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उत्तराखंड: न सुरक्षा न प्रोटोकॉल, जब जैसी जरूरत वैसे ही ढल जाते हैं स्पीकर साहब; फिर देखने को मिली सादगी की मिसाल

उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने एकबार फिर सादगी की मिसाल पेश की है। इसबार वो बिना किसी सुरक्षा के बाइक पर चलते नजर आए।

By Edited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 10:03 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 04:53 PM (IST)
उत्तराखंड: न सुरक्षा न प्रोटोकॉल, जब जैसी जरूरत वैसे ही ढल जाते हैं स्पीकर साहब; फिर देखने को मिली सादगी की मिसाल
उत्तराखंड: न सुरक्षा न प्रोटोकॉल, जब जैसी जरूरत वैसे ही ढल जाते हैं स्पीकर साहब; फिर देखने को मिली सादगी की मिसाल

देहरादून, राज्य ब्यूरो। न सुरक्षा का कोई तामझाम और न प्रोटोकाल। जब जैसी जरूरत हो, वैसे ही ढल जाते हैं विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल। रविवार को देहरादून में उनकी सादगी की यह मिसाल देखने को मिली। विहिप के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण लाल दत्ता के निधन की खबर मिलते ही विस अध्यक्ष अग्रवाल रविवार को शासकीय आवास से अपने सूचना अधिकारी भारत चौहान के साथ उनकी बाइक पर सवार होकर हिंदू नेशनल कॉलेज के पास स्थित स्व. दत्ता के आवास पर पहुंचे। 

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शोक संवेदना व्यक्त करने के बाद विस अध्यक्ष जब स्वर्गीय दत्ता के घर से बाहर निकल रहे थे, तभी सूचना मिली कि महंत रोड निवासी आढ़ती रामकिशन का निधन हो गया है। उनके घर भी वह बाइक पर ही सवार होकर निकल गए। इसके बाद विस अध्यक्ष ने दो-तीन अन्य स्थानों पर भी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और बाइक से ही यमुना कॉलोनी स्थित शासकीय आवास पर गए।

दत्ता का निधन क्षेत्र की अपूरणीय क्षति 

विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने विहिप के पूर्व अध्यक्ष दत्ता को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि उत्तराखंड में विहिप को विस्तार देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन में भी स्व.दत्ता ने बढ़कर भागीदारी की। उनके निधन से क्षेत्र की अपूरणीय क्षति हुई है। विहिप के केंद्रीय मंत्री रविदेव आनंद, पूर्व विस अध्यक्ष और विधायक हरबंस कपूर समेत विभिन्न दलों व संगठनों से जुड़े व्यक्तियों ने भी दत्ता को श्रद्धांजलि दी।

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वरिष्ठ आंदोलनकारी बीएल सकलानी का निधन 

वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी बीएल सकलानी अब नहीं रहे। शनिवार रात दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। वहीं, राज्य आंदोलनकारियों ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि 15 साल से वह राज्य आंदोलन के बलिदानियों की निशानी को सुरक्षित करने के लिए स्थायी संग्रहालय बनाने की मांग कर रहे थे, सरकार अगर उनकी इस मांग को पूरा कर देगी तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।

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