश्वविद्यालय अध्यादेश पर मुहर लगाई। इसमें कुलपति के चयन को सर्च कमेटी के सदस्यों की संख्या तीन से पांच तक बढ़ाई गई है।
कुलसचिव की नियुक्ति 50 फीसद पदोन्नति व 50 फीसद सीधी भर्ती से राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से होगी। कुलपति का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकेगा। कुलपति का पद रिक्त होने पर संबंधित विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर को कुलपति का कार्यभार सौंपा जाएगा। अध्यादेश में अनानुदानित अशासकीय महाविद्यालय का प्रबंध तंत्र अस्तित्व में नहीं होने की स्थिति में राज्य सरकार बगैर नोटिस दिए प्राधिकृत नियंत्रक नियुक्त कर सकेगी।
मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड निश्शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली, 2011 में संशोधन किया है। प्राथमिक विद्यालय बच्चे के निवास स्थान से एक किमी की पैदल दूरी व न्यूनतम 200 जनसंख्या वाली बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 बच्चे व शहरी क्षेत्रों में 40 बच्चों पर स्थापित किए जाने का प्रविधान है। इसीतरह, उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना को बच्चे के निवास स्थान से तीन किमी की दूरी, न्यूनतम 400 की आबादी व 40 की छात्रसंख्या का प्रविधान है। नियमावली में संशोधन के बाद उक्त मानकों को पूरा नहीं करने वाले विद्यालयों की पुनस्र्थापना सरकार कर सकेगी।
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शैक्षिक सत्र 2020-21 के लिए कक्षा एक से 12वीं तक छात्र-छात्राओं को मुफ्त पाठ्यपुस्तकों के एवज में पुस्तकों की कीमत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से छात्र-छात्राओं के खाते में भेजने के प्रस्ताव पर कैबिनेट ने निर्णय स्थगित रखा है।