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एसडीएम ने जिस कालेज को दी थी क्लीन चिट, एसआइटी ने उसी में घोटाला पकड़ा

रुड़की के जिस निजी कॉलेज का सत्यापन कर तत्कालीन एसडीएम ने क्लीनचिट दी थी, उसी में एसआइटी ने यह साढ़े छह करोड़ का घोटाला पकड़ा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 05:20 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 05:20 PM (IST)
एसडीएम ने जिस कालेज को दी थी क्लीन चिट, एसआइटी ने उसी में घोटाला पकड़ा
एसडीएम ने जिस कालेज को दी थी क्लीन चिट, एसआइटी ने उसी में घोटाला पकड़ा

देहरादून, संतोष भट्ट। रुड़की के जिस निजी कॉलेज का सत्यापन कर तत्कालीन एसडीएम ने क्लीनचिट दी थी, उसी में एसआइटी ने यह साढ़े छह करोड़ का घोटाला पकड़ा है। अभी कॉलेज में तीन साल तक बंटी छात्रवृत्ति की विवेचना जारी है। ऐसे में यह रकम बढ़ भी सकती है। एसआइटी का भी दावा है कि घोटाले की रकम 10 करोड़ तक हो सकती है। यह घोटाला सामने आने के बाद अफसरों के स्तर पर होने वाली सत्यापन प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

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दशमोत्तर छात्रवृत्ति में अफसरों ने प्राइवेट कॉलेजों का कितनी संजीदगी से सत्यापन किया, इसका अंदाजा रुड़की के इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में पकड़ी गई गड़बड़ी से लगाया जा सकता है। यहां एसआइटी ने दो साल की छात्रवृत्ति में तकरीबन साढ़े छह करोड़ की अनियमितता पकड़ी है। जबकि अभी 2013, 2014 और 2017 की छात्रवृत्ति की जांच जारी है। एसआइटी सूत्रों का कहना है कि इस कॉलेज को हरिद्वार के तत्कालीन उप जिलाधिकारी ने सत्यापन किया था। सत्यापन में कैसे एसडीएम को गड़बड़ी नहीं पकड़ में आई, इस पर सवाल उठने लगे हैं। नियमानुसार सत्यापन करने वाले अफसर दस्तावेजों के अलावा भौतिक और वित्तीय सत्यापन भी करते हैं। जिससे गड़बड़ी की कोई आशंका न बचे। लेकिन प्रतीत हो रहा है कि यहां एसडीएम ने आंख मूंद कर सत्यापन कर दिया। दूसरे कॉलेजों में भी इसी तरह सत्यापन हुआ होगा, इस आशंका का खारिज नहीं किया जा सकता। इस घोटाले में न केवल समाज कल्याण बल्कि दूसरों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।जल्द हो सकती कुछ और गिरफ्तारी

छात्रवृत्ति घोटाले में एसआइटी जल्द कुछ और गिरफ्तारी कर सकती है। एसआइटी ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में बड़े गिरोह की भूमिका सामने आई है। इसमें समाज कल्याण विभाग से लेकर संस्थानों के लोग शामिल हैं। बैंक खाते खोलने से लेकर विभाग से रकम ट्रांसफर कराने वालों की भूमिका की जांच की जा रही है। ताकि गिरफ्तारी के बाद आरोपी बचने की स्थिति में न रहे। एसआइटी सूत्रों का कहना है कि हरिद्वार के ही कई अन्य संस्थान में भी ऐसे प्रकरण सामने आए हैं। इनके बारे में पुख्ता प्रमाण हाथ लगते ही आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी।

महंगी फीस वाले छात्र दिखाए ज्यादा 

एसआइटी की जांच में सामने आया कि आइपीएस कॉलेज ने छात्रवृत्ति महंगे कोर्स करने वाले छात्रों के नाम पर हड़पी हैं। खासकर बीए एलएलबी, एलएलबी, एमबीए, बीबीए, बीसीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स में दो सौ से लेकर तीन सौ तक छात्र-छात्राएं दिखाए गए। इन कोर्स की फीस भी 50 हजार से लेकर एक लाख रुपये सालाना है। यही कारण रहा कि आरोपी ने मोटी फीस वाले कोर्स के जरिए छात्रवृत्ति की रकम हासिल की है।

कॉलेज के छात्र विवि के रिकार्ड में नहीं 

एसआइटी की जांच में इस बात की भी पुष्टि हुई कि जिन छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली गई, वह विश्वविद्यालय के रिकार्ड में नहीं नहीं थे। ऐसे भी छात्रों को सूची में शामिल किया गया, जिन्होंने कॉलेज से शिक्षा ग्रहण नहीं की है। बताया गया कि सहारनपुर और दूसरे जनपदों के युवाओं को यहां फर्जी तरीके से दाखिला दिया गया। कई मामलों में 11 माह तक छात्रवृत्ति की रकम ली गई, मगर परीक्षा के दौरान छात्रवृत्ति के लिए आवेदन नहीं किया गया।

