शिलगुर मंदिर में सेरवा रोट चढ़ने से नुणाई मेले का आगाज
चकराता जौनसार के बोंदूर खत से जुड़े मानथात में प्रतिवर्ष अगस्त के शुरुआती चरण में मेले का आयोजन किया जाता है। इसकी शुरुआत गु़रुवार से हुई।
संवाद सूत्र, चकराता: जौनसार के बोंदूर खत से जुड़े मानथात में प्रतिवर्ष अगस्त के शुरुआती चरण में डांडे से सकुशल घर लौटे भेड़-बकरी पालकों की खुशी में परपंरागत तरीके से नुणाई मेला मनाया जाता है। गुरुवार को कांडोई स्थित शिलगुर महाराज मंदिर में सेरवा रोट चढ़ने से इसका आगाज हो गया। हालांकि कोविड के चलते मंदिर के कारसेवक व ग्रामीणों ने सीमित संख्या में देवता की पूजा-अर्चना कर परपंरा का निर्वहन किया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने देवता के दर्शन कर मनौती मांगी।
पहाड़ में मवेशी पालन को बढ़ावा देने और जनजाति समाज की लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार को जौनसार के सुदूरवर्ती मानथात में नुणाई मेले का आयोजन परपंरागत तरीके से होता है। नुणाई का जश्न मनाने बोंदूर खत से जुड़े करीब चौबीस गांवों के लोग गाजे-बाजे के साथ मेला स्थल मानथात में एकत्र होते हैं। मेले का शुभांरभ कांडोई स्थित शिलगुर महाराज मंदिर में सेरवा रोट चढ़ने से होता है। भेड़-बकरी पालकों की खुशहाली और डांडे से उनके सकुशल घर लौटने की खुशी में स्थानीय लोग नुणाई मेले का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। पिछले बार कोरोना संक्रमण के चलते मेले का आयोजन नहीं हो सका। इस बार भी स्थानीय लोग कोविड के चलते देव परपंरा का निर्वहन कर रहे हैं। लोक परपंरा के अनुसार नुणाई मेले के पहले दिन गुरुवार को शिलगुर महाराज मंदिर में 21 अनाज से बने सेरवा रोट को देवता के मंदिर में चढ़ाया गया। इस दौरान कारसेवकों व ग्रामीणों ने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना कर देवता से संकट झेल रहे मानव समाज को कोरोना महामारी से बचाने की कामना की। देवता के मंदिर में सेरवा रोट चढ़ने से श्रद्धालुओं को प्रसाद बांटा गया। इस दौरान ग्रामीणों ने मंदिर में मत्था टेका और मनौती मांगी। क्षेत्र पंचायत सदस्य सौरभ राणा ने कहा खुशहाली के प्रतीक नुणाई मेले के पहले दिन कांडोई मंदिर में मवेशी पालकों की सलामती के लिए 21 अनाज से बने सेरवा रोट को चढ़ाने की परपंरा सदियों से चली आ रही है। कोविड के चलते नुणाई का जश्न कुछ फीका पड़ गया।