आध्यात्मिक राजधानी की ओर का प्रस्थान बिंदु: मनोज झा, राज्य संपादक, उत्तराखंड
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी बनाने का मंत्र दिया। मुख्यमंत्री धामी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए संबंधित विभागों को निर्देश जारी किए। चारधाम यात्रा मार्ग और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग जैसी परियोजनाएं राज्य के विकास में सहायक हैं। ऋषिकेश में योग और चौरासी कुटी का पुनरुद्धार जैसे प्रयास जारी हैं। उम्मीद है कि 2047 तक उत्तराखंड आध्यात्मिक राजधानी के रूप में स्थापित होगा।

मनोज झा, राज्य संपादक, उत्तराखंड । राज्य स्थापना के रजत जयंती समारोह में देहरादून आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड को एक नया मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि प्रचुर संभावनाओं वाले उत्तराखंड में विश्व की आध्यात्मिक राजधानी बनने का सामर्थ्य है। बस, आवश्यकता इतनी है कि इस सामर्थ्य को पहचाना जाए और लक्ष्य की ओर मन से चला जाए। इस क्रम में उन्होंने गंगोत्री-यमुनोत्री से लेकर बदरी-केदार और आदि कैलास जैसे धर्म और ध्यान स्थलों का उल्लेख भी किया। आश्वस्तिजनक यह है कि मोदी के इस मंत्र को बिना समय गंवाए न सिर्फ दोहराया गया, बल्कि उस रास्ते कदम भी बढ़ा दिया गया। अगले ही दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संबंधित विभागों और संस्थाओं को 'मिशन आध्यात्मिक राजधानी' के लिए निर्देश जारी कर दिए। अब देखना है कि प्रधानमंत्री का यह मंत्र कब और कैसे सिद्ध होता है?
इसमें कोई संदेह नहीं कि पर्वतीय प्रदेश होने के चलते उत्तराखंड की अपनी कुछ सीमाएं हैं। राजधानी देहरादून और तीर्थनगरी हरिद्वार के अलावा ऊधम सिंह नगर जैसे गिनती के मैदानी जिलों को छोड़ दें तो राज्य का बाकी हिस्सा पर्वतों की गोद में ही बसा हुआ है। प्राकृतिक आपदाओं की मार के अलावा राज्य में आवागमन की भी कोई द्रुतगामी सुविधा नहीं है। चारधाम यात्रा मार्ग को बारहमासी बनाने के प्रयासों ने निश्चित रूप से पहाड़ों में थोड़ा रंग और रौनक बढ़ाई है। इसी दिशा में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग परियोजना का उल्लेख करना भी आवश्यक होगा। यह तय है कि इस महत्वाकांक्षी रेलमार्ग का संचालन शुरू होने पर दुर्गम पहाड़ों के जनजीवन में गति और शक्ति दोनों आएगी। शीघ्र शुरू होने जा रहा दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे राजधानी तक बाहरी लोगों की पहुंच को आसान बनाने जा रहा है। बावजूद इसके, अध्यात्म की महापीठ बनने के लिए जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा, हमें मजबूती से कमर कसनी होगी, संकल्पबद्ध होना पड़ेगा और इस दिशा में सद्प्रयास करना होगा।
पूरे उत्तराखंड पर निगाह डालें तो यह सच है कि इस देवभूमि के कण-कण देवताओं का वास है। तमाम प्रसिद्ध तीर्थों और धर्मस्थलों के अलावा कई ऐसे स्थान हैं, जहां लोग दूर-दूर से शांति और सुकून की तलाश में ध्यान और योग करने के लिए आते हैं। ऋषिकेश में तो दुनिया भर के लोग योग साधना के लिए आते हैं। याद करें कि इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध बीटल्स बैंड के चार सदस्य किस तरह नशे की गिरफ्त में फंसने के बाद ऋषिकेश की चौरासी कुटी आए और नवजीवन प्राप्त कर दुनिया भर में अपने बैंड की धूम मचा दी। इस चौरासी कुटी के पुनरुद्धार के लिए आदेश हो चुका है। इसी प्रकार केदारनाथ और हेमकुंड जैसे पावन तीर्थस्थलों समेत पूरे उत्तराखंड में पचास स्थानों पर रोपवे योजना को मंजूरी मिल गई है।
इन सारे रोपवे के संचालित होने पर आवागमन की दृष्टि से पूरा पहाड़ आपको एक नई अंगड़ाई लेता दिखेगा। कुमाऊं मंडल में आदि कैलास और ओम पर्वत तक आवागमन को सुगम बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। आने वाले दिनों ये दोनों स्थान भी दुनियाभर के तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करने जा रहे हैं। जागेश्वर धाम और बाबा नीब करौरी भी श्रद्धा के नवकेंद्रों के रूप में विकसित हो रहे हैं। यहां पहुंच और अन्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने पहाड़ के छोटे-छोटे स्थानों पर ध्यान और योग केंद्र विकसित करने की बात कही है। आशा है कि आगामी दिनों में ऐसे नये-नये केंद्र पहाड़ की तस्वीर बदलेंगे और आर्थिकी की दृष्टि से उसकी कमर भी मजबूत करेंगे।
इन सबके बीच अच्छी बात यह है कि ये सारी परियोजनाएं और तैयारियां प्रदेश की धामी सरकार के एजेंडे में हैं। मुख्यमंत्री धामी ने प्रधानमंत्री के इशारे पर जैसी तत्परता दिखाई है, उससे यह उम्मीद बलवती हुई है कि 2047 तक जब भारत विश्वगुरु की पदवी ग्रहण करने की तैयारियां कर रहा होगा, तब उत्तराखंड विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के तौर पर सुशोभित हो चुका होगा।
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