विजन के उलट कर दिया काम 

कॉलेज ने अपनी वेब साइट में न्यू विजन, न्यू लीडर और न्यू डॉयरेक्शन को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। लेकिन कॉलेज में जिस तरह गरीब और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के नाम पर छात्रवृत्ति घोटाला हुआ है, वह कॉलेज का आइना दिखा रहा है। यही नहीं कॉलेज की वेब साइट में भी ज्यादा जानकारी नहीं दी गई। जिससे फर्जीवाड़े को लेकर ज्यादा सवाल उठ रहे हैं।

घोटाले पर अफसर एक-दूसरे के सिर सरका रहे टोपी

समाज कल्याण विभाग की छात्रवृत्ति घोटाले में चोर-चोर मौसेरे भाई जैसी कहावत चरित्रतार्थ हो रही है। आवेदन करने से लेकर सत्यापन और बजट जारी करने में दोनों विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसके बावजूद दोनों विभाग अपनी जिम्मेदारी से बचते नजर आ रहे हैं। एसआइटी भी दोनों विभागों की भूमिका की जांच कर कार्रवाई की तैयारी में जुट गई है। ताकि सच सामने आ सके। समाज कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति के आवेदन से लेकर सत्यापन की प्रक्रिया में राजस्व विभाग भी सीधे तौर पर जुड़ा है। विभाग के पास सत्यापन के बाद आवेदन स्वीकृति के लिए आते हैं। इसकी एवज में विभाग बजट की मांग करता है। बजट समाज कल्याण विभाग के मार्फत बांटा जाता है।

अब समाज कल्याण विभाग का कहना है कि आवेदन पत्र का सत्यापन और छात्रवृत्ति का आधार आय प्रमाणपत्र भी राजस्व विभाग देता है। इसी आधार पर छात्रवृत्ति स्वीकृत होती है। मगर, इसके उलट राजस्व विभाग भी समाज कल्याण विभाग को सीधे तौर पर जिम्मेदार बता रहा है। राजस्व विभाग का कहना है कि बजट और अंतिम स्वीकृति उनके विभाग से होती है। जिसके लिए राजस्व की कोई राय नहीं ली जाती है। ऐसे में समाज कल्याण विभाग पूरे प्रकरण के लिए जिम्मेदार है। दोनों विभागों की जिम्मेदारी टालने का सच जो भी हो, मगर, घोटाले के पीछे इनकी मिलीभगत से इन्कार नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि अब एसआइटी ने आवेदन पत्रों की स्वीकृति, सत्यापन और प्रमाणपत्र जारी करने आदि को जांच के दायरे में लिया है। एसआइटी का कहना है कि प्रकरण में जिम्मेदार अफसर बच नहीं पाएंगे।

क्या था छात्रवृत्ति घोटाला 

समाज कल्याण विभाग में 2012 से 2017 के बीच एससी, एसटी के छात्र-छात्राओं को दशमोत्तर छात्रवृत्ति बांटी गई। आवंटन में फर्जीवाड़ा होने पर विभागीय जांच के आदेश हुए। विभागीय जांच में करोड़ों रुपये की अनियमितता पकड़ी गई। इस पर अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की सिफारिश की गई। लेकिन, कुछ अफसर जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई को लटकाते रहे। इस मामले में 13 अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री के जनता दर्शन कार्यक्रम में छात्रवृत्ति घोटाले की सीबीआइ जांच का शिकायती पत्र मिला। इस पर मुख्यमंत्री ने एसआइटी जांच के आदेश दिए।

कई माह तक एसआइटी को विभाग ने दस्तावेज नहीं दिए। इस पर पिछले 10 माह से जांच सुस्त रफ्तार से चल रही थी। मगर, प्रकरण में हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया तो एसआइटी की जांच ने रफ्तार पकड़ी। कार्रवाई से पहले ही बदल दिए जांच अफसर छात्रवृत्ति घोटाले में चहेते अफसरों के फंसने पर शासन के कुछ अधिकारियों ने जांच अधिकारियों के ही तबादले कर दिए। इस मामले में सबसे पहले शिकायती पत्र पर समाज कल्याण विभाग के अपर सचिव रहे वी षणमुगम ने जांच की तो गंभीर अनियमितता सामने आई।

लेकिन, तभी उनका तबादला कर दिया। इसके बाद निदेशक योगेंद्र यादव ने भी जांच में बड़ी अनियमितता पर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी। पर कुछ समय बाद उनको भी विभाग से हटा दिया गया। इसी तरह सचिव आइएफएस मनोज चंद्रन और सचिव भूपिंदर कौर औलख को भी जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई होने से पहले हटा दिया गया। अफसरों को हटाने की इस प्रक्रिया पर सवाल उठे थे।

बोले अधिकारी

  • वीवीआरसी पुरुषोत्तम (गढ़वाल कमिश्नर) का कहना है कि राजस्व विभाग की भूमिका को लेकर संबंधित जनपदों के जिलाधिकारियों से जांच रिपोर्ट मांगी जाएगी। इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। एसआइटी की जांच जारी है। जांच पूरी होने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
  • विनोदगिरी गोस्वामी (निदेशक समाज कल्याण) का कहना है कि छात्रवृत्ति के लिए पहले ऑफलाइन आवेदन होते थे। अब प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई है। गड़बड़ी कहां से हुई, इसकी जांच एसआइटी कर रही है। इस बारे में अभी कुछ कहना ठीक नहीं होगा। 

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