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सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने से खुली सामाजिक न्याय की राह

एसजीआरआर पीजी कॉलेज की समाजशास्त्र विषय की विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराधा वर्मा ने कहा कि सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने के निर्णय के साथ ही सामाजिक न्याय की राह भी खुल गई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 12:33 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 12:33 PM (IST)
सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने से खुली सामाजिक न्याय की राह
सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने से खुली सामाजिक न्याय की राह

देहरादून, जेएनएन। सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने के निर्णय के साथ ही सामाजिक न्याय की राह भी खुल गई है। संविधान में 124वें संशोधन विधेयक पारित होने के साथ ही देश में इसे नए युग की शुरुआत माना जा सकता है। यह बात एसजीआरआर पीजी कॉलेज की समाजशास्त्र विषय की विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराधा वर्मा ने 'आर्थिक आरक्षण के औचित्य पर उठे सवाल कितने जायज' विषय पर आयोजित जागरण विमर्श में कही।

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सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित विमर्श में डॉ. अनुराधा ने कहा कि सवर्ण आरक्षण के औचित्य पर सवाल इसलिए भी नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि जब इसे पहले लोकसभा में रखा गया तो इसके पक्ष में 323 मत पड़े। सिर्फ तीन मत ही विरोध में डाले गए। दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि एससी-एसटी व ओबीसी आरक्षण की दशकों से चली आ रही व्यवस्था से सामान्य वर्ग ïखफा चला आ रहा था।

वहीं, किसी भी सरकार में कभी इतना साहस नहीं रहा कि जातिगत आरक्षण को समाप्त कर दिया जाए। ऐसे में सामान्य वर्ग के अधिकतर लोग यह मानने लगे थे कि सरकारी नौकरियां उनसे कोसों दूर ही रहेंगी। साल-दर-साल उनमें निराशा का भाव भी घर कर रहा था। सामाजिक न्याय की दिशा भी इससे बाधित होने लगी थी। ऐसे में मोदी सरकार ने आर्थिक आरक्षण को पूरी तेजी के साथ पारित करवा दिया। बेशक यह राजनीतिक दूरदर्शिताभरा कदम हो सकता है, मगर इससे सामाजिक न्याय की नई राह भी खुली है। क्योंकि यह 50 फीसद जातिगत आरक्षण से इतर भी है। वोट बैंक को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाले इस निर्णय के खिलाफ बोलना तो दूर सभी दल सभी कटुताओं को छिपाकर एक सुर में केंद्र सरकार के पक्ष में भी खड़े नजर आए।

जागरण विमर्श में विभिन्न सवालों के जवाब देते हुए डॉ. अनुराधा ने यह भी कहा कि भविष्य में इस बात की भी संभावना है कि जातिगत आरक्षण की जगह आर्थिक आरक्षण ही बड़ा रूप ले ले। यदि ऐसा होता है तो वह किसी भी सरकार की बड़ी जीत कहलाएगी। क्योंकि आज के दौर में समाज में जातिगत विषमता तेजी से खत्म हो रही है। भविष्य में ऐसा निर्णय सामाजिक रूप से भी अटपटा नहीं लगेगा। हालांकि यह निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि 10 फीसद वाले आर्थिक आरक्षण को किस तरह त्रुटिरहित तरीके से लागू करवाया जाता है। क्योंकि अभी बिल पारित हुआ है और तमाम नियमों पर राज्यों को भी अपने स्तर पर काम करना है।

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