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खेल मुखिया की घोषणाएं नजरअंदाज, खिलाड़ियों की हेल्पलाइन सेवा भी अधर में

खेल मंत्री अरविंद पांडेय ने खेल संघ और खिलाड़ियोंं की समस्या के समाधान के लिए हेल्पलाइन सेवा शुरू करने की घोषणा की थी। खेल विभाग के अधिकारियों ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 09:17 AM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 09:17 AM (IST)
खेल मुखिया की घोषणाएं नजरअंदाज, खिलाड़ियों की हेल्पलाइन सेवा भी अधर में
खेल मुखिया की घोषणाएं नजरअंदाज, खिलाड़ियों की हेल्पलाइन सेवा भी अधर में

देहरादून, निशांत चौधरी। खेल महकमे के अधिकारी अगर विभाग के मुखिया की घोषणा को ही तवज्जो नहीं देंगे तो प्रदेश में खेल और खिलाड़ियों  के विकास की बात करना बेमानी है। ऐसा ही कुछ खेल विभाग के अधिकारी कर रहे हैं। बीते वर्ष 16 जुलाई को सचिवालय में खेल मंत्री अरविंद पांडेय ने खेल संघ और खिलाड़ियों की समस्या के समाधान के लिए हेल्पलाइन सेवा शुरू करने की घोषणा की थी। खेल विभाग के अधिकारियों ने इसको धरातल पर उतारने के बजाय ठंडे बस्ते में डाल दिया। 

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यह तो सिर्फ एक उदाहरण भर है। ऐसी कई घोषणाएं केवल खबरों की सुर्खिया बनने तक ही सीमित रही हैं। याद दिला दें कि खेल महाकुंभ 2019 के समापन के दौरान खेल मंत्री ने खिलाडिय़ों के लिए विशेष ऐकेडमी खोलने की घोषणा की थी। इस ओर भी विभाग एक कदम तक नहीं बढ़ा सका। जिससे अधिकारियों की सक्रियता पर भी सवाल उठ रहे हैं। 

सवालों के घेरे में कार्यप्रणाली 

38वें राष्ट्रीय खेलों के लिए जब उत्तराखंड को मेजबानी के लिए चुना गया तो सरकार ने इसके लिए पूरी तैयारी से जुटने का दावा किया था। कथनी और करनी के बीच कितना अंतर होता है, यह सरकार की कार्यप्रणाली से साबित हो गया। ऐसा ही कुछ प्रस्तावित राष्ट्रीय खेलों के आयोजन को लेकर दिख रहा है। 

वर्ष 2021 में प्रस्तावित 38वें राष्ट्रीय खेलों में भारतीय ओलंपिक संघ ने 34 खेलों की मेजबानी का जिम्मा उत्तराखंड को सौंपते हुए रूप रेखा तैयार करने को कहा है। लेकिन, सरकार ने साइकिलिंग, घुड़सवारी, गोल्फ, मॉडर्न पैंटाथलॉन और सेलिंग से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। अब 29 खेलों का ही आयोजन किया जाएगा। बिना प्रयास किए ही इन खेलों के आयोजन से हाथ खींचना कहां तक सही है।

विकल्प के लिए नहीं किए प्रयास 

पर्वतीय क्षेत्रों में चुनौतियां भी पहाड़ जैसी ही हैं। फिर चाहे वो खेल का मैदान हो या रोजमर्रा की जरूरतें। यहां मैदानी राज्यों की तरह बड़े खेल आयोजनों के लिए संसाधन भी जुटाना कतई आसान नहीं है। प्रदेश में राष्ट्रीय खेलों के आयोजन की चर्चा पिछले पांच साल से चल रही है। इन पांच वर्षों में इतने बड़े आयोजन के लिए अगर सरकार संसाधन नहीं जुटा पाई तो यह भी व्यवस्था पर सवाल है। 

राष्ट्रीय खेलों के 34 खेलों में से पांच खेलों से सरकार के हाथ खींचने से प्रदेश सरकार की छवि धूमिल हो रही है। अगर सरकार चाहती तो इन पांच खेलों के विकल्प तलाश सकती थी। इसके लिए ओलंपिक संघ से इन खेलों के आयोजन दिल्ली में कराने के लिए बात कर सकती थी। इस विकल्प पर आलंपिक संघ राजी भी हो सकता था, क्योंकि गोवा ने भी कुछ खेलों का आयोजन दिल्ली में कराने की स्वीकृति ली है। ऐसा प्रदेश सरकार भी कर सकती थी, लेकिन ऐसा प्रयास तक नहीं किया गया। 

पर्वतीय क्षेत्रों पर नहीं है फोकस 

पर्वतीय क्षेत्रों से खेल प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए सरकार और खेल संघ भले तमाम खेल योजनाएं संचालित करने का लाख दावे करें। लेकिन, हकीकत में खेलों के विकास के नाम पर प्रदेश सरकार सिर्फ खानापूर्ति कर रही है। सरकार का पूरा फोकस मैदानी क्षेत्रों की तरफ है। खेल महाकुंभ जैसी बड़ी प्रतियोगिता सरकार भले ही करा रही हो, लेकिन यह तब तक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता जब तक पर्वतीय क्षेत्रों में खेलों के संसाधन विकसित न किए जाएं। 

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साथ ही ब्लॉक स्तर और जिला स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित करा कर पर्वतीय क्षेत्रों के खिलाडिय़ों को अपनी क्षमता परखने का मौका दिया जाए। तभी वह खेल महाकुंभ में प्रतिभाग करने की हिम्मत जुटा पाएंगे। अगर प्रदेश सरकार की यही कार्यप्रणाली रही तो ग्रामीणों क्षेत्रों के खिलाड़ियों के सपने वहीं दम तोड़ देंगे और सरकार खेल योजनाओं को लेकर ही ढोल पीटती रहेगी। 

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