मिट्टी कटाव की दर 40 टन, बन रही महज 12.5 टन; पढ़िए पूरी खबर
देश में हर साल खेतों और आग लगे जंगलों में जितनी मिट्टी का निर्माण होता है उससे करीब साढ़े तीन गुना ज्यादा मिट्टी खेतों से बाहर चली जा रही है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। देश के खेतों के लिए अच्छी खबर नहीं है। अन्न उगलते खेतों से उपजाऊ मिट्टी का तेजी से क्षरण (कटाव) हो रहा है। गंभीर यह है कि हर साल खेतों और आग लगे जंगलों में जितनी मिट्टी का निर्माण होता है, उससे करीब साढ़े तीन गुना ज्यादा मिट्टी खेतों से बाहर चली जा रही है। यह चौंकाने वाला खुलासा किया है भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने। संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. डी मंडल ने 'साइंस ऑफ हिमालयाज' कार्यक्रम में इस अध्ययन को साझा किया।
डॉ. डी मंडल ने बताया कि देश के खातों में प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष औसतन 40 टन मिट्टी का कटाव हो रहा है। वहीं, मिट्टी के बनने की यह दर सालाना प्रति हेक्टेयर 12.5 टन ही है। यह स्थिति इतनी भयावह है कि भविष्य में खेतों की उर्वरा क्षमता को घातक रूप से प्रभावित कर सकती है। इससे इतर वन क्षेत्रों, जहां वनस्पति अच्छी मात्रा में हैं, वहां मिट्टी के बनने की दर क्षरण से अधिक पाई गई। उन्होंने बताया कि ऐसे वन क्षेत्रों में एक टन से भी कम मिट्टी का क्षरण हो रहा है, जबकि इसके बनने की दर 2.5 टन तक है।
30 हजार करोड़ के खाद्यान्न का नुकसान
भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी मंडल ने बताया कि खेतों की मिट्टी के क्षरण का सीधा असर खाद्यान्न की पैदावार पर पड़ रहा है। कुछ समय पहले के आंकड़ों के अनुसार इससे 30 हजार करोड़ रुपये के अनाज, तिलहन और दलहन कम पैदा हो रही है।
मिट्टी में लॉक कार्बन भी वातावरण में मिल रहा
संस्थान के वैज्ञानिक ने बताया कि विश्वभर की मिट्टी में एक मीटर की गहराई तक 200 गीगाटन कार्बन है। इसी के अनुरूप जैसे-जैसे यह मिट्टी कटती रहती है, उससे कार्बन भी मुक्त होकर वातावरण में मिल जाता है।
चीन से सीख लेने पर दिया बल
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मंडल ने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी मिट्टी कटान की यह स्थिति थी, मगर वर्ष 1999 में यलो रिवर वैली में शुरू किए गए संरक्षण के प्रयास से उन्होंने 2012 तक 100 फीसद लक्ष्य को हासिल कर लिया। उन्होंने सीधी रणनीति बनाई कि जहां मिट्टी का कटान अधिक है, वहां किसी भी तरह की वनस्पति को हानि न पहुंचाई जाए। न ही ऐसे क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमति दी गई। इससे जो किसान प्रभावित हुए, उन्हें अन्यत्र से अनाज आदि देकर उसकी भरपाई कर दी गई।
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इस तरह रोका जा सकता है मिट्टी का कटाव
-धरातल पर अधिक से अधिक वनस्पतियां होनी चाहिए। खासकर खेतों के ऊपरी क्षेत्रों में इसका ख्याल रखा जाए।
-किसी भी क्षेत्र में पानी का वेग अधिक होगा तो वह मिट्टी का अधिक कटान करेगा।
-खेतों के बाहरी किनारों पर मिट्टी को पकड़े रखने वाली फसल लगाई जानी चाहिए।
-फसलों के चक्रानुक्रम का ध्यान अवश्य रखा जाए।
-जिन क्षेत्रों में जल संरक्षण के कार्य होने चाहिए, सिर्फ वहीं स्रोतों को विकसित किया जाए।
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