सरकार की चूक से अधर में लटका सीआ
केदार दत्त, देहरादून पर्यावरणीय लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड में राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव अ
केदार दत्त, देहरादून
पर्यावरणीय लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड में राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (सीआ) का गठन राज्य सरकार की चूक के कारण अधर में लटका हुआ है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को अनुमोदन के लिए भेजे गए गठन संबंधी प्रस्ताव में सीआ के सदस्य सचिव के लिए ऐसे अधिकारी का नाम भेज दिया गया, जिनकी ढाई साल बाद सेवानिवृत्ति है। सीआ का कार्यकाल तीन साल होने के मद्देनजर केंद्र ने इस पर आपत्ति लगाते हुए ऐसे अधिकारी का नाम भेजने को कहा है, जिसका कार्यकाल तीन साल से अधिक का हो। अब सदस्य सचिव के लिए अधिकारी की तलाश की जा रही है।
प्रदेश में सीआ का कार्यकाल 29 जुलाई 2015 को खत्म हो गया था। हालांकि, तत्कालीन सरकार ने बाद में सीआ के लिए अध्यक्ष और दो सदस्यों के नाम केंद्र को भेजे, लेकिन विस चुनाव के मद्देनजर नई सरकार की राय लेने के मद्देनजर इसे टाल दिया गया। सत्ता परिवर्तन के बाद पिछले वर्ष नवंबर में मौजूदा सरकार ने सीआ के गठन का निर्णय लिया। इसके लिए पूर्व डीजी फॉरेस्ट डॉ.एसएस नेगी अध्यक्ष और एनएचपीसी में पर्यावरण वैज्ञानिक शैलेंद्र बिष्ट सदस्य व वन संरक्षक भुवन चंद्र को सदस्य सचिव नामित करते हुए इसका प्रस्ताव अनुमोदन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को भेजा गया। इसके साथ ही सीआ की पर्यावरण मूल्यांकन समिति का भी गठन करते हुए यह प्रस्ताव भी अनुमोदन के लिए भेजा गया।
केंद्र के अनुमोदन के बाद ही सीआ कार्य कर सकता है। इस बीच पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सीआ के गठन संबंधी प्रस्ताव पर गौर किया तो इसमें सदस्य सचिव की ढाई साल बाद सेवानिवृत्ति होने के मद्देनजर आपत्ति लगाते हुए ऐसे अधिकारी का नाम भेजने को कहा, जिसका कार्यकाल तीन साल से अधिक हो। परिणामस्वरूप राज्य में सीआ अधर में लटका हुआ है। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने भी माना कि यह चूक हुई है। उन्होंने कहा कि सदस्य सचिव के लिए नए नाम पर विचार कर जल्द ही इस बारे में केंद्र को अवगत कराया जाएगा। कोशिश है कि जल्द से जल्द सीआ अस्तित्व में आ जाए।
क्यों आवश्यक है सीआ
केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप प्रदेश में 40 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में उद्योग, सड़क अथवा किसी प्रकार के निर्माण कार्य और नदियों में 50 हेक्टेयर या इससे ज्यादा क्षेत्र में उपखनिज चुगान संबंधी कायरें में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआइए) कराना आवश्यक है। ईआइए का मूल्यांकन कराने के बाद राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (सीआ) प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू करने की अनुमति जारी करता है। इसका गठन न होने से बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट अधर में लटके हैं। हालांकि, ऐसे प्रस्ताव केंद्र को भेजे जा रहे हैं, मगर इसमें विलंब हो रहा है।